"पंचकल्याणक": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
सुधार
पंक्ति 1:
'''पंचकल्याणक''' जैन धर्मग्रन्थों मेंके विश्वासअनुसार करनेसभी वालेतीर्थंकरों लोगोंके काजीवन एकमें प्रमुखघटित त्योहारहोते है। यह पाँच कल्याणक हैं –
 
* गर्भ कल्याणक: जब तीर्थंकर प्रभु की आत्मा माता के गर्भ में आती है।
* जब आप पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भागीदारी करें तो नई दृष्टि, नए विचार और वैज्ञानिक विश्लेषण को आधार बनाएँ। है।
* जन्म कल्याणक : जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है।
* दीक्षा कल्याणक: जब तीर्थंकर सब कुछ त्यागकर वन में जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण करते है।
* केवल ज्ञान कल्याणक: जब तीर्थंकर को [[केवल ज्ञान]] की प्राप्ति होती है।
* मोक्ष कल्याणक: जब भगवान शरीर का त्यागकर अर्थात सभी कर्म नष्ट करके निर्वाण/ मोक्ष को प्राप्त करते है।
 
इन पाँच कल्याणकों को पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
 
* पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में दिखाई जाने वाली घटनाएँ काल्पनिक नहीं, प्रतीकात्मक हैं। हमारी आँख कितनी भी शक्तिशाली हो जाए, लेकिन वह काल की पर्तों को लांघकर ऋषभ काल में नहीं देख सकतीं। आचार्यों ने 2500 साल से तो कम से कम हमारे लिए तथ्यों को संग्रहित किया है। जिसमें पूर्व परंपरा से चले आ रहे घटनाक्रम का परीक्षण करें किंतु तब तक अविश्वास न करें जब तक अन्यथा सिद्ध न हो जाए। ता है।
 
* तीर्थंकर एक सत्य, एक प्रकाश है जो मानव की भावभूमि प्रकाशित करता रहा है। तीर्थंकर की वाणी को एक क्षण मात्र के लिए भूल कर देखिए- जीवन शून्य हो जाएगा- सभ्यता के सारे ताने-बाने नष्ट हो जाएँगे।
 
* पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के आप प्रत्यक्षदर्शी न हों पर अपने हृदय में उसकी भावनात्मक कल्पना अवश्य कीजिए। तीर्थंकर आपके हृदय में विराजमान हो जाएँगे। फिर आपकी जीवन यात्रा अर्थपूर्ण और सत्य के अधिक निकट होगी।
 
* हे तीर्थंकर वाणी! हमारे हृदय में प्रवेश कर हमें अपने अज्ञान और पूर्वाग्रहों से मुक्त होने में सहायक हो।
Line 15 ⟶ 19:
* जैनागमों में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवनकाल में पाँच प्रसिद्ध घटनाओं-अवसरों का उल्लेख मिलता है- वे अवसर जगत के लिए अत्यंत कल्याणकारी होते हैं। अतः उनका स्मरण दर्शन भावों को जागृत करता है व सही दिशा में उन्हें मोड़ सकता है। वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसा ही घटनाक्रम घटित होता है किंतु साधारण व्यक्ति गर्भ और जन्म और (तप कल्याण के पूर्व) बाल क्रीड़ा, राज्याभिषेक (जीवन में सांसारिक सफलता पाना) आदि क्रियाओं से गुजर जाता है किंतु वैराग्य उसके जीवन में फलित नहीं होता। उसका कारण पूर्व जनित कर्म तो होते ही हैं किंतु उसके संस्कार और संगति अध्यात्म परक न हो पाने के कारण वैराग्य फलित नहीं होता। जैन धर्म भावना प्रधान है। भावनाओं को कड़ियों में पिरोकर जैन धर्म के दर्शन व इतिहास की रचना हुई है। यदि हम भावनाओं को एक तरफ उठाकर रख दें तो जैन धर्म के ताने-बाने को हम नहीं समझ पाएँगे। पंच कल्याणक महोत्सव इसी ताने-बाने का एक भाग है।
 
* पंच कल्याणक को महोत्सव बनाने वाला पहला व्यक्ति महान इतिहासकार होना चाहिए। जिन घटनाओं ने - परिवर्तनों ने मानव को महामानव बना दिया, उसे भगवान बना दिया- लोग उसे नहीं भूले, उनके सामने उसे बार-बार दोहराया जाए ताकि वे सदैव स्मरण करते रहें कि आत्मा को परमात्मा बनने के लिए कई पड़ावों से होकर गुजरना पड़ता है। कोई आत्मा तब तक परमात्मा नहीं बन सकती जब तक उसे संसार से विरक्ति न हो, वह तप न करे, केवल ज्ञान न उत्पन्न हो तब तक वह परमात्मा बनने का अधिकारी नहीं है।
 
* पहले लिखित रिकार्ड तो नहीं थे- जो पुरानी घटनाओं को याद रखने का सहारा बनते। पहले तो मनुष्य की विचार जनित वाणी और कुछ दृश्य दिखाना ही- घटनाओं को याद रखने का तरीका था। तीर्थंकर प्रकृति का बंध होने के बावजूद, तीर्थंकर की आत्मा को त्याग-तपस्या का मार्ग अपनाना ही पड़ता है। सांसारिक प्राणी के सामने इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराया जाए ताकि, जैन दर्शन के मूल सिद्धांतों को वह सफलता से समझ जाए।