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'''कुबेर''' एक हिन्दू पौराणिक पात्र हैं जो धन के स्वामी (धनेश) माने जाते हैं। वे [[यक्ष|यक्षों]] के राजा भी हैं। वे उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं और [[लोकपाल]] (संसार के रक्षक) भी हैं।
 
[[रामायण]] में '''कुबेर''' [[भगवान]] [[शंकर]] को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से [[पार्वती]] की ओर बायें [[नेत्र]] से देखा। पार्वती के [[दिव्य]] तेज से वह नेत्र [[भस्म]] होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया। वह घोर तप या तो शिव ने किया था या फिर [[कुबेर]] ने किया, अन्य कोई भी [[देवता]] उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-'तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षीपिंगल कहलाओंगे। [1]
 
कुबेर ने [[रावण]] के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का [[संदेश]] दिया कि रावण [[अधर्म]] के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। रावण के नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गये हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी [[खड्ग]] से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर का यह सब जानकर बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से [[युद्ध]] हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: [[राक्षस]] विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर [[प्रहार]] करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका पुष्पक विमान ले लिया। [2]
 
विश्वश्रवा की दो पत्नियां थीं। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। शेष रावण, [[कुंभकर्ण]] और [[विभीषण]] सौतेले भाई थे। उन्होंने अपनी मां से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान लेकर [[लंका]] पुरी तथा समस्त [[संपत्ति]] छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गये। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। गौतमी के तट का वह स्थल धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। [3]
 
[[श्रेणी:हिन्दू देवता]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कुबेर" से प्राप्त