"भागवत पुराण": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। भागवत पुराण में महर्षि [[सूत|सूत गोस्वामी]] उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे [[विष्णु]] के विभिन्न [[अवतार|अवतारों]] के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सुतसूत गोस्वामी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि [[शुकदेव]] से सुनी थी। इसमें कुल बारह सकन्ध हैं। प्रथम काण्ड में सभी [[अवतार|अवतारों]] को सारांश रूप में वर्णन किया गया है।
 
आजकल 'भागवत' आख्या धारण करनेवाले दो पुराण उपलब्ध होते हैं :
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* (ख) श्रीमद्भागवत
 
अत: इन दोनों में पुराण कोटि मेमें किसकी गणना अपेक्षित है ? इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है।
 
विविध प्रकार से समीक्षा करने पर अंतत: यही प्रतीत होता है कि श्रीमद्भागवत को ही पुराण मानना चाहिए तथा देवीभागवत को उपपुराण की कोटि में रखना उचित है। श्रीमद्भागवत देवीभागवत के स्वरूपनिर्देश के विषय में मौन है। परंतु देवीभागवत 'भागवत' की गणना उपपुराणों के अंतर्गत करता है (1.3.16) तथा अपने आपको पुराणों के अंतर्गत। देवीभागपंचम स्कंध में वर्णित भुवनकोश श्रीमद्भागवत के पंचम स्कंध में प्रस्तुत इस विषय का अक्षरश: अनुकरण करता है। श्रीभागवत में भारतवर्ष की महिमा के प्रतिपादक आठों श्लोक (5.9.21-28) देवी भागवत में अक्षरश: उसी क्रम में उद्धृत हैं (8.11.22-29)। दोनों के वर्णनों में अंतर इतना ही है कि श्रीमद्भागवत जहाँ वैज्ञानिक विषय के विवरण के निमित्त गद्य का नैसर्गिक माध्यम पकड़ता है, वहाँ विशिष्टता के प्रदर्शनार्थ देवीभागवत पद्य के कृत्रिम माध्यम का प्रयोग करता है।