"छपरा": अवतरणों में अंतर

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स्थिति : 25 डिग्री 50 मिनट उत्तर अक्षांश तथा 84 डिग्री 45 मिनट पूर्वी देशान्तर। यह [[घाघरा नदी]] के उत्तरीतट पर बसा है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ के दाहिआवाँ महल्ले में [[दधीचि]] ऋषि का आश्रम था। इसके पाँच मील पश्चिम रिविलगंज है, जहाँ [[गौतम ऋषि]] का आश्रम बतलाया जाता है और वहाँ [[कार्तिक पूर्णिमा]] को एक बड़ा मेला लगता है।
 
छपरे से चार मील पूरब [[चिरांद]] छपरा में पौराणिक राजा [[मयूरध्वज]] को राजधानी तथा [[च्यवन ऋषि]] का आश्रम बतलाया जाता है। [[चिरांद]], छपरा से ११ किलोमीटर स्थित, सारण जिला का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल (2000 ईस्वी पूर्व) है। यहाँ पर पुरातत्व विभाग की ओर से खंडहरों की खुदाई हो रही है और कुछ बहुमूल्य ऐतिहासिक तथ्यों के प्राप्त होने की संभावना है। छपरा से 15 मील पूरब गंडक नदी के तट पर [[सोनपुर]] स्थान है जो [[हरिहर क्षेत्र]] के नाम से विख्यात है। यहीं पर गज और ग्राह के पौरणिक युद्ध का होना बतलाया जाता है। यहाँ [[शिव]] और [[विष्णु]] के मंदिर साथ-साथ हैं। कार्तिक पूर्णिमा को सोनपुर का प्रसिद्ध मेला लगता है जो महीनों चलता रहता है। मौर्य शासक अपने हाथी ,घोड़े तक इस मेले से खरीदते थे,,इससे इसकी प्राचीनता का पता चलता है। वर्तमान में जानवरों के प्रति बढती चेतना और जागरुकता के चलते जानवरों की संख्या में पहले से कुछ कमी आयी है। केरल से हाथियों को वहाँ बेचने के लिए लानें वालों पर उच्च न्यायालय का सख्त मनाही का आदेश है। एक महीने के लिए यह विशाल मानव जमघट बन जाता है। यहाँ पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन भी सोनपुर ही है। यह मेला जगजीवन रेलवे पुल के पास ही लगता है। ठंड में गंडक का पानी हाड़ कँपकपाने लायक शीतल हो जाता है। यहाँ से कुछ किलोमीटर आगे जाने पर गंगा और गंडक का संगम होता है। पहले के लोग बताते हैं की मेला पहले संगम के पास ही होता था,,पर अब संगम स्थल कुछ दुर चला गया है। इस मेले में बहुत बड़ी संख्या में मवेशी - गाय, बैल, घोड़े, हाथी, ऊँट तथा पक्षी विक्रय के लिए आते हैं। छपरा में कई कालेज और स्कूल हैं। शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। जिले में [[शक्कर|चीनी]] के अनेक कारखाने हैं।
 
== इतिहास ==
छपरे से चार मील पूरब [[चिरांद]] छपरा में पौराणिक राजा [[मयूरध्वज]] को राजधानी तथा [[च्यवन ऋषि]] का आश्रम बतलाया जाता है। [[चिरांद]], छपरा से ११ किलोमीटर स्थित, [[सारण जिला]] का सबसे महत्वपूर्ण [[पुरातत्व स्थल]] (2000 ईस्वी पूर्व) है। यहाँ पर पुरातत्व विभाग की ओर से खंडहरों की खुदाई हो रही है और कुछ बहुमूल्य ऐतिहासिक तथ्यों के प्राप्त होने की संभावना है। छपरा से 15 मील पूरब गंडक नदी के तट पर [[सोनपुर]] स्थान है जो [[हरिहर क्षेत्र]] के नाम से विख्यात है। यहीं पर गज और ग्राह के पौरणिक युद्ध का होना बतलाया जाता है। यहाँ [[शिव]] और [[विष्णु]] के मंदिर साथ-साथ हैं। कार्तिक पूर्णिमा को सोनपुर का प्रसिद्ध मेला लगता है जो महीनों चलता रहता है। मौर्य शासक अपने हाथी ,घोड़े तक इस मेले से खरीदते थे,,इससे इसकी प्राचीनता का पता चलता है। वर्तमान में जानवरों के प्रति बढती चेतना और जागरुकता के चलते जानवरों की संख्या में पहले से कुछ कमी आयी है। केरल से हाथियों को वहाँ बेचने के लिए लानें वालों पर उच्च न्यायालय का सख्त मनाही का आदेश है। एक महीने के लिए यह विशाल मानव जमघट बन जाता है। यहाँ पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन भी सोनपुर ही है। यह मेला जगजीवन रेलवे पुल के पास ही लगता है। ठंड में गंडक का पानी हाड़ कँपकपाने लायक शीतल हो जाता है। यहाँ से कुछ किलोमीटर आगे जाने पर गंगा और गंडक का संगम होता है। पहले के लोग बताते हैं की मेला पहले संगम के पास ही होता था,,पर अब संगम स्थल कुछ दुर चला गया है। इस मेले में बहुत बड़ी संख्या में मवेशी - गाय, बैल, घोड़े, हाथी, ऊँट तथा पक्षी विक्रय के लिए आते हैं। छपरा में कई कालेज और स्कूल हैं। शिक्षा का प्रसार तेजी से हो रहा है। जिले में [[शक्कर|चीनी]] के अनेक कारखाने हैं।
 
18वीं शताब्दी में डच, फ़्रांसीसी, पुर्तग़ाली और अंग्रेजों द्वारा यहाँ [[शोरा]]-परिष्करण इकाइयों की स्थापना के बाद छपरा नदी तट पर स्थित बाज़ार के रूप में विकसित हुआ। 1864 में यहाँ नगरपालिका का गठन हुआ।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/छपरा" से प्राप्त