"द्विजदेव (कवि )": अवतरणों में अंतर
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'''द्विजदेव (कवि ) ''' (१८३० -१८७१ ):रीति कालीन स्वच्छन्द
==साहित्य सृजन==
इन्होंने प्रणय भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज स्वाभाविक रूप से की है। निम्न पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :
;तू जो
+
;एहो ब्रजराज ! मेरो प्रेमधन लूटिबे को , बीरा खाय आये कितै आप के अनोखे नैन !
+
;हाय इन
;आवन समै में दुखदाइनि भई
== ऋतु -वर्णन==
ऋतू -वर्णन के क्षेत्र में
;मिलि माधवी आदिक फूल के व्याज विनोद -लवा बरसायो करै।
;रवि नाच लता गन तान वितान सबै विधि चित्त चुरायो करै।
;द्विजदेव जु
;चिरजीवो ,बसन्त
;घहरि घहरि घन सघन चहूँधा घेरि , छहरि छहरि विष -बूँद बरसावै ना।
;द्विजदेव की सौं अब चूकै मत दाँव ,ए रे पातकी पपीहा !तू पिया की धुनि गावै ना।।
*
;हौं तौ बिन प्रान ,प्रान चाहत तजोई
==प्रकाशित ग्रन्थ==
# श्रृंगार -बत्तीसी
# श्रृंगार -लतिका<ref
{{रीति काल के कवि}}
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==सन्दर्भ==
{{Reflist}}
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[[श्रेणी
[[श्रेणी
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