"मथुरा": अवतरणों में अंतर

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'''मथुरा''' [[उत्तरप्रदेश]] [[प्रान्त]] का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन [[भारतीय संस्कृति]] एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय [[धर्म]],[[दर्शन]] [[कला]] एवं [[साहित्य]] के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि [[सूरदास]], संगीत के आचार्य [[स्वामी हरिदास]], [[स्वामी दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद]] के गुरु [[स्वामी विरजानंद]], कवि [[रसखान]] आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है|है। मथुरा को [[श्रीकृष्ण]] जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है।
 
== मथुरा का परिचय ==
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पास ही एक कंकाली टीले पर कंकालीदेवी का मंदिर है। कंकाली टीले में भी अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। यह कंकाली वह बतलाई जाती है, जिसे देवकी की कन्या समझकर [[कंस]] ने मारना चाहा था पर वो उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई थी। (देखें [[विद्याधर चक्रवर्ती]]) मस्जिद से थोड़ा सा पीछे पोतराकुण्ड के पास भगवान्‌ श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है, जिसमें वसुदेव तथा देवकी की मूर्तियाँ हैं, इस स्थान को मल्लपुरा कहते हैं। इसी स्थान में कंस के चाणूर, मुष्टिक, कूटशल, तोशल आदि प्रसिद्ध मल्ल रहा करते थे। नवीन स्थानों में सबसे श्रेष्ठ स्थान श्री पारखजी का बनवाया हुआ श्री द्वारकाधीश का मंदिर है। इसमें प्रसाद आदि का समुचित प्रबंध है। संस्कृत पाठशाला, आयुर्वेदिक तथा होमियोपैथिक लोकोपकारी विभाग भी हैं।
 
इस मंदिर के अलावा गोविंदजी का मंदिर, किशोरीरमणजी का मंदिर, वसुदेव घाट पर गोवर्द्धननाथजी का मंदिर, उदयपुर वाली रानी का मदनमोहनजी का मंदिर, [[विहारीजी का मंदिर]], रायगढ़वासी रायसेठ का बनवाया हुआ मदनमोहनजी का मंदिर, उन्नाव की रानी श्यामकुंवरी का बनाया राधेश्यामजी का मंदिर, असकुण्डा घाट पर हनुमान्‌जी, नृसिंहजी, वाराहजी, गणेशजी के मंदिर आदि हैं, जिनमें कई का आय-व्यय बहुत है, प्रबंध अत्युत्तम है, साथ में पाठशाला आदि संस्थाएँ भी चल रही हैं। विश्राम घाट या [[विश्रान्त घाट]] एक बड़ा सुंदर स्थान है, मथुरा में यही प्रधान तीर्थ है। विश्रांतिक तीर्थ (विश्राम घाट) असिकुंडा तीर्थ (असकुंडा घाट) वैकुंठ तीर्थ, कालिंजर तीर्थ और चक्रतीर्थ नामक पांच प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ में कालवेशिक, सोमदेव, कंबल और संबल, इन जैन साधुओं को मथुरा का बतलाया गया है। जब यहाँ एक बार घोर अकाल पड़ा था तब मथुरा के एक जैन नागरिक खंडी ने अनिवार्य रूप से जैन आगमों के पाठन की प्रथा चलाई थी।
 
भगवान्‌ ने [[कंस]] वध के पश्चात्‌ यहीं विश्राम लिया था। नित्य प्रातः-सायं यहाँ यमुनाजी की आरती होती है, जिसकी शोभा दर्शनीय है। यहाँ किसी समय दतिया नरेश और काशी नरेश क्रमशः 81 मन और 3 मन सोने से तुले थे और फिर यह दोनों बार की तुलाओं का सोना व्रज में बांट दिया था। यहाँ मुरलीमनोहर, कृष्ण-बलदेव, अन्नपूर्णा, धर्मराज, गोवर्द्धननाथ आदि कई मंदिर हैं।
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रामजीद्वारे में श्री रामजी का मंदिर है, वहीं अष्टभुजी श्री गोपालजी की मूर्ति है, जिसमें चौबीस अवतारों के दर्शन होते हैं। यहाँ रामनवमी को मेला होता है। यहाँ पर वज्रनाभ के स्थापित किए हुए ध्रुवजी के चरणचिह्न हैं। चौबच्चा में वीर भद्रेश्वर का मंदिर, लवणासुर को मारकर मथुरा की रक्षा करने वाले शत्रुघ्नजी का मंदिर, होली दरवाजे पर दाऊजी का मंदिर, डोरी बाजार में गोपीनाथजी का मंदिर है।
 
