"एन आर नारायणमूर्ति": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 18:
अपने कार्यजीवन का आरंभ नारायणमूर्ति ने पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स (PCS), पुणे से किया, जहाँ उन्होंने कई उपलब्धियां प्राप्त कीं। पूना में ही इनकी मुलाकात सुधा से हुई जो उस समय टाटा में काम करतीं थी तथा आज इनकी धर्मपत्नी है। १९८१ मे नारायणमूर्ति ने इन्फ़ोसिस कम्पनी की स्थापना की। [[मुम्बई]] के एक अपार्टमेंट में शुरू हुयी इस कंपनी की प्रगति की कहानी आज दुनिया जानती है। सभी साथियों की कड़ी मेहनत रंग लाई और १९९१ मे इन्फ़ोसिस पब्लिक लिमिटेड कम्पनी में पिरवर्तित हुई। [[१९९९]] में कम्पनी ने उत्कृष्टता और गुणवत्ता का प्रतीक SEI-CMM हासिल किया। १९९९ में जब कम्पनी के शेयर अमरीकी शेयर बाजार NASDAQ में रजिस्टर हुए तब इन्फोसिस ऐसा कर दिखाने वाली पहली भारतीय कम्पनी थी। नारायणमूर्ति [[१९८१]] से लेकर [[२००२]] तक इस कम्पनी के मुख्य कार्यकारी निदेशक रहे। २००२ मे उन्होंने इसकी कमान अपने साथी नन्दन नीलेकनी को थमा दी, लेकिन फिर भी इन्फोसिस कम्पनी के साथ वे मार्गदर्शक के दौर पर जुड़े रहे। वे १९९२ से १९९४ तक नास्काम के भी अध्यक्ष रहे। उन्हें वर्ष २००० में भारत सरकार द्वारा उनकी उपलब्धियों के लिये पद्मश्री पुरुस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा तकनीकी क्षेत्र में तमाम पुरस्कार समय-समय पर मिलते रहे।सन २००५ में नारायण मूर्ति को विश्व का आठवां सबसे बेहतरीन प्रबंधक चुना गया। इस सूची में शामिल अन्य नाम थे-बिल गेट्स,स्टीव जाब्स तथा वारेन वैफ़े। हालांकि नारायण मूर्ति आज अवकाश ग्रहण कर रहे हैं लेकिन वे इन्फ़ोसिस के मानद चेयरमैन बने रहेंगे ।
 
नारायणमूर्ति आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने के कारऩ इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे। उनके उन दिनों के सबसे प्रिय शिक्षक मैसूर विशवविद्यालय के डॉ. कृष्णमूर्ति ने नारायण मूर्ति की प्रतिभा को पहचान कर उनको हर तरह से मदद की। बाद में आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाने पर नारायणमूर्ति ने डॉ. कृष्णमूर्ति के नाम पर एक छात्रवृत्ति प्रारंभ कर के इस कर्ज़ को चुकाया। नारायणमूर्ति ने अपने दोस्त शशिकांत शर्मा और प्रोफेसर कृष्णय्या के साथ १९७५ में पुणे में सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। १९८१ में उन्होंने अपने ६ साथियों के साथ मिलकर अपनी खुद की कंपनी की स्थापना की थी। १९९० तक आते आते यह कंपनी पूरी तरह बंद हो गई लेकिन मूर्ति ने हार नहीं मानी। उनके दोस्तों ने भी उन पर पूरा भरोसा किया और आज वे वे अनेक लोगों के आदर्श हैं। चेन्नई के एक कारोबारी पट्टाभिरमण कहते हैं कि उन्होंने जो भी कुछ कमाया है वह मूर्ति की कंपनी इंफोसिस के शेयरों की बदौलत और उन्होंने अपनी सारी कमाई इंफोसिस को ही दान कर दी है। पट्टाभिरमण और उनकी पत्नी नारायणमूर्ति को भगवान की तरह पूजते हैं और उन्होंने अपने घर में मूर्ति का फोटो भी लगा रखा है।<ref>[http://lyrics.mywebdunia.com/2008/09/08/1220861696036.html माई वेब दुनिया]</ref>
==रोचक घटना==
इंफोसिस के जनक और देश भर के .युवाओं और उद्योगपतियों के प्रेरणास्त्रोत श्री नारायण मूर्ति की शादी मात्र ८०० रुपये में ही हुई, और इसके लिए भी सुधा मूर्ति और नारायण मूर्ति दोनों ने आपस में ४००-४०० रुपये मिलाए थे। शादी के पहले नारायण मूर्ति के पास कभी इतने पैसे नहीं होते थे कि वे कहीं घूमने जा सकें। लेकिन सुधा जी उन्हें उधार देती रहती थी और उसका ब्यौरा भी रखती थी। शादी के बाद सुधाजी ने वह रजिस्टर ही फाड़ दिया जिसमें यह सब ब्यौरा लिखा हुआ था!
 
