"प्रोबोसीडिया": अवतरणों में अंतर

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अस्थियों के स्थूल एवं छिद्रित होने के कारण हाथियों की [[करोटि]] (skull) अपेक्षया बहुत छोटे आकार की तथा हल्की होती है। करोटि की संरचना एक [[उत्तोलक]] (lever) के समान होती है, फलस्वरूप मस्तक का भार वहन करने के लिए लंबी ग्रीवा की आवश्यकता नहीं होती।
 
हाथियों के चर्वण-दंत, [[डेन्टीन]] (dentine) की पतली पट्टियों से बने होते हैं, जो [[दंतवल्कल]] (enamel) से घिरे तथा सीमेंट (cement) से जुड़े होते हैं। ये पट्टियाँ पीसनेवाले धरातल के ऊपर उभरी होती हैं। ये दंत तथा इनकी पट्टियाँ क्रमश: प्रयोग में आती हैं, फलस्वरूप पूर्ण दंतपट्टियाँ एक साथ नहीं घिस पातीं। दाँतों की अधिकतम संख्या २८ होती है, परंतु यह इस प्रकार काम में आते तथा घिसते हैं कि एक समय में केवल ८ चर्वण दंत ही प्रयोग में आ पाते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर वृंतक दंत (upper incisor teeth) या गज दंत (tusk) दो छोटे दुग्ध दंत (milk tusks) के टूटने के बाद ही प्रगट होते हैं। दंतवल्कल के द्वारा बने अग्र छोर के अतिरिक्त गज दंत के शेष भाग डेंटीन के बने होते हैं। इनकी वृद्धि आजीवन होती रहती है। वैज्ञानिकों के अभिलेखों में अफ्रीका के हाथियों के गज दंत की अधिकतम लंबाई १० फुट ३/४ इंच तथा भार २३९ पाउंड तक मिलता हैं।
 
हाथियों के मेरुदंड (vertebral column) के ग्रीवा भाग में छह छोटी छोटी कशेरुकाएँ (vertebrae) तथा पृष्ठ भाग में १९ से २१ कशेरुकाएँ तक होती हैं। पृष्ठ भाग की अग्र कशेरुकाओं के तंत्रिकीय कंटक (neural spines) अधिक लंबे होते हैं। कटि क्षेत्र (lumber region) में तीन या चार कशेरुकाएँ होती हैं, तथा सेक्रम (sacrum) चार कशेरुकाओं के एक साथ जुड़ जाने से बना होता है। पुच्छीय (caudal) कशेरुकाओं की संख्या तीस के निकट होती है। पसली की अस्थियाँ (ribs) अधिक लंबी होती हैं, जिनसे विशाल वक्ष (thorax) घिरा रहता है। [[अंस मेखला]] (shoulder girdle) एक त्रिकोणात्मक स्कंधास्थि का बना होता है, जो वक्ष के पार्श्व में उदग्र रूप से लगा रहता है। [[प्रगंडिका]] (humerus), [[अग्र बाहु]] (fore arm) से अधिक लंबी होती है, फलस्वरूप हाथियों की कुहनी (elbow) लंबाई में अश्वों की कलाई (wrist) के कुछ ही ऊपर रहती है। बहिःप्रकोष्ठिका (radius) तथा अंतःप्रकोष्ठिका (ulna) की रचना विचित्र होती है। उनकी वे सतहें जो मणिबंधिकाओं (carpels) से जुड़ती हैं, लगभग बराबर होती है, परंतु बहिःप्रकोष्ठिका का अग्र भाग अपेक्षया छोटा एवं अंतःप्रकोष्ठिका के सम्मुख होता है। ये दोनों अस्थियाँ एक दूसरे को काटती हुई पीछे की ओर आती हैं। मणिबंधिका की रचना भी असमान होती है, क्योंकि मणि बंधिकास्थियाँ जिनकी दो पंक्तियाँ होती हैं, एक सीध में न होकर एक दूसरे के अंदर होती हैं। अंगुलियों तथा पादांगुलियों के अग्र छोर पर हाथी चलता है परंतु हथेली और तलवे के मांसल एव गद्देदार होने से विशाल शरीर का संपूर्ण भार अंगुलियों के छोर पर नहीं आ पाता। [[श्रोणि प्रदेश]] (peivis) असाधारण रूप से चौड़ा होता है। श्रोणि, (Ilia) चौड़ी होती है, जिसके पश्चभाग से मांस पेशियाँ पैरों के साथ जुड़ी होती है तथा पार्श्व भाग से देहभित्ति की मांसपेशियाँ जुड़ी रहती हैं। अग्रबाहु के सदृश पैरों के ऊपरी भाग की लंबाई अधिक होती है। गुल्फ (tarsus) में अनुगुल्फिका (astragalus) भार वहन करने के लिए चौड़ी होती है।
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==इन्हें भी देखें==
 
[[श्रेणी:प्रोबोसीडिया]]
[[श्रेणीप्रोबोसीडिया]]
 
[[en:Proboscidea]]