"गीताप्रेस": अवतरणों में अंतर

No edit summary
चित्र
पंक्ति 1:
[[File:Gita Press, Gorakhpur.gif|thumb|300PX|'''गीताप्रेस, गोरखपुर''' का मुख्य द्वार]]
{{merge|गीताप्रेस}}
'''गीताप्रेस''' या '''गीता मुद्रणालय''', विश्व की सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोरखपुर]] शहर के शेखपुर इलाके की एक इमारत में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है। इसमें लगभग २०० कर्मचारी काम करते हैं। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही गीताप्रेस को [[भारत]] में घर-घर में [[रामचरितमानस]] और [[भगवद्गीता]] को पहुंचाने का श्रेय जाता है। गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री 18 निजी थोक दुकानों के अलावा हजारों पुस्तक विक्रेताओं और ४२ प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बने गीता प्रेस के बुक स्टॉलों के जरिए की जाती है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा '''कल्याण''' (हिन्दी मासिक) और '''कल्याण-कल्पतरु''' (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है।
[[File:Gita Press Gorakhpur outlet at Kanpur Railway Station.jpg|thumb|300PX|गीताप्रेस का [[कानपुर]] रेलवे स्टेशन पर स्टॉल ]]
== स्थापना एवं परिचय ==
'गीताप्रेस' यहकी नामस्थापना हीसन् अपनेमें1923 पूर्णई० परिचयमें है।हुई इसकाथी। नामकरणइसके भगवानसंस्थापक श्रीकृष्णचन्द्रकीमहान अमोघ एवं कल्याणमयी वाणी 'गीता'के-मर्मज्ञ नामपर[[जयदयाल हुआगोयन्दका|श्री है।जयदयाल यहगोयन्दका]] एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। सन् 1923 ई० में इसकी स्थापना हुई थी।थे। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्यकासाहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपासेभगवत्कृपा से निरन्तर प्रगतिकेप्रगति पथपरके पथ पर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारतमेंभारत में अपितु विदेशोंमेंविदेशों में भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेसनेगीताप्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्रकेप्राणिमात्र कल्याणकीके कल्याण की भावना और आत्मोद्धारकीआत्मोद्धार की जो सीख दी है, वह सभीकेसभी के लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है।
करीब 90 साल पहले यानी 1923 में स्थापित गीता प्रेस द्वारा अब तक 45.45 करोड़ से भी अधिक प्रतियों का प्रकाशन किया जा चुका है। इनमें 8.10 करोड़ भगवद्गीता और 7.5 करोड़ रामचरित मानस की प्रतियां हैं। गीता प्रेस में प्रकाशित महिला और बालोपयोगी साहित्य की 10.30 करोड़ प्रतियों पुस्तकों की बिक्री हो चुकी है।
 
गीता प्रेस ने 2008-09 में 32 करोड़ रुपये मूल्य की किताबों की बिक्री की। यह आंकड़ा इससे पिछले साल की तुलना में 2.5 करोड़ रुपये ज्यादा है। बीते वित्त वर्ष में गीता प्रेस ने पुस्तकों की छपाई के लिए 4,500 टन कागज का इस्तेमाल किया।
यह भारत में हिन्दी धार्मिक पुस्तकों के सबसे बड़े प्रकाशक हैं।
 
गीता प्रेस की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण की हर माह 2.30 लाख प्रतियां बिकती हैं। बिक्री के पहले बताए गए आंकड़ों में कल्याण की बिक्री शामिल नहीं है। गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। औद्योगिक रूप से पिछडे¸ पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस प्रकाशन गृह से हर साल 1.75 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें देश-विदेश में बिकती हैं।
== स्थापना ==
 
