"त्रित्व": अवतरणों में अंतर
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त्रित्व के इस धर्मसिद्धांत को ईसाई धर्मपंडितों ने यूनानी तथा लातीनी दर्शन के पारिभाषिक शब्दों के सहारे इस प्रकार स्पष्ट करने का प्रयास किया है -- एक ही ईश्वरीय स्वभाव (नेचर) में तीन व्यक्ति (परसंस) विद्यमान हैं। तीनों तत्वत: (सब्स्टैंशली) एक हैं। अत: तीनों की एक ही संकल्पशक्ति तथा एक ही बुद्धि है। फिर भी पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में पारस्परिक भिन्नता है। पिता किसी से उत्पन्न नहीं होता। पुत्र आदिकाल से पिता से परिपूर्ण ईश्वरत्व ग्रहण करता है। पुत्र की इस उत्पत्ति को प्रजनन (जेनेरेशन) कहते हैं। पवित्र आत्मा की उत्पत्ति को प्रजनन (जेनेरेशन) कहते हैं। पवित्र आत्मा की उत्पत्ति पिता तथा पुत्र दोनों से मानी जाती है और प्रसरण (प्रोसेशन) कहलाती है। पुत्र के प्रजनन तथा पवित्र आत्मा से प्रसरण से तीनों व्यक्तियों की पारस्परिक भिन्नता उत्पन्न होती है, किंतु तत्वत: तीनों एक हैं और समान रूप से सभी ईश्वरीय गुणों से समन्वित हैं। (प्राच्य चर्च में पवित्र आत्मा का प्रसरण पिता से माना जाता है)।
शताब्दियों तक इस धर्मसिद्धांत पर चिंतन किया गया है और तत्वसंबंधी अनेक धारणाओं को भ्रामक ठहराया गया है। त्रिदेवतावाद, जो तीन भिन्न ईश्वरीय तत्व मानता है स्पष्टतया भ्रामक है,
==इन्हें भी देखें==
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