"प्रहसन": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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प्रहसन के समान ही पाश्चात्य काव्यशास्त्र में कॉमेडी के स्वरूप की चर्चा हुई है। ग्रीक आचार्य प्लेटो ने अपने आदर्शवादी दृष्टिकोण के कारण कॉमेडी में वर्णित हँसी मजाक का तिरस्कार किया है। किंतु, अरस्तु के अनुसार कॉमेडी के मूलभाव का विषय कोई ऐसी शारीरिक या चारित्रिक या चारित्रिक विकृति होता है जो क्लेशप्रद या सार्वजनिक होता है; अत: साधारणीकरण की क्षमता के कारण कॉमेडी काव्यकला का मान्य रूप है। कांट आदि दार्शनिकों ने विरोध, असंगति, कुरूपता, बुराई, अप्रत्याशित वर्णन, बुद्धिविलास आदि को कॉमेडी के लिये आवश्यक माना है।
वर्ण्यविषय और प्रेक्षकगत प्रभाव के आधार पर पश्चिम
== इन्हें भी देखें ==
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* [http://www.dbu.edu/mitchell/comedydi.htm A Vocabulary for Comedy]
* [http://www.clydepark.com/history.htm The History of Comedy]
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[[श्रेणी:साहित्य]]
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