"घूर्णाक्षदर्शी": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:3D Gyroscope.png|right|thumb|250px|घूर्णदर्शी और उसके भाग]]
घूर्णाक्षदर्शी''' या '''घूर्णदर्शी''' (जाइरोस्कोप/Gyroscope) एक युक्ति है जो किसी वस्तु की कोणीय स्थिति (झुकाव) को मापने के काम आता है। इसकी क्रियाविधि [[कोणीय संवेग का संरक्षण का सिद्धान्त|कोणीय संवेग के संरक्षण के सिद्धान्त]] पर आधारित है। घूर्णदर्शी का प्रयोग जहाँ [[चुम्बकीय सूई]] काम नहीं करती वहाँ भी नेविगेशन में होती है (जैसे [[हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी]] में)। ये चुम्बकीय सूई की अपेक्षा अधिक सूक्ष्ममापी (प्रेसाइज) भी होते हैं जिसके कारण अन्तरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्रों एवं रेडियो-नियंत्रित [[हेलिकॉप्टर|हेलिकॉप्टरों]] आदि में इसका उपयोग किया जाता है।
== यांत्रिक घूर्णदर्शी की संरचना ==
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घूर्णदर्शी के कुछ महत्वपूर्ण व्यावहारिक उपयोग निम्नलिखित हैं :
*1. '''घूर्णक्षस्थिरक (Gyro-stabilizer) के रूप में''' - बाह्य-बलघूर्ण के द्वारा अप्रभावित रहने के घूर्णाक्षस्थापी के गुण का उपयोग सागर के वक्ष पर यात्रा करनेवाले जलयानों को उत्ताल तरंगों के धक्कों से डगमगाने, या उलटने, से बचाने के लिये किया जाता है। इससे सागरीय यात्रा अधिक निरापद एवं कष्टरहित बनाई जा सकी है। जलयानों के डेकों के नीचे यान की केंद्ररेखा पर एक घूर्णाक्षस्थापी लगा दिया जाता है जिसका चक्र, या घूर्णक, विशेष प्रकार के दृढ़ इस्पात का बना होता है। इस घूर्णदर्शी का भ्रमिअक्ष ऊर्ध्वाधर होता है। जब तंरगों के झोंकां से जलयान दाहिने बाएँ डगमगाता है तब भी इसका भ्रमिअक्ष पूर्ववत् ऊर्ध्वाधर बना रहता है। इस कारण वह तंरगों के विरुद्ध एक प्रतिकारी बलघूर्ण का सृजन कर उन्हें संतुलित करता है और इस प्रकर जलयान को सीधा रखने का प्रयत्न करता है। इससे जलयानों का झुकाव किसी भी ओर ऊर्ध्वाधर से चार या पाँच अंशों से अधिक नहीं होने पाता और उसके यात्रियों को तज्जनित कष्ट या असुविधा की अनुभूति नहीं होती।
*2. घूर्णदर्शी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपयोग वायुयानों के परिचालन में किया जाता है। उनमें इसका उपयोग दो प्रकार से होता है :
: ( : ( वायुयानों के दिशानियंत्रण के लिये घूर्णदर्शी अनिवार्य उपकरण बन गया है। दिशासूचक घूर्णदर्शी वायुयान के यंत्रपटल पर चालक के ठीक सामने लगा रहता है। अपनी प्रारंभिक स्थिति में इसकी भ्रमिधुरी पृथ्वी तल के ठीक समांतर रहती है। इसके चक्र के ठीक सामने एक छिद्र होता है, जिसमें से होकर आनेवाली वायु का प्रबल झोंका चक्र को बड़ी तेजी से घुमाता रहता है। उड़ते समय वायुयान को जब घुमाया जाता है तब घूर्णदर्शी की भ्रमिधुरी अपनी प्रारंभिक दिशा में रहती है। इसलिये वायुयान का घुमाव ठीक ठीक ज्ञात हो जाता है। सामान्यता वायुयानों में
एक दूसरा घूर्णदर्शी चालक को यही ठीक ठीक बतलाता है कि वह कितने ऊँचे या नीचे जा रहा है। धरती से बहुत ऊँचाई पर उड़नेवाले वायुयान के चालक को यह पता लगाना कठिन होता है कि उसका यान ऊपर या नीचे की ओर किस दिशा में जा रहा है। इसलिये उसे इस घूर्णदर्शी की सहायता लेनी पड़ती है। इसके भ्रमिअक्ष की प्रारंभिक दिशा ऊर्ध्वाधर होती है। जब वायुयान ऊपर चढ़ता या नीचे उतरता है, तब वायुयान तल के ऊर्ध्वाधर से इस अक्ष के झुकाव द्वारा वायुयान की दिशा का ठीक ठीक ज्ञान हो जाता है। इस घूर्णदर्शी का कृत्रिम क्षितिज कहते हैं, क्योंकि इससे वही सहायता ली जाती है जो पृथ्वी पर क्षितिज से मिलती है। के अनुसार कोई भी पिंड जिस अवस्था में रहता है उसी में बना रहना चाहता है और उस अवस्था में किसी प्रकार के परिवर्तन का विरोध करने की प्रवृत्ति प्रदर्शित करता है। इस प्रवृत्ति को जड़त्व (inertia) कहते हैं। अपनी धुरी पर भ्रमण करता हुआ रोटर अपने प्रारंभिक तल में ही परिभ्रमण करना चाहता है और कोई बलघूर्ण (torque) स्थापित करने पर उसका विरोध करता है।
==सन्दर्भ==
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==इन्हें भी देखें==
*[[जाइरेटर]] (Gyrator)
== बाहरी कड़ियाँ ==
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