"प्राथमिकी": अवतरणों में अंतर

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किसी (आपराधिक) घटना के संबंध में पुलिस के पास कार्यवाई के लिए दर्ज की गई सूचना को '''प्राथमिकी''' या '''प्रथम सूचना रपट''' (F I R) कहा जाता है।
 
'''प्रथम सूचना रिपोर्ट''' या एफआईआर (First Information Report या FIR) एक लिखित प्रपत्र (डॉक्युमेन्ट) है जो [[भारत]], [[पाकिस्तान]], एवं [[जापान]] आदि की पुलिस द्वारा किसी [[संज्ञेय अपराध]] (cognizable offence) की सूचना प्राप्त होने पर तैयार किया जाता है। यह सूचना प्रायः अपराध के शिकार व्यक्ति द्वारा पुलिस के पास एक शिकायत के रूप में दर्ज की जाती है। किसी अपराध के बारे में पुलिस को कोई भी व्यक्ति मौखिक या लिखित रूप में सूचित कर सकता है। FIR पुलिस द्वारा तेयार किया हुआ एक दस्तावेज है जिसमे अपराध की सुचना वर्णित होती है I सामान्यत: पुलिस द्वारा अपराध संबंधी अनुसंधान प्रारंभ करने से पूर्व यह पहला कदम अनिवार्य है I
 
भारत में किसी भी व्यक्ति द्वारा शिकायत के रूप में प्राथमिकी दर्ज कराने का अधिकार है। किंतु कई बार सामान्य लोगों द्वारा दी गई सूचना को पुलिस प्राथमिकी के रूप में दर्ज नहीं करती है। ऐसे में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कई व्यक्तियों को [[न्यायालय]] का भी सहारा लेना पड़ा है।
 
== परिचय ==
जब किसी अपराध की सूचना पुलिस अधिकारी को दी जाती है, तो उसे '''एफ़आइआर''' कहते हैं। इसका पूरा रूप है है- 'फ़र्स्ट इनफ़ॉरमेशन रिपोर्ट'। आप पुलिस के पास किसी भी प्रकार के अपराध के संबंध में जा सकते हैंI अति-आवश्यक एवं गंभीर मामलों मैं पुलिस को FIR तुरंत दर्ज कर [http://nyaaya.in/crpc-victim-in-hindi/police-case/ अनुसंधान] प्रारंभ करना अनिवार्य है I अपराध की सूचना को लिपिबद्ध करने का कार्य [[पुलिस]] करती है। प्रावधान है कि टेलिफोन से प्राप्त सूचना को भी एफ़आइआर की तरह समझा जा सकता है। [[दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (भारत)|भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973]] के  धारा 154 के तहत एफ़आइआर की प्रक्रिया पूरी की जाती है। यह वह महत्वपूर्ण सूचनात्मक दस्तावेज होता है जिसके आधार पर पुलिस कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाती है।
 
एफ़आइआर '''[[संज्ञेय अपराध]]''' होने पर दर्ज की जा जाती है। संज्ञेय अपराध के बारे में प्रथम सूचना रिपोर्ट कोई भी व्यक्ति दर्ज करवा सकता है। इसके तहत पुलिस को अधिकार होता है कि वह आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करे और जांच-पड़ताल करे. जबकि अपराध संज्ञेय नहीं है, तो बिना कोर्ट के इजाजत के कार्रवाई संभव नहीं हो पाती।
 
हालांकि पुलिस की नजर में दी गयी जानकारी में अगर जांच-पड़ताल के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनता है, तो वह कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं। इस स्थिति में उसे कार्रवाई न करने की वजह को लॉग बुक में दर्ज करना होता है, जिसकी जानकारी भी सामनेवाले व्यक्ति को देनी होती है। पुलिस अधिकारी अपनी तरफ़ से इस रिपोर्ट में कोई टिप्पणी नहीं जोड़ सकता। शिकायत करनेवाले व्यक्ति का अधिकार है कि उस रिपोर्ट को उसे पढ़ कर सुनाया जाये और उसकी एक कॉपी उसे दी जाये। इस पर शिकायतकर्ता का हस्ताक्षर कराना भी अनिवार्य है। अगर थानाध्यक्ष सूचना दर्ज करने से इनकार करता है, तो वरिष्ठ पदाधिकारियों से मिलकर या डाक द्वारा इसकी सूचना देनी चाहिए।
 
 
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* [http://www.punjabpolice.gov.pk/page.asp?id=335 How can I have a first information report (FIR) registered at a police station? - Punjab Police website]
* [http://www.pravakta.com/please-file-afaiar कैसे दर्ज कराएं एफ़आईआर]
* [http://nyaaya.in/crpc-victim-in-hindi/fir/ प्र.सु.रि.(FIR) के बारे में]
 
[[श्रेणी:भारतीय न्याय प्रणाली]]