"मण्डावर, राजस्थान": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
मंडावर एक [[ऐतिहासिक]] [[ग्राम]] है जिसके [[प्रमाण]] यह अपने चारों ओर समेटे हुए है। वैसे तो मंडावर का [[इतिहास]] [[मुख्य]] रूप से [[मुगल]] काल से जाना जाता है। लेकिन इसका सीधा [[सम्बन्ध]] [[संत]] निगु॔ण जी से है। जिन्होने निगु॔ण पंथ की स्थापना की, संत निगु॔ण ने यही पर तप किया और समाधी ली, मंडावरकी [[तपोभूमि]] में निगु॔ण जी ने अपने प्रसिद [[दिव्य]] [[ग्रंथ]] अमर कथा की रचना की जिसके इकलोते कथा वाचक मंड़ावर के प्रसिद दिवगंत पंडित चंडिका प्रसाद वशिष्ट थे। इतिहास मे पहला ज़िक्र मंडावर का मुगल काल के समय से माना जाता है, जब तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब ने [[राजस्थान]] की [[जयपुर]] [[रियासत]] पर किसी कारणवश [[आक्रमण]] के आदेश दे दिये, तब तत्कालीन जयपुर महाराज जयसिंह घबरा गये तब अपने [[राजपुरोहित]] की सलाह पर महाराज जयसिंह संत निगु॔ण जी की शरण में मंडावर आये निगु॔ण जी ने महाराज जयसिंह को निभ॔य होकर जयपुर जाने को कहा। संत निगु॔ण जी की कृपा से शाही सेना जो करीरी की घाटी [करोली] में ठहरी हुयी थी देवीय प्रकोप से आगे नही जा सकी, तब संत निगु॔ण जी की प्रसिद्दी सुनकर शाही सेना के मुख्य अधिकारी संत निगु॔ण जी की शरण में मंडावर आये संत निगु॔ण जी ने शाही सेना के मुख्य अधिकारी को जयपुर रियासत पर आक्रमण न करने के आदेश दिये एवं यह आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब को कहने को कहा मुगल बादशाह [[औरंगजेब]] ने घबराकर जयपुर रियासत पर [[आक्रमण]] करने के आदेश [[वापस]] ले लिये। इस घटना के बाद रियासत के [[महाराज]] जयसिंह संत निगु॔ण जी का आभार प्रकट करने मंडावर आये उस [[समय]] मंडावर जयपुर रियासत का [[प्रमुख]] ग्राम होगया। ब्रिटीश काल में मंडावर [[खालसा]] ग्राम था। जब पूरा देश ब्रिटीश शासन के खिलाफ खड़ा था।
 
[[श्रेणी:राजस्थान के ग्राम]]