आगे चलकर दीर्घ विष्णुजी का मंदिर, बंगाली घाट पर श्री वल्लभ कुल के गोस्वामी परिवारों के बड़े-छोटे दो मदनमोहनजी के और एक गोकुलेश का मंदिर है। नगर के बाहर ध्रुवजी का मंदिर, गऊ घाट पर प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय का श्री राधाविहारीजी का मंदिर, वैरागपुरा में प्राचीन विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के विरक्तों का मंदिर है। वैरागपुरा में गोहिल छिपि जाति के चाउधरि श्रि गोर्धनदास नागर पुत्र श्रि हरकरन दास नागर ने सकल पन्च मथुरा को सम्वत १९८१ (सन १९२४) मेमें मन्दिर बनाने के हेतु अपनै भुमि दान मेमें दै। और उस भुमि के उपरऊपर दाउजि माहारज और रेवति देवि कि मुर्ति पधार क्र्र मन्दिर दान कर दिया। इससे आगे मथुरा के पश्चिम में एक ऊंचे टील पर महाविद्या का मंदिर है, उसके नीचे एक सुंदर कुण्ड तथा पशुपति महादेव का मंदिर है, जिसके नीचे सरस्वती नाला है। किसी समय यहाँ सरस्वतीजी बहती थीं और गोकर्णेश्वर-महादेव के पास आकर यमुनाजी में मिलती थीं।
 
एक प्रसंग में यह वर्णन है कि एक सर्प नंदबाबा को रात्रि में निगलने लगा, तब श्रीकृष्ण ने सर्प को लात मारी, जिस पर सर्प शरीर छोड़कर सुदर्शन विद्याधर हो गया। किन्हीं-किन्हीं टीकाकारों का मत है कि यह लीला इन्हीं महाविद्या की है और किन्हीं-किन्हीं का मत है कि अम्बिकावन दक्षिण में है। इससे आगे सरस्वती कुण्ड और सरस्वती का मंदिर और उससे आगे चामुण्डा का मंदिर है।
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== मथुरा की परिक्रमा ==
 
प्रत्येक [[एकादशी]] और [[अक्षय नवमी]] को मथुरा की परिक्रमा होती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-गरुड गोविन्द्-वृन्दावन् की एक साथ परिक्रमा की जाती है|है। यह परिक्र्मा २१ कोसी या तीन वन की भी कही जाती है|है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वनविहार की परिक्रमा कहते हैं।
[[File:विश्राम घाट, यमुना, मथुरा.jpg|thumb|विश्राम घाट, यमुना, मथुरा]]
स्थान-स्थान में गाने-बजाने का तथा पदाकन्दा नाटक का भी प्रबंध रहता है। श्री [[दाऊजी]] ने [[द्वारका]] से आकर, वसन्त ऋतु के दो मास व्रज में बिताकर जो वनविहार किया था तथा उस समय [[यमुना|यमुनाजी]] को खींचा था, यह परिक्रमा उसी की स्मृति है।
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ब्रज में बारह वन [[ब्रज के वन]] हैं जो कि द्वादश वन के नाम से प्रसिद्ध हैं।
== दर्शनीय स्थल (शहर में) ==
* [[प्रेम मंदिर ]] [[वृन्दावन]]
* [[जामा मस्जिद]]
* [[शाही मस्जिद]] [[ईदगाह्]]
* [[दोला मोला घाट]]
* [[मथुरा संग्रहालय ]]
* [[कृष्ण जन्म भूमि]]
* [[अंग्रेज मंदिर | इस्कॉन मंदिर ]]
* [[द्वारकाधीश मंदिर]]
* [[विश्राम घाट]]
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== दर्शनीय स्थल (मथुरा से [[वृन्दावन]] की ओर) ==
* [[पागल बाबा का मंदिर]]
 
* [[बाँकेबिहारी मंदिर]]
 
* श्री गरुड् गोविन्द मन्दिर, शाडान्ग वन (छटीकरा)
 
* [[शांतिकुंज]]
* [[बिडला मंदिर]]
 
* [[राधावल्लभ मंदिर]] [http://www.radhavallabh.com राधावल्लभ मंदिर]
 
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* [[८४ खम्बे]]
* [[बल्देव]]
* [[बह्मांड घाट ]] महावन
* [[चिंताहरण महादेव ]] महावन
 
== दर्शनीय स्थल (मथुरा से [[गोवर्धन]] की ओर) ==
* [[गोवर्धन]]
 
* [[जतीपुरा]]
 
* [[बरसाना]]
 
* [[नंदगाँव]]
* [[कामां | कामवन]]
 
* [[कामां | कामवन]]
 
