"पारिजात वृक्ष (किन्तूर)": अवतरणों में अंतर
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'''पारिजात वृक्ष (किन्तूर)''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य ([[भारत]]) के [[बाराबंकी]] जिला अंतर्गत किन्तूर ग्राम में स्थित पारिजात का वृक्ष है। भारत सरकार द्वारा संरक्षित यह वृक्ष सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लोकमत इसका संबंध [[महाभारत|महाभारतकालीन]] घटनाओं से जोड़ता है।
==भौगोलिक स्थिति ==
ग्राम किन्तूर बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित है।<ref name="barabanki.nic.in">http://barabanki.nic.in/places.htm</ref> इसी ग्राम में विश्व प्रसिद्ध पारिजात वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष सरकार द्वारा संरक्षित है।
==पौराणिक महत्व ==
माना जाता है कि किन्तूर) गांव का नाम पाण्डवों की माता कुन्ती के नाम पर है। जब धृतराष्ट्र ने पाण्डु पुत्रों को अज्ञातवास दिया तो पांडवों ने अपनी माता कुन्ती के साथ यहां के वन में निवास किया था। इसी अवधि में ग्राम किन्तूर में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना हुयी थी। भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाये जाने की इच्छा जाहिर की। अपनी माता की इच्छानुसार अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लेकर यहां स्थापित कर दिया<ref
दूसरी पौराणिक मान्यता यह है कि एक बार श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ व्रतोद्यापन समारोह में रैवतक पर्वत पर आ गए। उसी समय नारद अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए। नारद ने इस पुष्प को श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया। श्रीकृष्ण ने इस पुष्प को रुक्मिणी को दे दिया और रुक्मिणी ने इसे अपने बालों के जूड़े में लगा लिया इस पर नारद ने प्रशंसा करते हुए
== विशेषताएं ==
लोकमत इस वृक्ष की आयु 1000 -5000 वर्ष के बीच मानता है। इसके तने का परिमाप 50 फ़ीट और ऊंचाई लगभग 45
==पुष्प ==
इसका पुष्प श्वेत रंग का और सूखने पर सुनहले रंग का हो जाता है। इस वृक्ष में पुष्प बहुत ही कम मात्रा में और कभी -कभी ही गंगा दशहरा (जून के माह ) के अवसर पर ही लगते हैं पुष्प सदैव रात्रि में ही पुष्पित होते हैं। प्रातः काल इसके पुष्प मुरझा जाते हैं। रात्रि के समय पुष्प पुष्पित होने पर इसकी सुगंध दूर --दूर तक फ़ैल जाती है। अंकेश वर्मा <ref
==सन्दर्भ==
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[[श्रेणी:पुष्प]]
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