"किला": अवतरणों में अंतर

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: ''नृदुर्गं गिरिदुर्गं वा समाश्रित्य वसेत् पुरम् ॥
: ''सर्वेण तु प्रयत्नेन गिरिदुर्गं समाश्रयेत् ।
: ''एषां हि बाहुगुण्येन गिरिदुर्गं विशिष्यते ॥'' (मनुस्मृति ७.७०–७१)
 
:: मनुस्मृति ७.७०–७१
* (१) धनुदुर्ग, जिसके चारों ओर निर्जल प्रदेश हो,
* (२) महीदुर्ग, जिसके चारो ओर टेढ़ी मेढ़ी जमीन हो,
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[[साम्रज्यलक्ष्मीपीठिका]] में नौ प्रकार के दुर्गों की विशेषताएँ (लक्षणम्) दिये गये हैं।
: ''गिरिदुर्गलक्षणम्, वनदुर्गलक्षणम्, गह्वरदुर्गलक्षणम्, जलदुर्गलक्षणम्, पङ्कदुर्गलक्षणम्, मिश्रदुर्गलक्षणम्, नृदुर्गलक्षणम्, कोष्ठदुर्गलक्षणम् (अध्याय ३३ में)
 
[[शिल्पशास्त्र]] के अन्य ग्रंथों में इनका विस्तृत रूप में निम्नलिखित समूहों में विभाजन किया गया है-
"https://hi.wikipedia.org/wiki/किला" से प्राप्त