"मानव का विकास": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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== मनुष्य का भविष्य ==
स्पष्ट है कि मस्तिष्क की वृद्धि पर ही मनुष्य के संपूर्ण विकास का बल रहा है। यह वृद्धि अब भी हो रही है या नहीं, यह कहना कठिन है, परंतु जितना कुछ विकास हो चुका है उसके आधार पर मानव और लुप्त सरीसृपों (डाइनोसॉरिया, इक्थियोसॉरिया आदि) के विकास से तुलनात्मक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। लुप्त सरीसृपों का शरीर भीमकाय (भार 40-60 टन तक) हो गया था। फलस्वरूप बृहत् शरीर की आवश्यकताओं को अपेक्षाकृत छोटा मस्तिष्क पूरा न कर सका और ये जंतु क्रमश: लुप्त होते गए। इसके प्रतिकूल मनुष्य में शरीर के अनुपात में अपेक्षाकृत मस्तिष्क कहीं बड़ा हो गया है, अतएव मनुष्य के मस्तिष्क की अधिकांश शक्ति शारीरिक आवश्यकताओं (भोजन, सुरक्षा आदि) को पूरा कर लेने के बाद भी शेष रह जाती है। यह शक्ति मनुष्य अपने सुख साधनों को एकत्रित करने तथा विज्ञान और तकनीकी उपलब्धियों को प्राप्त करने में लगा रहा है। इनमें विनाश के भी बीज निहित हैं। मनुष्य का भविष्य, अर्थात वह रहेगा अथवा सरीसृपियों की भाँति पृथ्वी रूपी रंगमंच पर अपना अभिनय समाप्त करके सदा के लिये लुप्त हो जाएगा, यह उसके विनाशकारी औजारों की शक्ति और उनके उपयोग पर निर्भर करता है। यदि उसका लोप हुआ, तो वह इस निष्कर्ष की पूर्ति करेगा कि प्रकृति में किसी जंतु के शरीर और मस्तिष्क विकास में समन्वय होना आवश्यक है। ऐसा न होने पर उस जंतु का भविष्य में अस्तित्व सदा अनिश्चित ही रहेगा।
==इन्हें भी देखें==
*[[मानव विकास (जीवविज्ञान)]] (ह्यूमन डेवलपमेन्ट)
[[श्रेणी:मानव विकास]]
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