"अनावृतबीजी": अवतरणों में अंतर

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विवृतबीज वनस्पति जगत् का एक अत्यंत पुराना वर्ग है। यह टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) से अधिक जटिल और विकसित है और आवृतबीज (Angiosperm) से कम विकसित तथा अधिक पुराना है। इस वर्ग की प्रत्येक जाति या प्रजाति में बीज नग्न रहते हैं, अर्थात् उनके ऊपर कोई आवरण नहीं रहता। पुराने वैज्ञानिकों के विचार में यह एक प्राकृतिक वर्ग माना जाता था, पर अब नग्न बीज होना ही एक प्राकृतिक वर्ग का कारण बने, ऐसा नहीं भी माना जाता है। इस वर्ग के अनेक पौधे पृथ्वी के गर्भ में दबे या फॉसिल के रूपों में पाए जाते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि ऐसे पौधे लगभग चालिस करोड़ वर्ष पूर्व से ही इस पृथ्वी पर उगते चले आ रहे हैं। इनमें से अनेक प्रकार के तो अब, या लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व ही, लुप्त हो गए और कई प्रकार के अब भी घने और बड़े जंगल बनाते हैं। चीड़, देवदार आदि बड़े वृक्ष विवृतबीज वर्ग के ही सदस्य हैं।
 
इस वर्ग के पौधे बड़े वृक्ष या साइकस (cycas) जैसे छोटे, या ताड़ के ऐसे, अथवा झाड़ी की तरह के होते हैं। सिकोया जैसे बड़े वृक्ष (३५1३५० फुट से भी ऊँचे), जिनकी आयु हजारों वर्ष की होती है, वनस्पति जगत् के सबसे बड़े और भारी वृक्ष हैं। वैज्ञानिकों ने विवृतबीजों का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया है। वनस्पति जगत् के दो मुख्य अंग हैं : क्रिप्टोगैम (Cryptogams) और फैनरोगैम (Phanerogams)। फैनरोगैम बीजधारी होते हैं और इनके दो प्रकार हैं : विवृतबीज और आवृतबीज; परंतु आजकल के वनस्पतिज्ञ ने वनस्पति जगत् का कई अन्य प्रकार का वर्गीकरण करना आरंभ कर दिया है, जैसे (१) वैस्कुलर पौधे (Vascular) या ट्रेकियोफाइटा (Tracheophyta) और (२) एवैस्कुलर या नॉन वैस्कुलर (Avascular or nonvascular) या एट्रैकियोफ़ाइटा (Atracheophyta) वर्ग। वैस्कुलर पौधों में जल, लवण लवण इत्यादि के लिए बाह्य ऊतक होते हैं। इन पौधों को (क) लाइकॉप्सिडा (Lycopsida), (ख) स्फीनॉप्सिडा (Sphenopsida) तथा (ग) टिरॉप्सिडा (Pteropsida) में विभाजित करते हैं। टिरॉप्सिडा के अंतर्गत अन्य फ़र्न, विवृतबीज तथा आवृतबीज रखे जाते हैं।
 
विवृतबीज के दो मुख्य उपप्रभाग हैं :