"अहले सुन्नत वल जमात": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत हीन|date=मार्च 2015}}
'''अहले सुन्नत या सुन्नी उन्हें कहा जाता हैं जो क़ुरान और पैगम्बर मुहम्मद साहब के तरीके (सुन्नत)को ज़िन्दगी गुजरने का तरीका मानते हैं ये नाम शिया से अपने को अलग पएहचन बताने के लिए भी किया जाता हैं दक्षिण एशिया में आधिकारिक तौर पर अहले सुन्नत में बड़े तौर पर तीन गिरोह आते हैं बरेलवी ,देवबंदी, अहले हदीस या सलफ़ी. परन्तु वास्तविक सुन्नी सिर्फ बरेलवी ही है।
बरेलवी और देवबंदी मुहीम [[दक्षिण एशिया]] में [[सूफीवाद|सूफी आंदोलन]] के अंतर्गत एक उप-आंदोलन को कहा जाता है यह अहले सुन्नत वल जमात से निकली एक मुहिम हैं जिसे उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के [[भारत]] में [[रोहेलखंड]] स्थित [[बरेली]] से [[सुन्नी]] विद्वान [[अहमद रजा खान कादरी]] ने प्रारंभ किया था,। बरेलवी [[सुन्‍नी हनफी बरेलवी मुसलमान|सुन्‍नी हनफी बरेलवी मुसलमानों]] का एक बडा हिस्सा है जो अब बडी संख्या में [[भारत]], [[बांग्लादेश]], [[पाकिस्तान]] [[दक्षिण अफ्रीका]] एवं [[ब्रिटेन]] में संघनित हैं। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा कादरी ने अपनी प्रसिद्ध फतवा रजविया के माध्यम से भारत में पारंपरिक और रूढ़िवादी इस्लाम का बचाव करते हुए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। देवबंदी मुहीम को सुन्नीइस्माइल विद्वान् शाहदेहलवी वलीने उल्लाहवहाबी देहलवीसम्प्रदाए नेके संस्थापक मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब नज्दी से प्रभावित होकर शुरू किया था दक्षिण एशिया के ज़्यादातर सुन्नी या तो बरेलवी या देवबंदी होते हैं
[[अहले हदीस]] वह सुन्नी हैं जो सूफिज्म में विश्वास नहीं करते इन्हें सलफ़ी भी कहा जाता हैं कयो की ये इस्लाम को उस तरह समझने और मानाने का दावा करते हैं हैं जिस तरह सलफ(पहले ३०० साल के मुस्लमान) ने क़ुरान और सुन्नत को समझा, सलफ़ी सुन्नी उर्फ़ अहले हदीस ज़यादातर सऊदी अरब और क़तर में हैं असल में ये सुन्नी नही बल्कि वहाबी
है।पूरे विश्व के मुसलमानो में कट्टरपंथ फ़ैलाने का काम देओबंदी और वहाबी विचारधारा ने किया है।
1925 में अरब पर वहाबियो द्वारा क़ब्ज़े के बाद नाम बदलकर सऊदी अरब रख दिया और धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की विरासतों को मूर्तिपूजा(शिर्क) की संज्ञा देकर ढहा दिया गया जिसमे सैय्यदा फातिमा की मज़ार और उस्मान गनी की मज़ार शामिल है।
[[चित्र:TombSalimChisti.jpg|thumb|फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के मकबरे]]