"संस्कृत साहित्य": अवतरणों में अंतर

क्योकि to क्योंकि AWB के साथ
पंक्ति 5:
 
== संस्कृत साहित्य का महत्व ==
विश्वभर की समस्त प्राचीन भाषाओं में संस्कृत का सर्वप्रथम और उच्च स्थान है। विश्व-साहित्य की पहली पुस्तक [[ऋग्वेद]] इसी भाषा का देदीप्यमान रत्न है। भारतीय संस्कृति का रहस्य इसी भाषा में निहित है। संस्कृत का अध्ययन किये बिना भारतीय संस्कृति का पूर्ण ज्ञान कभी सम्भव नहीं है।
 
अनेक प्राचीन एवं अर्वाचीन भाषाओं की यह जननी है। आज भी भारत की समस्त भाषाएँ इसी वात्सल्यमयी जननी के स्तन्यामृत से पुष्टि पा रही हैं। पाश्चात्य विद्वान इसके अतिशय समृद्ध और विपुल साहित्य को देखकर आश्चर्य-चकित होते रहे हैं। भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी यदि कोई भाषा है तो वह संस्कृत ही है।
पंक्ति 19:
 
== वेद, वेदांग, उपवेद ==
यहाँ साहित्य शब्द का प्रयोग "वाङ्मय" के लिए है। ऊपर वेद संहिताओं का उल्लेख हुआ है। वेद चार हैं- [[ऋग्वेद]], [[यजुर्वेद]], [[सामवेद]] और [[अथर्ववेद]]। इनकी अनेक शाखाएँ थीं जिनमें बहुत सी लुप्त हो चुकी हैं और कुछ सुरक्षित बच गई हैं जिनके संहिताग्रंथ हमें आज उपलब्ध हैं। इन्हीं की शाखाओं से संबद्ध ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषद् नामक ग्रंथों का विशाल वाङ्मय प्राप्त है। वेदांगों में सर्वप्रमुख कल्पसूत्र हैं जिनके अवांतर वर्गों के रूप में और सूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र (शुल्बसूत्र भी है) का भी व्यापक साहित्य बचा हुआ है। इन्हीं की व्याख्या के रूप में समयानुसार धर्मसंहिताओं और स्मृतिग्रंथों का जो प्रचुर वाङ्मय बना, मनुस्मृति का उनमें प्रमुख स्थान है। वेदांगों में शिक्षा-प्रातिशाख्य, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छंद शास्त्र से संबद्ध ग्रंथों का वैदिकोत्तर काल से निर्माण होता रहा है। अब तक इन सबका विशाल साहित्य उपलब्ध है। आज ज्योतिष की तीन शाखाएँ-गणित, सिद्धांत और फलित विकसित हो चुकी हैं और भारतीय गणितज्ञों की विश्व की बहुत सी मौलिक देन हैं। पाणिनि और उनसे पूर्वकालीन तथा परवर्ती वैयाकरणों द्वारा जाने कितने व्याकरणों की रचना हुई जिनमें पाणिनि का व्याकरण-संप्रदाय 2500 वर्षों से प्रतिष्ठित माना गया और आज विश्व भर में उसकी महिमा मान्य हो चुकी है। पाणिनीय व्याकरण को त्रिमुनि व्याकरण भी कहते हैं, क्योकिक्योंकि पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि इन तीन मुनियों के सत्प्रयास से यह व्याकरण पूर्णता को प्राप्त किया। यास्क का निरुक्त पाणिनि से पूर्वकाल का ग्रंथ है और उससे भी पहले निरुक्तिविद्या के अनेक आचार्य प्रसिद्ध हो चुके थे। शिक्षाप्रातिशाख्य ग्रंथों में कदाचित् ध्वनिविज्ञान, शास्त्र आदि का जितना प्राचीन और वैज्ञानिक विवेचन भारत की संस्कृत भाषा में हुआ है- वह अतुलनीय और आश्चर्यकारी है। उपवेद के रूप में चिकित्साविज्ञान के रूप में आयुर्वेद विद्या का वैदिकाल से ही प्रचार था और उसके पंडिताग्रंथ (चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, भेडसंहिता आदि) प्राचीन भारतीय मनीषा के वैज्ञानिक अध्ययन की विस्मयकारी निधि है। इस विद्या के भी विशाल वाङ्मय का कालांतर में निर्माण हुआ। इसी प्रकार धनुर्वेद और राजनीति, गांधर्ववेद आदि को उपवेद कहा गया है तथा इनके विषय को लेकर ग्रंथ के रूप में अथवा प्रसंगतिर्गत सन्दर्भों में पर्याप्त विचार मिलता है।
 
== दर्शनशास्त्र ==
पंक्ति 101:
 
=== अति विस्तृत रचना-काल ===
संस्कृत साहित्य की रचना अति प्राचीन काल (हजारों वर्ष ईसापूर्व) से लेकर अब तक निरन्तर चली आ रही है।
 
===अति-विस्तृत क्षेत्र===
पंक्ति 107:
 
=== विशालता (abundance and vastness) ===
संस्कृत साहित्य इतना विशाल और विविधतापूर्ण है कि 'संस्कृत में क्या-क्या है?' - यह पूछने के बजाय प्रायः पूछा जाता है कि '[https://sa.wikipedia.org/wiki/संस्कृते_किं_नास्ति_%3F संस्कृते किं नास्ति?]' (संस्कृत में क्या नहीं है?)। अनुमान है कि संस्कृत की [[पाण्डुलिपि|पाण्डुलिपियों]] की कुल संख्या '''३ करोड़''' से भी अधिक होगी, यह संख्या ग्रीक और लैटिन पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से सौ गुना से अधिक है।<ref name="drona.csa.iisc.ernet.in">[http://drona.csa.iisc.ernet.in/~gopi/icpr/presentations/Gopinath.pdf Computational Thinking in the IndicTradition] (K Gopinath, IISc)</ref> यह इतनी अधिक है कि बहुत सी पाण्डुलिपियाँ अभी तक सूचीबद्ध नहीं की सकी है, उन्हे पढ़ना और उनका अनुवाद आदि करना बहुत दूर की बात है।<ref>[http://ऽtimesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/sanskrits-elitism-a-counter-narrative-of-popular-notion/articleshow/56709794.cms Sanskrit’s elitism: A counter narrative of popular notion]</ref>
 
=== विविधता (variety and diversity) ===
पंक्ति 128:
 
=== पंथनिरपेक्षता ===
इतना प्राचीन होने के बावजूद संस्कृत साहित्य का अधिकांश भाग सेक्युलर तथा अधार्मिक () है।<ref>[http:// name="drona.csa.iisc.ernet.in"/~gopi/icpr/presentations/Gopinath.pdf Computational Thinking in the IndicTradition] (K Gopinath, IISc)</ref>
 
==सन्दर्भ==