"अणुव्रत": अवतरणों में अंतर

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'''अणुव्रत''' का अर्थ है लघुव्रत। [[जैन धर्म]] के अनुसार [[श्रावक]], अणुव्रतों का पालन करते हैं। '[[महाव्रत]]' साधुओं के लिए बनाए जाते हैं। यही अणुव्रत और [[महाव्रत]] में अंतर है, [[अन्यथा]] दोनों [[समान]] हैं। अणुव्रत इसलिए कहे जाते हैं कि साधुओं के महाव्रतों की अपेक्षा वे [[लघु]] होते हैं। महाव्रतों में सर्वत्याग की अपेक्षा रखते हुए सूक्ष्मता के साथ व्रतों का पालन होता है, जबकि [[अणु]] व्रतों का स्थूलता से पालन किया जाता है।
 
अणुव्रत पाँच होते हैं- (1) [[अहिंसा]], (2) [[सत्य]], (3) [[अस्तेय]], (4) [[ब्रह्मचर्य]] और (5) अपरिग्रह।[[अपरिग्रह]]।
 
# जीवों की स्थल हिंसा के [[त्याग]] को अहिंसा कहते हैं।
# राग-द्वेष-युक्त स्थूल असत्य भाषण के त्याग को सत्य कहते हैं।
# बुरे इरादे से स्थूल रूप से दूसरे की वस्तु अपहरण करने के त्याग को अस्तेय कहते हैं।
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# धन, धान्य आदि वस्तुओं में इच्छा का परिमाण रखते हुए परिग्रह के त्याग को अपरिहार्य कहते हैं।
 
== धर्म और [[सम्प्रदाय]] ==
[[नैतिकता]] शून्य धर्म ने [[धार्मिक]] कट्टरता को बढ़ावा दिया। [[धर्म]] गौण हो गया, सम्प्रदाय [[मुख्य]] हो गए। अपेक्षा यह है कि धर्म मुख्य रहे और सम्प्रदाय गौण हों। इस संदर्भ में [[अणुव्रत]] ने एक नया द्रष्टिकोण दिया। उसने सम्प्रदाय मुक्त धर्म कि [[अवधारणा]] दी। अणुव्रत केवल धर्म है, वह सम्प्रदाय नहीं। किसी सम्प्रदाय विशेष का प्रतिनिधि भी नहीं है। यह जैन, [[बौध]], [[वैदिक]], [[इस्लाम]] और [[इसाई]] धर्म नहीं है। इस द्रष्टि से इसे एक निर्विशेषण धर्म या [[मानव]] धर्म कहा जा सकता है। अणुव्रत के अनुसार नैतिक हुए बिना [[धार्मिक]] नहीं हो सकता। उपासना धर्माराधना का माध्यम है। [[अणुव्रत]] के अनुसार [[उपासना]] का स्थान दूसरा है और धर्म का पहला।
 
== शब्द की [[व्युत्पत्ति]] ==
अणु का अर्थ है छोटा और [[व्रत]] का अर्थ है -संस्कार।[[संस्कार]]। अणुव्रत कि शाब्दिक [[परिभाषा]] इतनी ही है, पर इसकी [[भावना]] व्यापक है। उसके अनुसार किसी छोटे से छोटे [[प्राणी]] से भी अनावश्यक हिंसा न की जाए।
 
== नैतिकता का [[स्वरूप]] ==
अणुव्रत के आधार पर नैतिकता का मानदंड है संयम। संयम आत्ममुखी भी है तथा समाजाभिमुखी भी है। अपनी इन्द्रियों पर संयम करना आत्मभिमुखी कार्य भी है, वह नैतिकता भी हो सकता है। अणुव्रत का मूल मन्त्र है 'संयमः खलु जीवनम' अर्थात [[संयम]] ही जीवन है। इसका अर्थ है नैतिक [[कार्य]] वाही है जहाँ [[संयम]] है। इसके अनुसार जिस कार्य में साथ [[संयम]] नहीं है, उस कार्य को कभी नैतिक नहीं कहा जा सकता।
 
== अणुव्रत की जीवन शैली ==
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# सह अस्तित्व कि भावना का विकास
# सांप्रदायिक सदभाव
# अहिंसात्मक [[प्रतिरोध]]
# व्यक्तिगत संग्रह और भोगोपयोग की सीमा
# व्यवहार में प्रामाणिकता
# साधन-शुधि कि आस्था
# अभय, [[तटस्थ]] ता और सत्य - निष्ठा
 
अणुव्रत के अनुसार इच्छा बढ़ाना अच्छा नहीं है क्योंकि इच्छाएं अनंत होती है और अनंत इच्छाएं दूसरों के अधिकार का हनन करती हैं और व्यक्ति को क्रूर बना देती है। अणुव्रत का लक्ष्य इच्छाओं का संयम है।
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इसका अर्थ है: कोई भी व्यक्ति दुखी न बने, सब सुखी और निरामय बनें। सबका कल्याण हो। ऐसा व्यक्ति किसी के साथ छलना नहीं कर सकता।
 
== [[इतिहास]] ==
अणुव्रत का प्रारंभ आचार्य तुलसी (तेरापंथ धर्म संघ के नोवें आचार्य) द्वारा १ मार्च १९४९ में [[राजस्थान]] के [[सरदारशहर]] कस्बे में हुआ। उस समय एक और देश सांप्रदायिक [[ज्वाला]] में [[जल]] रहा था, वहां दूसरी और सभी [[प्रमुख]] लोग देश के [[भौतिक]] निर्माण में [[विशेष]] अभिरूचि ले रहे थे | अणुव्रत आन्दोलन ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए सभी धर्म-सम्प्रदाय के प्रमुख -पुरुषों को एक मंच पर लाकर यह समझाने की कौशिश की गयी कि धर्म के मौलिक सिधांत एक हैं। जो भिन्नता दिखाई दे रही है वह या तो एकांत आग्रह कि देन है या फिर सांप्रदायिक स्वार्थों के कारण उसे उभरा जा रहा है। इस द्रष्टि से [[विशाल]] सर्व धर्म सदभाव सम्मलेन आयोजित किये गए और अणुव्रत का मंच एक सर्वधर्म सदभाव का प्रतिक बन गया। भारतीय धर्म सम्प्रदायों के अतिरिक्त इसाई तथा मुसलमान सम्प्रदायों के साथ भी एक सार्थक संवाद बना और अनेक ईसाई तथा मुसलमान लोगों ने भी अणुव्रत के प्रचार-प्रसार में रूचि दिखाई। जगद्गुरु [[शंकराचार्य]], दलाई लामा, [[ईसाई]] पादरी, मुसलमान संतो ने भी इसमें भाग लिया।
 
== कार्य क्षेत्र ==
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=== जीवन - विज्ञान ===
शिक्षा में सुसंस्कारों के आरोपण तथा भावात्मक परिवर्तन के लिए अणुव्रत की और से जीवन-विज्ञान का एक [[आयाम]] प्रस्तुत हुआ।
 
== अणुव्रत : आचार संहिता ==