ऐतरेय ब्राह्मण में 40 अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक पाँच अध्यायों को मिलाकर एक "पंचिका" कहते हैं और प्रत्येक अध्याय के विभाग को "कंडिका"। इस प्रकार पूरे ग्रंथ में आठ पंचिका, 40 अध्याय, अथवा 285 कंडिकाएँ हैं। समस्त सोमयागों की प्रकृति होने के कारण "अग्निष्टोम" का प्रथमत: विस्तृत वर्णन किया गया है और अनंतर सवनों में प्रयुक्त शास्त्रों का तथा अग्निष्टोम की विकृतियों–उक्थ्य, अतिरात्र तथा षोडशी याग–का उपादेय विवरण प्रस्तुत किया गया है। "राजसूय" का वर्णन, तदंतर्गत [[शुनःशेपाख्यान का सन्देश|शुनःशेप का आख्यान]] तथा "ऐंद्र महाभिषेक" का विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। अष्टम पंचिका में प्राचीन भारत के मूर्धाभिषिक्त सम्राटों का विशेष वर्णन किया गया है। जिसमें इस विषय की प्राचीन गाथाएँ उधृत की गई हैं। गाथाएँ भाषा तथा इतिहास दोनों दृष्टियों से महत्व रखती हैं।
== "ऐतरेय" शब्द की व्याख्या ==
"ऐतरेय" शब्द की व्याख्या एक प्राचीन टीकाकार ने की है – '''इतरा (शूद्रा) का पुत्र''', जिसके कारण इस ब्राह्मण के मूल प्रवर्तक पर हीन जाति का होने का दावा लगाया जाता है, परंतु वस्तुस्थिति ऐसी ही है।