"पेशवा": अवतरणों में अंतर

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'''{{मुख्य|बालाजी विश्वनाथ भट ('''१६६२-१७२०'''}}'''
 
पेशवाओं के क्रम में सातवें पेशवा किंतु पेशवाई सत्ता तथा पेशवावंश के वास्तविक संस्थापक, चितपावन ब्राह्मण, बालाजी विश्वनाथ का जन्म १६६२ ई. के आसपास श्रीवर्धन नामक गाँव में हुआ था। उसकेउनके पूर्वज श्रीवर्धन गाँव के मौरूसी देशमुख थे। धनाजी घोरपडे के सहायक के रूप में तारा रानी के दरबार लिपिक वर्ग से इन्होने अपने करियर की शुरुआत की एवं जल्द ही अपनी बौद्धिक प्रतिभा के बल पर दौलताबाद के सर-सुभेदार नियुक्त किये गए | सीदियों के आतंक से बालाजी विश्वनाथ को किशोरावस्था में ही जन्मस्थान छोड़ना पड़ा, किंतु अपनी प्रतिभा से उसनेउन्होंने उत्तरोत्तर उन्नति की तथा साथ में अमितबहोत अनुभव का भी संचय किया। औरंगजेब के बंदीगह से मुक्ति पा राज्यारोहण के ध्येय से जब महाराजा शाहू ने महाराष्ट्र में पदार्पण किया, तब बालाजी विश्वनाथ ने उसका पक्ष ग्रहण कर उसकी प्रबल प्रतिद्वंद्विनी ताराबाई तथा प्रमुख शत्रु चंद्रसेन जाघव, ऊदाजी चव्हाण और दामाजी योरट को परास्त कर न केवल शाहू को सिंहासन पर आरूढ़ किया, वरन् उसकी स्थिति सुदृढ़ कर महाराष्ट्र को पारस्परिक संघर्ष से ध्वस्त होने से बचा लिया। फलत: कृतज्ञ शाहू ने १७१३ में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा नियुक्त किया। तदनंतर, पेशवा ने सशक्त पोतनायक कान्होजी आंग्रे से समझौता कर (१७१४) शाहू की मर्यादा तथा राज्य की अभिवृद्धि की। उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य मुगलों से संधिस्थापन था, जिसके परिणामस्वरूप मराठों को दक्खिन में चौथ तथा सरदेशमुखी के अधिकार प्राप्त हुए (१७१९)। इसी सिलसिले में पेशवा की दिल्ली यात्रा के अवसर पर मुगल वैभव के खोखलेपन की अनुभूति हो जाने पर महाराष्ट्रीय साम्राज्यवादी नीति का भी बीजारोपण हुआ। बालाजी विश्वनाथ की असंदिग्ध महानता के बावजूद, महाराष्ट्र संघ के शैथिल्य और त्रुटिपूर्ण आर्थिक व्यवस्था का उसपर दोषारोपण किया जाता है। अद्भुत कूटनीतिज्ञता उसकीउनकी विशेषता मानी जाती है।
बालाजी विश्वनाथ की पत्नी का नाम राधा बाई था | उनके दो पुत्र एवं दो कन्याए थी | उनका बड़ा पुत्र बाजीराव उनके पश्चात पेशवा बने |
 
== बाजीराव प्रथम ==
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