"पटवारी": अवतरणों में अंतर
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१९१८ में सभी गाँवों में सरकार के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में लेखापाल नियुक्त किये।<ref name="Chaturvedi">{{cite book |title=Peasant pasts: history and memory in western India|trans_title=कृषक इतिहास: पश्चिमी भारत की यादें और इतिहास |pages=40|first=विनायक |last=चतुर्वेदी |year=२००७ |publisher=कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस |ISBN=978-0-520-25078-9|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
राजा टोडरमल जो अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के दरबार
गांवों में गरीब किसान के लिए पटवारी ही 'बड़ा साहब' होता है। पंजाब में पटवारी को 'पिंड दी मां' (गांव की मां) भी कहा जाता
पटवारियों के बारे में कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा नहीं है। राजस्थान में 10,685 पटवारी पद हैं, तो मध्य प्रदेश में 11,622, छत्तीसगढ़ में 3,500, उत्तर प्रदेश में पटवारी के पद को चौधरी चरण सिंह के जमाने में ही समाप्त कर दिया गया था और अब उन्हें लेखपाल कहा जाता है, जिनकी संख्या 27,333 है। उत्तराखंड में इन्हें राजस्व पुलिस कहा जाता है और राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यों के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही संभाल रहे
हालांकि तकनीकी युग में अब पटवार व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है। भारत सरकार ने 2005 में पटवारी इन्फॉर्मेशन सिस्टम (पीएटीआइएस) नामक सॉफ्टवेयर विकसित किया, ताकि जमीन का कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड रखा जा
पटवारियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई जगह एसोसिएशन बना रखी है और उन्होंने सरकार को दबाव में लाकर अपनी ताकत का एहसास भी कराया
लेकिन यह कड़वा सच है कि पटवारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें जम चुकी
== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी:भूमि कानून]]
[[श्रेणी:भारत का कानून]]
[[श्रेणी:सरकारी उपाधियाँ]]
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