"पिंजर (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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* '''रिलीज तारीख''' 24 अक्टूबर 2003
* '''समय''' 188 मिनट
 
 
== भूखंड ==
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यह कहानी 1947 के विभाजन के समय की है। पिञर पूरो की कहानी है, जो अपने परिवार के साथ एक सुंदर जीवन जी रही होती है। पूरो का रिश्ता एक प्यारा जवान लड़का, रामचन्द, के साथ तय हो जाता है जो एक होनहार परिवार से है। पूरो की खुशियाँ तब बिखर जाती है जब वह अपनी छोटी बहन रज्जो के साथ एक इत्मीनान यात्रा पर जाती है और एक रहस्यमय मुस्लिम आदमी, रशीद, उसका अपहरण कर लेता है। रशीद के परिवार और पूरो के परिवार के बीच एक पुश्तैनी विवाद है। पूरो के परिवार ने रशीद के परिवार की संपत्ति लेकर उन्हे बेघर कर दिया था। और तो और पूरो के भव्य चाचा ने रशीद की भव्य चाची का अपहरण कर लिया और फिर उसे अपवित्र कर के उसे छोड़ दिया था। रशीद के परिवार ने उसे वह बदला चुकाने के लिये पूरो का अपहरण करने कि कसम खिलायी थी।
 
यह स्पष्ट है कि रशीद पूरो के लिए कुछ भी करने को तैयार है। एक रात, पूरो भागने और उसके माता - पिता को वापस जाने में सफल होती है। उसके माता पिता उसे दुखी होकर समझाते हैं कीकि अगर वो यहाँ रहेगी तो राशिद की विस्तारित मुस्लिम कबीले हर किसी का वध कर देंगे, यह समझा कर वे अपनी बेटी को वापस भेज देते हैं। बिना किसी सहारे के पूरो रशीद के पास वापस आ जाती है। रशीद उसके भागने से अच्छी तरह से वाकिफ है, क्योंकी उसे पता था कि उसके माता पिता उसे अपनायेंगे नहीं और इसलिये वह पास ही इंतजार कर रहा था। कुछ ही महीनों के बाद पूरो के परिवार रज्जो की शादी रामचंद के चचेरे भाई से करा देते हैं और रामचंद की छोटी बहन, लाजो की शादी उनके पुत्र त्रिलोक से। इस बीच रशीद पूरो (हमीदा) से निकाह कर लेता है और वे सड़क पर मिले एक बच्चे को अपना कर उसे बहुत स्नेह और प्यार से पालते हैं। जब गांव के लोगों को पता चलता है कि बच्चा हिन्दू पृष्ठभूमि से है तो वे उसे दोनों से दूर ले जाते हैं।
 
ब्रिटिश सरकार भारत छोड़ जाती है और भारत विभाजन के प्रभाव से जूझ रहा होता है। रामचंद के चाचा, चचेरे भाई और रज्जो भारत के लिए पहले निकल जाते हैं और सुरक्षित हैं। रामचंद और उसके माता पिता और लाजो दंगों में फंस जाते हैं। रामचंद के पिता पहले से ही गायब हैं और रामचंद तुरंत अपनी छोटी बहन लाजो और माँ के साथ भारत के लिए निकल जाता है। कुछ ही समय बाद, गुंडे लाजो का अपहरण कर लेते हैं। पूरो रामचंद से मिलती है, जो उसे लाजो का दुखड़ा सुनाता है। पूरो लाजो का पता ढूंढती है और उसे रशीद की सहायता से भागने में मदद करती है। वे उसे लाहौर ले जाते हैं जहाँ त्रिलोक और रामचंद उसे लेने के लिए आते हैं।
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* प्रबंध निर्देशक : गुलाम आरिफ
* रशीद के भाई: रोहिताश गौड़
 
 
== पुरस्कार ==
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2004 के फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन का पुरस्कार मुनीश सप्पल को मिला।
मनोज वाजपेयी को अपनी भूमिका के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
 
 
== सन्दर्भ ==
 
http://www.tribuneindia.com/2005/20051105/saturday/main1.htm चंडीगढ़ '''द ट्रिब्यून''' 5 नवम्बर 2005. 29 मार्च 2012 को लिया गया।
 
 
== बाहरी कड़ीयाँ==