"वाणिज्य": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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जब किसी देश में अशांति रहती है और चोर तथा डाकुओं का भय बढ़ जाता है, तब उसके वाणिज्य पर भी उसका बुरा प्रभाव पड़ता है। वाणिज्य की उन्नति में एक और बाधा उस आयातकर की होती है, जो कोई देश अपने उद्योग धंधों को दूसरे देशों की प्रतियोगिता से बचाने के लिए कुछ वस्तुओं के आयात पर लगाता है।
वाणिज्य में धनप्राप्ति की भावना ही प्रधान रहती है। कभी कभी स्वार्थ की भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि वणिक् लोग वस्तुओं में मिलावट करके बेचते हैं, माल के तौलने में बेईमानी करते हैं और झूठे विज्ञापन देकर अथवा चोरबाजारी करके अपने ग्राहकों को ठगने का प्रयत्न करते हैं। वे इस बात का विचार नहीं करते कि उनके इन [[दैव निदर्शन क्या है|प्रयत्नों]] से दूसरों की क्या हानि होती है। वे अपने कर्तव्य या धर्म का कोई विचार नहीं करते, इसी कारण हमारे वणिक् धनवान् होने पर भी असंतुष्ट बने रहते हैं और जीवन को शांतिमय नहीं बना पाते। जब वणिक् अपने सामने उच्च आदर्श रखेंगे और अपने सब कार्यों में दूसरों के स्वार्थों का उतना ही ध्यान रखेंगे जितना वे अपने स्वार्थों का रखते हैं तब वाणिज्य भी धनोपार्जन के साथ ही साथ सुख और शांति का भी साधन हो जावेगा।
== वाणिज्यवाद ==
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