"दुलादेव मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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'''दुलादेव मन्दिर''' (या दुल्हादेव मन्दिर) [[भारत]] के [[मध्य प्रदेश]] राज्य के [[खजुराहो]] स्थान में बना एक [[हिन्दू मन्दिर]] है। यह मूलतः [[शिव]] मंदिर है। इसको कुछ इतिहासकार कुंवरनाथ मंदिर भी कहते हैं। इसका निर्माणकाल लगभग सन् १००० ई. है। मंदिर का आकार ६९ न् ४०' है। यह मंदिर प्रतिमा वर्गीकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर है। निरंधार प्रासाद प्रकृति का यह मंदिर अपनी नींव योजना में समन्वित प्रकृति का है। मंदिर सुंदर प्रतिमाओं से सुसज्जित है। इसमें गंगा की चतुर्भुज प्रतिमा अत्यंत ही सुंदर ढ़ंग से अंकित की गई है। यह प्रतिमा इतनी आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक है कि लगता है कि यह अपने आधार से पृथक होकर आकाश में उड़ने का प्रयास कर रही है। मंदिर की भीतरी बाहरी भाग में अनेक प्रतिमाएँ अंकित की गई है, जिनकी भावभंगिमाएँ सौंदर्यमयी, दर्शनीय तथा उद्दीपक है। नारियों, अप्सराओं एवं मिथुन की प्रतिमाएँ, इस तरह अंकित की गई है कि सब अपने अस्तित्व के लिए सजग है। भ्रष्ट मिथुन मोह भंग भी करते हैं, फिर अपनी विशेषता से चौंका भी देते हैं।<ref>[http://cityvoice.in/blog/2015/08/23/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9A%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0-%E0%A4%96%E0%A4%9C/ भारत के चमत्कारी मंदिर – खजुराहो का मंदिर ]|सिटीवॉयस।२३ अगस्त, २०१५।अभिगमन तिथि: ७ मई, २०१७</ref>
 
==अलंकरण==
इस मंदिर के पत्थरों पर "वसल' नामक कलाकार का नाम अंकित किया हुआ मिला है। मंदिर के वितान गोलाकार तथा स्तंभ अलंकृत हैं और नृत्य करती प्रतिमा एवं सुंदर एवं आकर्षिक हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग योनि- वेदिका पर स्थापित किया गया है। मंदिर के बाहर मूर्तियाँ तीन पट्टियों पर अंकित की गई हैं। यहाँ हाथी, घोड़े, योद्धा और सामान्य जीवन के अनेकानेक दृश्य प्रस्तुत किये गए हैं। अप्सराओं को इस तरह व्यवस्थित किया गया है कि वे स्वतंत्र, स्वच्छंद एवं निर्बाध जीवन का प्रतीक मालूम पड़ती है।
 
इस मंदिर की विशेषता यह है कि अप्सरा टोड़ों में अप्साओं को दो- दो, तीन- तीन की टोली में दर्शाया गया है। मंदिर, मंण्डप, महामंडप तथा मुखमंडप युक्त है। मुखमंडप भाग में गणेश और वीरभद्र की प्रतिमाएँ अपनी रशिकाओं में इस प्रकार अंकित की गई है कि झांक रही दिखती है। यहाँ की विद्याधर और अप्सराएँ गतिशील हैं। परंतु सामान्यतः प्रतिमाओं पर अलंकरण का भार अधिक दिखाई देता है। प्रतिमाओं में से कुछ प्रतिमाओं की कलात्मकता दर्शनीय एवं सराहनीय है। अष्टवसु मगरमुखी है। यम तथा नॠत्ति की केश सज्जा परंपराओं से पृथक पंखाकार है।
 
==स्थापत्य==
मंदिर की जगती ५' उँची है। जगती को सुंदर एवं दर्शनीय बनाया गया है। जंघा पर प्रतिमाओं की पंक्तियाँ स्थापित की गई हैं। प्रस्तर पर पत्रक सज्जा भी है। देवी- देवता, दिग्पाल तथा अप्सराएँ छज्जा पर मध्य पंक्ति देव तथा मानव युग्लों एवं मिथुन से सजाया गया है। भद्रों के छज्जों पर रथिकाएँ हैं। वहाँ देव प्रतिमाएँ हैं। दक्षिणी भद्र के कक्ष- कूट पर गुरु- शिष्य की प्रतिमा अंकित की गई है।