"जयसिंह तृतीय (पश्चिमी चालुक्य)": अवतरणों में अंतर

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[[बादामि]] के [[चालुक्य राजवंश]] की स्थापना करनेवाले [[पुलकेशिन् प्रथम]] के पितामह का नाम [[जयसिंह प्रथम]] था। यह संभवत: छठी शताब्दी के आरंभ में हुआ था। इस वंश के [[महाकूट स्तंभ अभिलेख]] (६०२ ई.) में जयसिंह के लिये सुंदर विशेषणों का उपयोग हुआ है जिनका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है। ११वीं शताब्दी के प्रारंभ से काल्याणि के चालुक्य राजाओं के अभिलेखों में जो अनुवृत्ति मिलती है उसमें जयसिंह के लिए कहा गया है कि देश की दीर्घकालीन तिमिराच्छन्न इतिहास का अंत कर उसने आठ सौ हाथियोंवाली अपनी सेना की सहायता से [[राष्ट्रकूट]] नरेश इंद्र और अन्य पाँच सौ राजाओं की पराजित कर चालुक्यों की सत्ता स्थापित की। किंतु यह वर्णन ऐतिहासिक नहीं है और संभवत: [[तैल द्वितीय]] के द्वारा कल्याणि शाखा की स्थापना की अनुकृति मात्र है।
 
 
चोल स्रोतों से ज्ञात होता है कि चालुक्य नरेश [[सोमेश्वर प्रथम]] का जयसिंह नाम का एक अनुज था जो १०५१-५२ ई. में कोप्पम् के युद्ध में अन्य चालुक्य सेनापतियों के सहित [[राजेंद्र द्वितीय चोल]] के द्वारा पराजित हुआ और मारा गया।
 
 
'''जयसिंह तृतीय''', [[सोमेश्वर द्वितीय]] और [[विक्रमादित्य षष्ठ]] का अनुज था।