"भारतीय गणित": अवतरणों में अंतर

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ज्योतिष की एक अन्य पुस्तक ‘[[सूर्य सिद्धान्त]]’ की भी रचना संभवतः इसी दौरान हुई। वैसे इसके लेखक के बारे में कोई जानकारी नहीं है। पर मयासुर को सूर्यदेव की आराधना के फलस्वरूप यह ज्ञान प्राप्त हुआ था। निःसंदेह यह आर्यों की कृति नहीं है। सूर्य सिद्धांत में बड़ी से बड़ी संख्याओं को व्यक्त करने की विधि वर्णित है। गिनती के अंकों को संख्यात्मक शब्दों में व्यक्त किया गया है, यथा रूप (1), नेत्र (2), अग्नि (3), युग (4), इन्द्रिय (5), रस (6), अद्रि (7 - पर्वत शृंखला), बसु (8), अंक (9), रव (0)। इन शब्दों के पर्यायवाची शब्द अथवा हिंदू देवी-देवताओं के नाम से भी व्यक्त किया गया है। पंद्रह को तिथि से तथा सोलह को निशाकर से। अंकों को दाएं से बाएं की तरफ रख कर बड़ी से बड़ी संख्या व्यक्त की गई है। सूर्य सिद्धांत में विविध गणितीय संक्रियाओं का वर्णन है। आधुनिक [[त्रिकोणमिति]] का आधार भी सूर्य सिद्धांत के तीसरे अध्याय में विद्यमान है। ज्या, उत्क्रम ज्या एवं कोटि ज्या परिभाषित किया गया है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि '''ज्या''' शब्द अरबी में जैब से बना जिसका लैटिन रूपांतरण Sinus में किया गया और फिर यह वर्तमान 'Sine' में परिवर्तित हुआ। सूर्य सिद्धांत में π का मान 10<sup>1/2</sup> दिया गया है।
 
भारतीय इतिहास में [[गुप्त राजवंश|गुप्त काल]] 'स्वर्ण युग' के रूप में माना जाता है। महाराजा [[श्रीगुप्त]] द्वारा स्थापित गुप्त साम्राज्य पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला था। सन् 320-550 के मध्य इस साम्राज्य में ज्ञान की हर विद्या में महत्त्वपूर्ण आविष्कार हुए। इस काल में [[आर्यभट]] (476) का आविर्भाव हुआ। उनके जन्म स्थान का ठीक-ठीक पता नहीं है पर उनका कार्यक्षेत्र कुसुमपुर (वर्तमान [[पटना]]) रहा। 121 श्लोकों की उनकी रचना [[आर्यभटीय]] के चार खंड हैं- गितिका पद (13), गणित पद (33), कालकृपा पद (25) और गोल पद (50)। प्रथम खंड में अंक विद्या का वर्णन है तथा द्वितीय एवं तृतीय खंड में बीजगणित, त्रिकोणमिति, ज्यामिति एवं ज्योतिष पर विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उन्होंने π का 4 अंकों तक शुद्ध मान ज्ञात किया- '''π = 3.4161'''। [[आर्यभट्ट की संख्यापद्धति|संख्याओं को व्यक्त करने के लिए]] उन्होंने देवनागरी वर्णमाला के पहले 25 अक्षर (क-म) तक 1-25, य-ह (30, 40, 50, ... 100) और स्वर अ-औ तक 100, 100<sup>2</sup> , ... 100<sup>8</sup> से प्रदर्शित किया। उदाहरण के लिए :
 
:जल घिनि झ सु भृ सृ ख
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[[नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती]] (सन् 1100) [[समुच्चय सिद्धांत]] को प्रतिपादित करने वाले प्रथम गणितज्ञ थे। उन्होंने सार्वभौमिक समुच्चय एवं सभी प्रकार के मानचित्रण (Mapping) एवं सुव्यवस्थित सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। [[गैलीलियो]] एवं [[जार्ज कैंटर]] ने इस विधि का ‘एक से एक’ (वन-टू-वन) मानचित्रण में उपयोग किया।
 
[[भास्कराचार्य द्वितीय]] (सन् 1114) ने ‘सिद्धान्तशिरोमणि’, ‘[[लीलावती]]’, ‘बीजगणित’ ‘गोल अध्याय’‘गोलाध्याय’, ‘ग्रहगणितम’ एवं ‘करणकौतुहल’ की रचना की। बीजगणित के कुट्टक समीकरणों के हल की [[चक्रवाल विधि]] दी। यह विधि जर्मन गणितज्ञ [[हरमन हेंकेल]] (सन् 1839-73) को बहुत पसंद आई। हेंकल के अनुसार लगरेंज से भी पूर्व संख्या सिद्धांत में चक्रवाल विधि एक उल्लेखनीय खोज है। पीयरे डी फरमेट (सन् 1601-1665) ने भी कुट्टक समीकरणों के हल के लिए चक्रवाल विधि का प्रयोग किया था।
 
भास्कराचार्य द्वितीय के पश्चात् गणित में अभिरुचि [[केरल]] के नम्बुदरी ब्राह्मणों ने प्रकट की। ‘आर्यभटीय’ की एक पांडुलिपि [[मलयालम भाषा]] में केरल में प्राप्त हुई। केरल के विद्वानों में [[नारायण पण्डित]] (सन् 1356) का विशेष योगदान है। उनकी रचना-‘गणितकौमुदी’ में क्रमचय एवं संचय, संख्याओं का विभागीकरण तथा ऐन्द्र जालिक (Magic) वर्ग की विवेचना है। नारायण पंडित के छात्र [[परमेश्वर]] (सन् 1370 - 1460) ने मध्यमान (Mean Value) सिद्धांत स्थापित किया तथा त्रिकोणमितीय फलन '''ज्या''' का श्रेणी हल दिया :
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इसके साथ ही [[गणितीय विश्लेषण]], [[संख्या सिद्धांत]], अनंत श्रेणी, सतत भिन्न पर भी उनका अमूल्य योगदान है। व्युतक्रम स्पर्श ज्या का उनका श्रेणी हल वर्तमान में '''ग्रीगरीज श्रेणी''' के नाम से प्रचलित है।
 
[[सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय]] के प्राचार्य रहे [[सुधाकर द्विवेदी]] (सन् 1860-1922) ने दीर्घवृतलक्षण, गोलीय रेखागणित, समीकरण मीमांशा एवं [[चलन-कलन]] पर मौलिक पुस्तकें लिखीं। आधुनिक गणितज्ञ [[रामानुजन्]] (सन् 1887-1920) ने लगभग 50 गणितीय सूत्रों का प्रतिपादन किया। [[स्वामी भारती तीरथतीर्थ]] जी महाराज (सन् 1884-1960) ने [[वैदिक गणित]] के माध्यम से गुणा, भाग, वर्गमूल एवं घनमूल की सरल विधि प्रस्तुत की। हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष केंद्र के वैज्ञानिक रीक वृग्स के अनुसार [[पाणिनि]] की [[अष्ताध्यायीअष्टाध्यायी]] व्याकरण कम्प्यूटर आधारित भाषा प्रोगामर के लिए बहुत ही उपयुक्त है। ईसा पूर्व 650 में लिखी इस पुस्तक में 4000 बीजगणित जैसे सूत्र हैं।
 
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि विविध आयामों में भारतीय गणित बहुत ही समृद्ध है। कम्प्यूटर-भाषाओं के साथ-साथ आधुनिक गणित प्राचीन भारतीय गणित का ऋणी है।