"वर्साय की सन्धि": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
पंक्ति 57:
3. '''कठोर एवं अपमानजनक शर्तें''' : वार्साय की संधि द्वारा जर्मनी को छिन्न-भिन्न कर दिया गया, उपनिवेश छीन आर्थिक रूप से पंगु बना दिया गया, आर्थिक संसाधनों पर दूसरे राष्ट्रों का स्वामित्व स्थापित कर दिया गया और सैनिक दृष्टि से उसे अपंग बना दिया गया। क्षतिपूर्ति की शर्त अत्यंत कठोर एवं अपमानजनक थी। क्षतिपूर्ति की रकम अदा न करने की स्थिति में जर्मनी के क्षेत्रों पर कब्जा करने की बात की गई। वस्तुतः विजेता राष्ट्र ने प्रतिशोध के तहत कठोर शर्तों को जर्मनी पर लादा। संधि की शर्ते इतनी कठोर थी कि कोई भी स्वाभिमानी, सुसंस्कृत राष्ट्र इसे सहन नहीं कर सकता था। चर्चिल के शब्दों में “इसकी आर्थिक शर्तें इस हद तक कलंकपूर्ण तथा निर्बुद्ध थी कि उन्होंने ने इसे स्पष्टतया निरर्थक बना दिया।”
4. '''संधि गलत स्थानों पर कठोर तथा गलत तरीके से नरम थी''' : यह संधि केवल असामान्य रूप से कठोर नहीं थी, वरन् गलत स्थानों पर कठोर तथा गलत तरीके से नरम थी। तथाकथित युद्ध अपराध संबंधी प्रावधानों जर्मनी द्वारा स्वीकृत कराने का प्रयत्न यथार्थ से परे था क्योंकि जैसा डेविड थामसन ने कहा “इस बात का उल्लेख ऐसे मसौदे में शामिल करके जिस पर हस्ताक्षर करने के लिए जर्मन प्रतिनिधि विवश किए गए नैकि उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न नहीं कर सकते थे।” दूसरे क्षतिपूर्ति की मांग भी असंभव मात्रा में की गई थी और इसकी वृहत् राशि बिना किसी गंभीर विचार किए निश्चित की गई थी। आर्थिक दृष्टि से यह संपदा जर्मनी के लिए चुकाना तथा मित्र राष्ट्रों के लिए प्राप्त करना कैसे संभव होगा, इसका विश्लेषण नहीं किया गया था। निःसंदेह दण्ड और मुआवजे का संपूर्ण आकार अविवेकी और अव्यवहारिक था। उपर्युक्त सभी प्रकार की अनावश्यक कठोरताएं जर्मनी के राष्ट्रीय असंतोष व क्रोध को अभिव्यक्ति करने की उसकी क्षमता के विरूद्ध कोई पृथक् कदम नहीं उठाया गया। यह संधि गलत तरीके से नरम थी,
5. '''प्रतिशोधात्मक संधि''' : विजेता राष्ट्रों ने प्रतिशोधात्मक रवैया अपनाकर कठोर शर्तों को जर्मनी पर लादा। फ्रांस अपनी पुरानी पराजय और अमपान का बदला लेना चाह रहा था उस दृष्टि से संधि में जर्मनी के साथ अधिकतम कठोर प्रावधान किये गए।
|