* [[लोहवन]]
 
== पर्यटन ==
[[मथुरा रेलवे स्टेशन]] काफ़ी व्यस्त जंक्शन है और [[दिल्ली]] से दक्षिण भारत या [[मुम्बई]] जाने वाली सभी ट्रेने मथुरा होकर गुजरती हैं। सडक द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। [[आगरा]] से मात्र 55 [[किलोमीटर]] तथा [[खैर प्रखण्ड (अलीगढ़)|खैर]] से मात्र 50 [[किलोमीटर]] है। [[वृन्दावन]] पहुचने के लिये [http://www.radhavallabh.com/vrindavan.html यह वृन्दावन की वेबसाईट] काफी सूचना देती हे| स्टेशन के आसपास कई होटल हैं और [[विश्राम घाट]] के आसपास कई कमखर्च वाली धर्मशालाएं रूकने के लिए उपलब्ध हैं। घूमने के लिए टेक्सी कर सकते हैं, जिससे मथुरा, [[वृन्दावन]] एक दिन में घूमा जा सकता है। अधिकतर मंदिरों में दर्शन सुबह १२ बजे तक और सांय ४ से ६-७ बजे तक खुलते हैं, दर्शनार्थियों को इसी हिसाब से अपना कार्यक्रम बनाना चाहिए। आटो और तांगे भी उपलब्ध है। [[यमुना नदी|यमुना]] में [[नौका विहार]] और प्रातःकाल और सांयकाल में [[विश्राम घाट]] पर होने वाली यमुना जी की आरती दर्शनीय है। [[गोकुल]] की ओर जाने के लिये आधा दिन और लगेगा, उसके बाद [[गोवर्धन]] के लिये निकल सकते हैं। [[गोवर्धन]] के लिये बस से उपलब्ध है। [http://www.radhavallabh.com/festival.html राधाष्टमी] का उत्सव वृन्दावन मेमें धूम से मनाया जाता हे |
 
==[[होली]]==
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सन १९४७ में जब भारत का शासन सूत्र उसके अपने हाथों में आया तब से अधिकारियों का ध्यान इस सांस्कृतिक तीर्थ की उन्नति की ओर भी गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इसकी उन्नति में अलग के धन राशि की व्यवस्था की गई और कार्य भी प्रारम्भ हुआ। सन १९५८ से कार्य की गति तीव्र हुई। पुराने भवन की छत का नवीनीकरण हुआ और साथ ही साथ सन १९३० का अधूरा बना हुआ भवन भी पूरा किया गया।
 
मथुरा की मूर्ति कला का प्रादुर्भाव यहाँ की लोक कला के माध्यम से सम्पन्न हुआ। लोक कला की दृष्टि से देखा जाय तो मथुरा और उसके आसपास के भाग में इसके मौर्य कालीन नमूने विधमान हैं। लोक कला से सम्बन्धित ये मूर्तियाँ 'यक्षों' की हैं। 'यक्ष' पूजा तत्कालीन लोक धर्म का एक अभिन्न अंग थी। संस्कृत, पालि और प्राकृत साहित्य में 'यक्ष' पूजा का वर्णन विषद् रूप में वर्णित है। पुराणों के अनुसार यक्षों का कार्य पापियों को विघ्न करना, उन्हें दुर्गति देना और साथ ही साथ अपने क्षेत्र का संरक्षण करना था। १ मथुरा से इस प्रकार के यक्ष्म और यक्षणियों की ६ प्रतिमाएँ प्राप्त हो चुकी हैं। २ जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण 'परखम' नामक ग्राम से मिली हुई अभिलिखित यक्ष मूर्ति है |है। धोती और दुपट्टा धारण किए स्थूलकाय 'मणिभद्र यक्ष' स्थानक अवस्था में है। इस यक्ष का पूजन उस समय बड़ा ही लोकप्रिय था। इसकी एक विशालकाय प्रतिमा मध्यप्रदेश के 'पवाया' ग्राम से भी प्राप्त हुई है, जो वर्तमान समय में ग्वालियर के संग्रहालय
में प्रदर्शित है। मथुरा की यक्ष प्रतिमा भारतीय कला जगत में 'परखम यक्ष' के नाम से प्रसिद्ध है। शारीरिक बाल और सामर्थ्य की अभिव्यंजक प्राचीन काल की ये यक्ष प्रतिमाएँ केवल लोक कला के उदाहरण ही नहीं अपितु उत्तर काल में निर्मित बोधिसत्व, विष्णु, कुबेर, नाग आदि देव प्रतिमाओं के निर्माण की प्रेरिकाएँ भी हैं।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/मथुरा" से प्राप्त