"निकोलो मैकियावेली": अवतरणों में अंतर

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[[File:Machiavel Offices Florence.jpg|thumb|right|निकोलो मैकियावेली]]
 
==सन्दर्भ==
==मानव स्वभाव ==मैकियावेली का मानना है की मनुष्य स्वार्थी होता है। और मनुष्य सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है।
स्वार्थी
अपने बारे में ही सोचने वाला
स्वार्थ है - सत्ता और धन हासिल करने में
धन और सत्ता में मनुष्य महत्वकांशी बनता है
महत्वकांशा से मनुष्य वर्तमान से असंतुष्ट/अतीत से नफरतऔर भविष्य से आशा रखता है
वर्तमान से असंतुष्ट - क्योंकि सत्ता और धन कम् है , मानुष को हमेशा लगेगा उसकी न ख़त्म होने वाली महत्वकांशा के कारण
अतीत मुरखपुर्ण से जिया - अतीत मूर्खता का समय था क्योंकि उस समय सत्ता और धन प्रपात नहीं हुआ था
भविष्य -भविष्य से आशा को बनायीं रखती है महत्वकांशा जो धन और सत्ता की कामना ने मनुष्य के अंदर उत्पन की है।
मनुष्य अपने हित्तों के बारे में ही सोचता है :
मनुष्य अविवेकी है/मनुष्य विवेकशील नहीं है
प्रेम और डर; इन चीजो से ही मनुष्य कोई काम करता है
मनुष्य के विवेक की परिभाषा : मनुष्य के विवेक में प्रेम और डर दो तथ्य हैं
मैकियावेली कहता है की कई मनुष्य अविवेकी होते है और वो अपना हिट भी नहीं जानते होते हैं। प्लेटो भी अपनी रचना रिपब्लिक में एक जगह कहता है की राजा अपने ही हिटो के विरोध में भी फैसला ले सकता है अपने ज्ञान की कमी के कारण।
मैकियावेली कहते हैं सरे मनुष्य अपने हित्तों के बारे में सोचते हैं यह मनुष्य की प्रकिरती है। लेकिन शक्तिशाली और चालाक को सरे मनुष्य अपनी शक्ति और साधनो पर प्रभुत्व दे देते हैं क्योंकि सामने वाला लोगो को यकीन दिलाता है की वो उन सब के लिए काम करेगा , उन सब की रक्षा करेगा , और सभी लोग मान भी जाते हैं क्योंकि वो डरे रहते है अपने धन की रक्षा के लिए। क्योंकि उनका विवेक डर को आधार बनाकर काम करता है इस लिए वो आसानी से अपनी शक्ति साधन और प्रभुत्व सौंप देते हैं। मैकियावेली कहता है की वो लोग गुमराह हो रहे हैं की सामने वाला हमारे लिए कुछ करेगा पर ऐसा नहीं होता। क्योंकि सामने वाला मात्र अपनी शक्ति/धन/और सत्ता को बढ़ाने के लिए यह सब कर रहा है क्योंकि यही मानव प्रकिरती है।
प्रेम और डर : मैकियावेली कहते हैं मानव के हर एक काम के पीछे उसका डर या प्रेम होता है दूसरे शब्दो में कहे तो मनुष्य डर या प्रेम के कारण ही मानव कोई काम करता है। और डर इसमें पहले स्थान पर है, डर का प्रभाव मानव के विचारो/सोच/किर्या/ में ज्यादा रहता है। मैकियावेली इसको विवेक के साथ जोड़ देते है। वो कहते है की मनुष्य का विवेक प्रेम और डर से मिल कर बना है या यु कहे की मनुष्य का विवेक डर और प्रेम को जल्दी समझ लेता है और निर्णय में डर या प्रेम को आधार बनाता है।
मानव विवेकशील है पर आचरण अविवेकी , मैकियावेली के अनुसार मनुष्य अनैतिक/असामाजिक है। मनुष्य में विवेक तो है पर वो इसे आचरण में नहीं लाता, इसके आगे वो कहते है की मनुष्य में विवेक है पर उसका आचरण पशुयो के भांति है क्योंकि वो अविवेक के आधारित वर्ताव करता है।
 
मानव सवभाव और राजनीतिक संस्थाए/ मानव स्वभाव और राज्य
मैकियावेली पहले मानव स्वभाव के बारे में बताते है फिर वो कहते हैं की ऐसे मानव स्वभाव से क्या राजनीतिक प्रस्थिति पैदा होती है और फिर किस तरह की राजनीतिक विवस्था उत्पन होती है। इसके साथ ही मैकियावेली राज्य के जनम के बारे में भी विचार प्रगट करते है।
 
राज्य की उत्पत्ति : मैकियावेली सबसे पहले कहते हैं की मनुष्य कोई सामाजिक प्राणी नहीं है इस लिए राज्य भी कोई सुभाविक संस्था नहीं है। मानव सवभाव में डर है इसके चलते ही राज्य का जनम हुआ है। मानव को प्रकिर्तिक जीवन में अपनी संपत्ति और जीवन की सुरक्षा चाहिए थी , उसे और मानव से डर था क्योंकि सभी अनैतिक और झगड़ालू थे। इस लिए मनुष्य ने राज को स्थापित किया। राज्य कोई प्रकिर्तिक ढंग से नहीं बना वरन ये चेतन रूप से स्थापित की गई एक संस्था है।
राज्य का उदेश्य/राज्य का धर्म : राज्य और शाशक का पहला काम है वियक्ति की संपत्ति और जीवन की सुरक्षा करना। क्योंकि यही राज की उचितता Legitimacy का आधार है। इसी काम के लिए राज्य का जनम हुआ है। भर्ती दर्शन की भाषा में कहे तो वियक्ति की संपत्ति और जीवन की रक्षा करना राज्य का धर्म है।
शाशन विवस्था कैसी हो : मैकियावेली कहते है की मनुष्य का स्वभाव झगड़ालू/इर्खालु/अनैतिक/असामाजिक है इस लिए इन्हें वयवस्थित बनाये रखने के लिए एक शक्तिशाली पद/शाशन व्य्वस्था की जरुरत है जो हो निरंकुश राजतंत्र। राज्य का धर्म सुरक्षा Provide करवाना ; इस लिए राज्य में एक शक्तिशाली सत्ता पद स्थापित हो , जो सिर्फ निरंकुश राजतंत्र में ही मुमकिन है जबकि लोकतंत्र एक ढीली प्रणाली है।
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