"१९७१ का भारत-पाक युद्ध": अवतरणों में अंतर

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पाकिस्तानी वायुसेना ने इस अभियान में अत्यधिक सीमित भाग लिया, इनके सहयोग में [[जॉर्डन]] से [[:w:F-104|एफ़-१०४]], [[मध्य-पूर्व]] के एक अज्ञात सहयोगी (अभी तक) द्वारा [[:w:Mirage III|मिराज विमानों]] तथा [[साउदी अरब]] से एफ़-८६ विमान आते रहे।{{rp|107}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> इनके आगमन से पाकिस्तानी वायुसेना की क्षमता एवं हानि पर से पूर्ण रूप से पर्दा नहीं हट सका। [[लीबिया|लीबियाई]] [[:w:Northrop F-5|एफ़-५]] विमानों को संभवतः एक संभावित प्रशिक्षण इकाई के रूप में [[:w:Sargodha Airbase|सरगोधा बेस]] पर तैनात किया गया जो पाकिस्तानी विमानचालकों को साऊदी अरब से और एफ़-५ विमानों की आवक हेतु प्रशिक्षित कर सकें।{{rp|112}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> भा.वा.सेना कई प्रकार के कार्य सफ़लतापूर्वक करती रही, जैसे – सैनिकों को सहायता पहुंचाना; हवाई मुकाबले, गहरी पैठ वाले हमले, शत्रु ठिकानों के निकट पैरा-ड्रॉपिंग; वास्तविक लक्ष्य से शत्रु सेनानियों को दूर रखने, बमबारी और टोह लेने के कार्य।{{rp|107}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> इसके मुकाबले पाक वायुसेना जो मात्र हवाई हमलों में केन्द्रित रही, युद्ध के प्रथम सप्ताह तक महाद्वीपीय आकाश से विलुप्त हो चली थी।{{rp|107}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> जो कोई पाक सेना विमान बचे भी थे, उन्होंने या तो ईरानी वायुबेस में शरण ली या कंक्रीट के बंकरों में जा छिपे व आगे किसी हमले से हाथ ही खींच लिया।<ref>[http://in.rbth.com/blogs/2015/06/04/why_the_indian_air_force_has_a_high_crash_rate_43501 Why the Indian Air Force has a high crash rate]</ref>
 
युद्ध के आक्रमण आधिकारिक रूप से १५ दिसम्बर को [[ढाका पर अधिकार]] एवं भारत के पाकिस्तान की भूमि पर बड़े स्तर पर अधिकार के दावे के उपरान्त (हालांकि युद्धोपरान्त पुनः युद्ध-पूर्व सीमाएं स्थापित कर दी गईं) १७ दिसम्बर १९७१ को १४:३० ([[यूटीसी]]) बजे पाकिस्तान के पूर्वी भाग को बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता की घोषणा के बाद बंद किये गए।{{rp|107}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> भारत ने पूर्व में १,९७८ उड़ानें भरीं और पश्चिम में पाकिस्तान पर ४,०००; जबकि पाकिस्तान ने लगभग पूर्व में ३० तथा पश्चिमी मोर्चे पर २,८४०।{{rp|107}}<ref name="Pen and Sword, Bowman"/> ८०% से अधिक भारतीय वायुसेना की उड़ानें पुरी सहायता सहित एवं चौकी के नियंत्रण में रहीं, और लगभग ४५ विमान लापता हो गये।<ref name="Encyclopedia of the Developing World, Volume 3">{{cite book|last1=M. Leonard|first1=Thomas|title=Encyclopedia of the Developing World|url=https://books.google.com/?id=gc2NAQAAQBAJ&pg=PA806&dq=pakistan+lost+aircrafts+1965#v=onepage&q=pakistan%20lost%20seventy%20five&f=false|accessdate=2015-07-13|year=2006|publisher=Taylor & Francis|isbn=978-0415976640|page=806}}</ref>
 
पाक ने ४५ विमान खोये<ref name="Encyclopedia of the Developing World, Volume 3">{{cite book|last1=M. Leonard|first1=Thomas|title=Encyclopedia of the Developing World|url=https://books.google.com/?id=gc2NAQAAQBAJ&pg=PA806&dq=pakistan+lost+aircrafts+1965#v=onepage&q=pakistan%20lost%20seventy%20five&f=false|accessdate=2015-07-13|year=2006|publisher=Taylor & Francis|isbn=978-0415976640|page=806}}</ref> जिनमें उन एफ़-६, मिराज ३, या ६ जॉर्डनियाई एफ़-१०४ की गिनती नहीं हैं जो अपने दानदाताओं के पास कभी नहीं पहुंच पाये।<ref name="Encyclopedia of the Developing World, Volume 3"/> उड़ानों की हानि में इतने बड़े स्तर के असन्तुलन का कारण भा.वा.सेना के उल्लेखनीय स्तर की बड़ी उड़ान दर तथा उनके भूमि मार पर जोर देने के कारण कहा जा सकता है। <ref name="Encyclopedia of the Developing World, Volume 3"/> भूमि के मोर्चों पर पाक के ८,००० सैनिक मृत एवं २५,००० घायल हुए जबकि भारत के ३,००० सैनिक मृत तथा १२,००० घायल हुए। <ref name="Century Air Warfare 1997, pages 384"/> सशस्त्र वाहनों की क्षति भी इसी प्रकार असन्तुलित ही थी और इसी से अन्त में पाकिस्तान की भारी हार को आंका जाता है।<ref name="Century Air Warfare 1997, pages 384">''The Encyclopedia of 20th Century Air Warfare'', edited by Chris Bishop (Amber publishing 1997, republished 2004 pages 384–387 ISBN 1-904687-26-1)</ref>
 
== सन्दर्भ ==