"देवघर": अवतरणों में अंतर

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बैद्यनाथ मंदिर में स्थापित लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। माना जाता है कि रावण चाहता था कि उसकी राजधानी पर शिव का आशीर्वाद बना रहे। इसलिए वह कैलाश पर्वत गया और शिव की अराधना की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने रावण को अपना ज्योतिर्लिग दिया। लेकिन इसके साथ उन्होंने एक शर्त रखी कि रावण अपनी यात्रा बीच में रोक नहीं सकता और इस लिंग को कहीं भी नीच नहीं रखना होगा। यदि लिंग लंका से पहले कहीं भी नीचे रखा गया तो वह सदा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा।
 
देवगण अपने शत्रु को मिले इस वरदान से घबरा गए और एक योजना के तहत इंद्र ब्राह्मण बनकर आया। इंद्र ने ऐसा बहाना बनाया कि रावण ने यह लिंग उसे सौंप दिया। ब्राह्मण रूपी इंद्र ने यह लिंग देवघर में रख दिया। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी यह हिला नहीं। रावण अपनी गलती को सुधारने के लिए रोज यहां आता था और गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करता था।
 
लेकिन ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर की स्थापना १५९६ की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं।
दर्शन का समय: सुबह ४ बजे-दोपहर ३.३० बजे, शाम ६ बजे-रात ९ बजे तक। लेकिन विशेष धार्मिक अवसरों पर समय को बढ़या जा सकता है।
 
यहाँ पर साबन महिना मेमें बड़ा मेला लगता है मान्यता है कीकि भगवान शिबजी सावन महिना में यहाँ बिराजते है इस लिये सुलतान से गंगा जल भर कर काबरिया पैदल करीब ९५ की.की। मी.यात्रा करके यहाँ पहुचते है और भगवान शिव को गंगा जल अर्पित करते है।
 
== मंदिर के मुख्य आकर्षण ==
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=== सत्संग आश्रम ===
ठाकुर अनुकूलचंद्र के अनुयायियों के लिए यह स्थान धार्मिक आस्था का प्रतीक है। सर्व धर्म मंदिर के अलावा यहां पर एक संग्रहालय और चिड़ियाघर भी है।
 
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