गीता पे्रस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी कहते हैं, हम हर रोज 50,000 से ज्यादा किताबें बेचते हैं। दुनिया में किसी भी पब्लिशिंग हाउस की इतनी पुस्तकें नहीं बिकती हैं। धार्मिक किताबों में आज की तारीख में सबसे ज्यादा मांग रामचरित मानस की है। अग्रवाल ने कहा कि हमारे कुल कारोबार में 35 फीसदी योगदान रामचरित मानस का है। इसके बाद 20 से 25 प्रतिशत का योगदान भगवद्गीता की बिक्री का है।
'गीताप्रेस' यह नाम ही अपनेमें पूर्ण परिचय है। इसका नामकरण भगवान श्रीकृष्णचन्द्रकी अमोघ एवं कल्याणमयी वाणी 'गीता'के नामपर हुआ है। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। सन् 1923 ई० में इसकी स्थापना हुई थी। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्यका उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपासे निरन्तर प्रगतिके पथपर अग्रसर है। आज न केवल समूचे भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेसने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्रके कल्याणकी भावना और आत्मोद्धारकी जो सीख दी है, वह सभीके लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है।
इस संस्थाके संस्थापक ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका (सेठजी) भगवत्प्राप्त महापुरुष रहे हैं। कैसे जीवमात्रका वास्तविक कल्याण हो और कैसे सच्चे अर्थोंमें जीवन जिया जाय, इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिये इस संस्थाकी स्थापना हुई। श्रद्धेय श्रीसेठजीकी भगवद्-वाणी 'श्रीगीताजी'-में अपूर्व निष्ठा, आस्था एवं भक्ति रही है। 'इस ग्रन्थके पठन-पाठन, स्वाध्याय तथा चिन्तन-मनन से सब प्रकारका अभ्युदय और भगवत्प्राप्ति सहज सम्भव है' ऐसा सेठजीका अटूट विश्वास था। अतः उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीताका ही सहारा लिया और सद्भावोंका, सद्विचारोंका कैसे व्यापक प्रचार-प्रसार हो, इस दृष्टिसे उत्तम ग्रन्थोंका प्रकाशन प्रारम्भ कियागीताप्रेसके इस पावन सत्संकल्पकी सिद्धिमें नित्यलीलालीन भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारका विशेष अवदान रहा है, भाईजी 'कल्याण' जैसे आध्यात्मिक पत्रके आदि सम्पादक और सूत्रधार रहे हैं।
 
गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता की वजह यह है कि हमारी पुस्तकें काफी सस्ती हैं। साथ ही इनकी प्रिटिंग काफी साफसुथरी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीताप्रेस का उददेश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यह सदप्रचार के लिए पुस्तकें छापते हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों में [[हनुमान चालीसा]], दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू होती है।
गोबिन्दभवन-कार्यालय कोलकाताके नामसे सोसायटी पंजीयन अधिनियमके अन्तर्गत पंजीकृत गीताप्रेस अपने आरम्भिक-कालसे ही एक संस्थाके रूपमें प्रतिष्ठित रही है। सभीका ऐसा विश्वास है कि गीताप्रेसका सारा कार्य भगवान का कार्य है और भगवान स्वयं ही इसकी देखभाल करते हैं, तथापि निमित्त रूपमें अनेक महानुभावोंद्वारा इसके संचालनका दायित्व निर्वाह होता आ रहा है। प्रत्यक्षमें इस संस्थाके न्यास-मंडल (ट्रस्ट-बोर्ड) -द्वारा इसकी कार्य-प्रणालीको नियंत्रित किया जाता है। इस संस्थाकी चल-अचल सम्पत्तिका यहाँके न्यासीजनोंके साथ कोई भी व्यक्तिगत आर्थिक स्वार्थका सम्बन्ध नहीं है। गीताप्रेसके संस्थापक 'सेठजी' ने इस संस्थाके माध्यमसे अपने परिवारके किसी भी सदस्यका भरण-पोषण नहीं किया। इस संस्थाके सूत्रधार होते हुए भी उन्होंने अपने-आपको व्यक्तिगत प्रचारसे सर्वथा दूर रखा।
 
गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिंदी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।
== मुख्य प्रकाशन ==
गीताप्रेसद्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृतभाषामें गीताप्रेसका साहित्य प्रकाशित होता है, किन्तु अहिन्दीभाषी लोगोंकी असुविधाको देखते हुए अब तमिल, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, बँगला, गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजनासे लोगोंको लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषामें भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यहाँका प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धासे पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी यहाँका साहित्य पढ़नेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं।
:{| class="wikitable"
|-
|विषय
|कुल बिकी प्रतियाँ
|-
|श्रीमद्भगवद्गीता
|7.19 करोड़
|-
|श्रीरामचरितमानस एवं तुलसी-साहित्य
|7.00 करोड़
|-
|पुराण, उपनिषद् आदि ग्रन्थ
|1.90 करोड़
|-
|स्त्री एवं बालकोपयोगी साहित्य
|9.48 करोड़
|-
|भक्त चरित्र एवं भजनमाला
|6.51 करोड़
|-
|}
 
