"बहादुर शाह ज़फ़र": अवतरणों में अंतर

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किसी भी देश के इतिहास में बहादुर शाह जफर जैसे कम ही शासक होते हैं जो अपने देश को महबूबा की तरह मोहब्बत करते हैं और जीवन भर देशप्रेम में डूबे रहने के बाद कू-ए-यार (प्यार की गली) में जगह न मिल पाने की कसक के साथ परदेस में दम तोड़ देते हैं। यही बुनियादी फ़र्क़ था मूलभूत हिंदुस्तानी विचारधारा के साथ जो अपने देश को अपनी माँ मानते है।
 
बादशाह जफर ने जब रंगून में कारावास के दौरान अपनी आखिरी सांस ली तो शायद उनके लबों पर अपनी ही मशहूर गजल का यह शेर जरूर रहा होगा- "कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।"