"शून्य": अवतरणों में अंतर

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: ''कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ २ ॥
 
अर्थात् "एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है।"<ref>[https://books.google.co.in/books?id=blpvBQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false महान् खगोलविद्-गणितज्ञ आर्यभट] (गूगल पुस्तक ; दीनानाथ साहनी)</ref> और शायद यही संख्या के दशमलव सिद्धान्त का उद्गम रहा होगा। [[आर्यभट्ट]] द्वारा रचित गणितीय [[खगोलशास्त्र]] ग्रंथ '[[आर्यभट्टीय]]' के [[संख्या प्रणाली]] में शून्य तथा उसके लिये विशिष्ट संकेत सम्मिलित था (इसी कारण से उन्हें संख्याओं को शब्दों में प्रदर्शित करने के अवसर मिला)। प्रचीन [[बक्षाली पाण्डुलिपि]] में, जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल [[आर्यभट्ट]] के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि [[भारत]] में शून्य का प्रयोग [[ब्रह्मगुप्त]] के काल से भी पूर्व के काल में होता था।
 
शून्य तथा संख्या के दशमलव के सिद्धान्त का सर्वप्रथम अस्पष्ट प्रयोग [[ब्रह्मगुप्त]] रचित ग्रंथ [[ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त]] में पाया गया है। इस ग्रंथ में ऋणात्मक संख्याओं (negative numbers) और बीजगणितीय सिद्धान्तों का भी प्रयोग हुआ है। सातवीं शताब्दी, जो कि [[ब्रह्मगुप्त]] का काल था, शून्य से सम्बंधित विचार [[कम्बोडिया]] तक पहुँच चुके थे और दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि बाद में ये [[कम्बोडिया]] से [[चीन]] तथा अन्य [[मुस्लिम]] संसार में फैल गये।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शून्य" से प्राप्त