तमाम प्रकाशनों के बावजूद गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण की लोकप्रियता कुछ अलग ही है। माना जाता है कि रामायण के अखंड पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेषांक में इसके बारे में छपने के बाद ही हुई थी। कल्याण की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुरुआती अंक में इसकी 1,600 प्रतियां छापी गई थीं, जो आज बढ़कर 2.30 लाख पर पहुंच गई हैं। गरुड़, कूर्म, वामन और विष्णु आदि पुराणों का पहली बार हिंदी अनुवाद कल्याण में ही प्रकाशित हुआ था।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* {{official|http://www.gitapress.org}}
 
==गीता प्रेस की कुछ विशेषताएं==
== टीका ==
गीताप्रेस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-<ref>[http://panchjanya.com//Encyc/2015/9/4/गीता-प्रेस-रपट---किसने-कहा-बंद-हो-गई-गीता-प्रेस--.aspx गीता प्रेस/रपट - किसने कहा बंद हो गई गीता प्रेस ? ]</ref>
{{हिंदी प्रकाशक}}
* गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है।
* गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं।
* 92 वर्ष के इतिहास में मार्च, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करोड़, 25 लाख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गीता 11 करोड़, 42 लाख। रामायण 9 करोड़, 22 लाख। पुराण, उपनिषद् आदि 2 करोड़, 27 लाख। बालकों और महिलाओं से सम्बंधित पुस्तकें 10 करोड़, 55 लाख। भक्त चरित्र और भजन सम्बंधी 12 करोड़, 44 लाख और अन्य 12 करोड़, 35 लाख।
* मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अधिक पुस्तकों की 11 करोड़, 50 लाख से भी अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 संस्करण छपेे हैं।
* यहां कुल 15 भाषाओं (हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उडि़या, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू) में पुस्तकें प्रकाशित होेती हैं।
* यहां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम दाम पर बेची जाती हैं।
* पूरे देश में 42 रेलवे स्टेशनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं हैं।
* गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्र नहीं छापती है और न ही कोई विज्ञापन प्रकाशित होता है।
* गीता प्रेस से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 हजार प्रतियां छपती हैं। वर्ष का पहला अंक किसी विषय का विशेषांक होता है।
* गीता प्रेस का संचालन कोलकाता स्थित 'गोबिन्द भवन' करता है।
 
== सम्बन्धित संस्थाएं ==
गीताप्रेस, गोविन्द भवन कार्यालय, [[कोलकाता]] का भाग है।
 
अन्य सम्बन्धित संस्थान हैं :
* गीता भवन, [[हृषिकेश]]
* ऋषिकुल्-ब्रह्मचर्य आश्रम् (वैदिक विद्यालय), [[चुरू]], राजस्थान
* आयुर्वेद संस्थान, हृषिकेश
* गीताप्रेस सेवा दल (प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता करने के लिये)
* हस्त-निर्मित वस्त्र विभाग
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[जयदयाल गोयन्दका]]
* [[हनुमान प्रसाद पोद्दार]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.gitapress.org/hindi/homeH.htm '''गीताप्रेस''' का जालघर]
* [http://www.hindikhabar.com/article_details.php?NewsID=37 गीताप्रेस की स्थापना कैसे हुई?] (हिन्दी खबर)
* [http://hindi.webdunia.com/samayik/bbchindi/bbchindi/0705/20/1070520046_1.htm ग्लोबलाइजेशन के दौर में 'गीता प्रेस'] (वेबदुनिया)
* [http://www.pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=87976 चमत्कार है गीताप्रेस की सफलता] (प्रात:काल)
* [http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=480&Itemid=54 सनातन सांस्कृतिक क्रांति के हिमालय (हनुमानप्रसाद पोद्दर)]
 
[[श्रेणी:हिन्दीहिन्दू प्रकाशकधर्म]]
[[श्रेणी:भारत के प्रकाशन संस्थान]]