मूर्ति के स्कूल के दिनों की एक मजेदार घटना है कि किस तरह एक बार उनके भूगोल के शिक्षक ने नारायण मूर्ति को नारियल फेंक कर मारा था। वे शिक्षक ग्लोब की जगह नारियल का उपयोग करते थे और जब उन्होंने मूर्ति से एक सवाल का जवाब पूछा तब मूर्ति अपने सहपाठी के साथ बातों में मशगूल थे; शिक्षक महोदय ने आव देखा ना ताव वह नारियल फेंककर मूर्ति को दे मारा! मूर्ति आज भी उस वाकये को याद करके सिहर उठते हैं! नारायण मूर्ति अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च उठाने में भी असमर्थ थे। उनके उन दिनों के सबसे प्रिय शिक्षक मैसूर विशवविद्यालय के डॉ. कृष्णमूर्ति ने नारायण मूर्ति की प्रतिभा को पहचान कर उनको हर तरह से मदद की। नारायण मूर्ति ने डॉ. कृष्णमूर्ति के नाम पर ही एक छात्रवृत्ति भी शुरू की है। नारायण मूर्ति कॉलेज के दिनों में अपने दो दोस्तों के साथ तिकड़ी बना ली थी, ये तीनों ही तीन मसखरों के नाम से काफी प्रसिध्दि पा चुके थे। नारायण मूर्ति ने अपने कैरियर की शुरुआत में मॉर्डन मिनी कंप्यूटर पर रोजाना 20 घंटे काम करते थे और उनकी तनख्वाह थी मात्र ८०० रुपये महीना।
 
नारायण मूर्ति के एक प्रोफेसर कृष्णय्या एक बार फ्लोरेंस में थे और उन्होंने सुना कि पेरिस के एयरपोर्ट पर एक नया कंप्यूटर सिस्टम स्थापित किया जाने वाला है, तो उन्होंने उस काम के लिए तत्काल नारायण मूर्ति का नाम सुझाया और इस तरह मूर्ति की पेरिस पहुँचे। वहाँ मूर्ति ने पाया कि किस तरह पश्चिमी देशों में विज्ञान तेजी से विकास कर रहा है। मूर्ति के जीवन की एक मजेदार घटना है कि एक बार वे युगोस्लाविया और बल्गारिया के बीच स्थित एक शहर निस में एक लड़की से बात कर रहे थे तभी पुलिस आई और उन्हें एक संदिग्ध व्यक्ति समझकर पकड़कर लेगई और इसके बाद उन्हें ६० घंटे पुलिस हिरासत में बिताना पड़े। इस घटना से मूर्ति ने यही सबक सीखा कि आदमी को पैसा जरूर कमाना चाहिए और उससे दूसरों की मदद करना चाहिए।
 
नारायण मूर्ति ने अपने दोस्त शशिकांत शर्मा और प्रोफेसर कृष्णय्या के साथ १९७५ में पुणे में सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। मूर्ति वहाँ कमला निवास लॉज में रहते थे। १९८१ में मूर्ति ने अपने ६ साथियों के साथ मिलकर अपनी खुद की कंपनी की स्थापना की थी। इसके लिए फोन कनेक्शन लेने के लिए उन्हें एक साल तक और कंप्यूटर लेने के लिए तीन साल तक इंतज़ार करना पड़ा था! तब वे फोन करने और सुनने के लिए पास की एक दुकान पर जाते थे और घंटो तक अपने ट्रंक काल (तब शहर से बाहर के फोन काल टेलीफोन एक्स्चेंज के माध्यम से बुक किए जाते थे और फोन लगने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था) का इंतजार करते थे।
 
१९९० तक आते आते यह कंपनी पूरी तरह बंद हो गई। लेकिन मूर्ति ने हार नहीं मानी। उनके दोस्तों ने भी उन पर पूरा भरोसा किया और आज मूर्ति जिस मुकाम पर खड़े हैं वह उनके आत्मविश्वास का ही परिणाम है। चेन्नई के एक कारोबारी मूर्ति के कैसे दीवाने हैं और उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, जबकि वे कभी उनसे मिले ही नहीं है। पट्टाभिरमण ने जो भी कुछ कमाया है वह मूर्ति की कंपनी इंफोसिस के शेयरों की बदौलत और उन्होंने अपनी सारी कमाई इंफोसिस को ही दान कर दी है। पट्टाभिरमण और उनकी पत्नी नारायणमूर्ति को भगवान की तरह पूजते हैं और उन्होंने अपने घर में मूर्ति का फोटो भी लगा रखा है।<ref>[http://lyrics.mywebdunia.com/2008/09/08/1220861696036.html माई वेब दुनिया]</ref>
[[Category:भारतीय उद्योगपति]]