"प्रहसन": अवतरणों में अंतर

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प्रहसन के समान ही पाश्चात्य काव्यशास्त्र में कॉमेडी के स्वरूप की चर्चा हुई है। ग्रीक आचार्य प्लेटो ने अपने आदर्शवादी दृष्टिकोण के कारण कॉमेडी में वर्णित हँसी मजाक का तिरस्कार किया है। किंतु, अरस्तु के अनुसार कॉमेडी के मूलभाव का विषय कोई ऐसी शारीरिक या चारित्रिक या चारित्रिक विकृति होता है जो क्लेशप्रद या सार्वजनिक होता है; अत: साधारणीकरण की क्षमता के कारण कॉमेडी काव्यकला का मान्य रूप है। कांट आदि दार्शनिकों ने विरोध, असंगति, कुरूपता, बुराई, अप्रत्याशित वर्णन, बुद्धिविलास आदि को कॉमेडी के लिये आवश्यक माना है।
 
वर्ण्यविषय और प्रेक्षकगत प्रभाव के आधार पर पश्चिम मेमें कॉमेडी के अनेक भेदों की प्रकल्पना की गई है जिनमें से "फार्स" का रूप कुछ कुछ प्रहसन के निकट है। इसमें हास्य के सूक्ष्मतर रूपहृ जैसे शुद्ध विनोद व्यंग्य, आदि की अपेक्षा प्रत्यक्ष शारीरिक विकृतियों पर अधिक बल रहता है। पाश्चात्य प्रहसनकारों में मॉलिये सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==
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* [http://www.dbu.edu/mitchell/comedydi.htm A Vocabulary for Comedy]
* [http://www.clydepark.com/history.htm The History of Comedy]
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[[श्रेणी:साहित्य]]
 
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