"विनोबा भावे": अवतरणों में अंतर

साम्यवाद के बारे में विनोबा जी के विचार।
द्वितीय विश्व युद्ध में विनोबा का महत्वपूर्ण योगदान।
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गांधी और विनोबा की वह मुलाकात क्रांतिकारी थी। गांधी जी को जैसे ही पता चला कि विनोबा अपने माता-पिता को बिना बताए आए हैं, उन्होंने वहीं से विनोबा के पिता के नाम एक पत्र लिखा कि विनोबा उनके साथ सुरक्षित हैं। उसके बाद उनके संबंध लगातार प्रगाढ़ होते चले गए। विनोबा ने खुद को गांधी जी के आश्रम के लिए समर्पित कर दिया. अध्ययन, अध्यापन, कताई, खेती के काम से लेकर सामुदायिक जीवन तक आश्रम की हर गतिविधि में वे आगे रहते. गांधी जी का यह कहना कि यह युवक आश्रमवासियों से कुछ लेने नहीं बल्कि देने आया है, सत्य होता जा रहा था। उम्र से एकदम युवा विनोबा उन्हें अनुशासन और कर्तव्यपरायणता का पाठ तो पढ़ा ही रहे थे। गांधी जी का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा था। उतनी ही तेजी से बढ़ रही आश्रम में आने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या. कोचरब आश्रम छोटा पड़ने लगा तो अहमदाबाद में साबरमती के किनारे नए आश्रम का काम तेजी से होने लगा. लेकिन आजादी के अहिंसक सैनिक तैयार करने का काम अकेले साबरमती आश्रम से भी संभव भी न था। गांधी वैसा ही आश्रम वर्धा में भी चाहते थे। वहां पर ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता की आवश्यकता थी, जो आश्रम को गांधी जी के आदर्शों के अनुरूप चला सके. इसके लिए विनोबा सर्वथा अनुकूल पात्र थे और गांधी जी के विश्वसनीय भी. 8 अप्रैल 1923 को विनोबा [[वर्धा]] के लिए प्रस्थान कर गए। वहां उन्होंने ‘महाराष्ट्र धर्म’ मासिक का संपादन शुरू किया। मराठी में प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका में विनोबा ने नियमित रूप से उपनिषदों और महाराष्ट्र के संतों पर लिखना आरंभ कर दिया, जिनके कारण देश में भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई थी। पत्रिका को अप्रत्याशित लोकप्रियता प्राप्त हुई, कुछ ही समय पश्चात उसको साप्ताहिक कर देना पड़ा विनोबा अभी तक गांधी जी के शिष्य और सत्याग्रही के रूप में जाने जाते थे। पत्रिका के माध्यम से जनता उनकी आध्यात्मिक पैठ को जानने लगी थी।
 
== द्वितीय विश्व युद्ध में भूमिका ==
द्वितीय विश्व युद्ध के समय युनाइटेेड किंगडम द्वारा भारत देश को जबरन युद्ध में झोंका जा रहा था जिसके विरुद्ध एक व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्तूबर, 1940 को शुरू किया गया था और इसमें गांधी जी
द्वारा विनोबा को प्रथम सत्याग्रही बनाया गया था। अपना सत्याग्रह शुरू करने से पहले अपने विचार स्पष्ट करते हुए विनोबा ने एक वक्तव्य जारी किया था। उसमें कहा गया था : "'''चौबीस वर्ष पहले ईश्वर के दर्शन की कामना लेकर मैंने अपना घर छोड़ा था। आज तक की मेरी जिंदगी जनता की सेवा में समर्पित रही है। इस दृढ़ विश्वास के साथ कि इनकी सेवा भगवान को पाने का सर्वोत्तम तरीका है। मैं मानता हूं और मेरा अनुभव रहा है कि मैंने गरीबों की जो सेवा की है, वह मेरी अपनी सेवा है, गरीबों की नहीं।'''" आगे उन्होंने इतना और जोड़ा : "'''मैं अहिंसा में पूरी तरह विश्वास करता हूं और मेरा विचार है कि इसी से मानवजाति की समस्याओं का समाधान हो सकता है। रचनात्मक गतिविधियां, जैसे खादी, हरिजन सेवा, सांप्रदायिक एकता आदि अहिंसा की सिर्फ बाह्य अभिव्यक्तियां हैं। ....युद्ध मानवीय नहीं होता। वह लड़ने वालों और न लड़ने वालों में फर्क नहीं करता। आज का मशीनों से लड़ा जाने वाला युद्ध अमानवीयता की पराकाष्ठा है। यह मनुष्य को पशुता के स्तर पर ढ़केल देता है। भारत स्वराज्य की आराधना करता है जिसका आशय है, सबका शासन। यह सिर्फ अहिंसा से ही हासिल हो सकता है। फासीवाद, नाजीवाद और साम्राज्यवाद में अधिक पर्क नहीं है। लेकिन अहिंसा से इसका मेल नहीं है। यह भयानक खतरे में पड़ी सरकार के लिए और परेशानी पैदा करता है। इसलिए गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का आह्वान किया है। यदि सरकार मुझे गिरफ्तार नहीं करती तो मैं जनता से विनम्र अनुरोध करूंगा कि वे युद्ध में किसी प्रकार की किसी रूप में मदद न करें। मैं उनको अहिंसा का दर्शन समझाऊंगा, वर्तमान युद्ध की विभीषिका भी समझाऊंगा तथा यह बताऊंगा की फासीवाद, नाजीवाद और साम्राज्यवाद एक ही सिक्के के दो अलग-अलग पहलू हैं।'''"
अपने भाषणों में विनोबा लोगों को बताते थे कि नकारात्मक कार्यक्रमों के जरिए न तो शांन्ति स्थापित हो सकती है और न युद्ध समाप्त हो सकता है। युद्ध रुग्ण मानसिकता का नतीजा है और इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रमों की जरूरत होती है। सिर्फ यूरोप के लोगों को नहीं समस्त मानव जाति को इसका दायित्व उठाना चाहिए।
 
 
 
 
== भूदान आंदोलन ==