"अंतरराष्ट्रीय न्यायालय": अवतरणों में अंतर
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स्थायी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की कल्पना उतनी ही सनातन है जितनी [[अंतरराष्ट्रीय विधि]], परंतु कल्पना के फलीभूत होने का काल वर्तमान शताब्दी से अधिक प्राचीन नहीं है। सन् 1899 ई. में, [[हेग]] में, प्रथम शांति सम्मेलन हुआ और उसके प्रयत्नों के फलस्वरूप स्थायी विवाचन न्यायालय की स्थापना हुई। सन् 1907 ई. में द्वितीय शांति सम्मेलन हुआ और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार न्यायालय (इंटरनेशनल प्राइज़ कोर्ट) का सृजन हुआ जिससे अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रशासन की कार्य प्रणाली तथा गतिविधि में विशेष प्रगति हुई। तदुपरांत 30 जनवरी 1922 ई. को लीग ऑव नेशंस के अभिसमय के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का विधिवत् उद्घाटन हुआ जिसका कार्यकाल राष्ट्रसंघ (लीग ऑव नेशंस) के जीवनकाल तक रहा। अंत में वर्तमान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ की अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संविधि के अंतर्गत हुई।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में [[समान्य सभा]] द्वारा 15 न्यायाधीश चुने चाते है। यह न्यायाधीश नौ साल के लिए चुने जाते है और फ़िर से चुने जा सकते है। हर तीसरे साल इन 15 न्यायाधीशों में से पांच चुने जा सकत्ते है। इनकी सेवानिव्रति की आयु, कोई भी दो न्यायाधीश एक ही राष्ट्र के नहीं हो सकते है और किसी न्यायाधीश की मौत पर उनकी जगह किसी समदेशी को दी जाती है। इन न्यायाधीशों को किसी और ओहदा रखना मना है। किसी एक न्यायाधीश को हटाने के लिए बाकी के न्यायाधीशों का सर्वसम्मत निर्णय जरूरी है। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उपसभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
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=== तदर्थ न्यायाधीश ===
जब किसी दो राष्ट्रों के बीच का संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने आता है, वे राष्ट्र चाहे तो किसी समदेशी तदर्थ न्यायाधीश को नामजद कर सक्ती हैं। इस प्रक्रिया का कारण था कि वह देश जो न्यायालय में प्रतिनिधित्व नहीं है भी अपने संधर्षों के निर्णय अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को लेने दे।
== क्षेत्राधिकार ==
अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलित समस्त राष्ट्र अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। इसका क्षेत्राधिकार संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र अथवा विभिन्न; संधियों तथा अभिसमयों में परिगणित समस्त मामलों पर है। अंतरर्राष्ट्रीय न्यायालय संविधि में सम्मिलत कोई राष्ट्र किसी भी समय बिना किसी विशेष प्रसंविदा के किसी ऐसे अन्य राष्ट्र के संबंध में, जो इसके लिए सहमत हो, यह घोषित कर सकता है कि वह न्यायालय के क्षेत्राधिकार को अनिवार्य रूप में स्वीकार करता है। उसके क्षेत्राधिकार का विस्तार उन समस्त विवादों पर है जिनका संबंध संधिनिर्वचन, अंतरर्राष्ट्रीय विधि प्रश्न, अंतरर्राष्ट्रीय आभार का उल्लंघन तथा उसकी क्षतिपूर्ति के प्रकार एवं सीमा से है।
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