"ईरान का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Persian warriors from Berlin Museum.jpg|thumb|right|360px|सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे। ]]
 
[[चित्र:Persian warriors from Berlin Museum.jpg|thumb|right|360px|सुसा में दारुश (दारा) के महल के बाहर बने "अमर सेनानी"। यह उपाधि कुछ चुनिन्दा सैनिकों को दी जाती थी जो महल रक्षा तथा साम्राज्य विस्तार में प्रमुख माने जाते थे। ]]
 
[[ईरान]] का पुराना नाम [[फ़ारस]] है और इसका इतिहास बहुत ही नाटकीय रहा है जिसमें इसके पड़ोस के क्षेत्र भी शामिल रहे हैं। इरानी इतिहास में साम्राज्यों की कहानी ईसा के ६०० साल पहले के [[हख़ामनी]] शासकों से शुरु होती है। इनके द्वारा [[पश्चिम एशिया]] तथा [[मिस्र]] पर ईसापूर्व 530 के दशक में हुई विजय से लेकर अठारहवीं सदी में [[नादिरशाह]] के भारत पर आक्रमण करने के बीच में कई साम्राज्यों ने फ़ारस पर शासन किया। इनमें से कुछ फ़ारसी सांस्कृतिक क्षेत्र के थे तो कुछ बाहरी। फारसी सास्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आधुनिक ईरान के अलावा [[इराक]] का दक्षिणी भाग, [[अज़रबैजान]], पश्चिमी [[अफगानिस्तान]], [[ताजिकिस्तान]] का दक्षिणी भाग और पूर्वी [[तुर्की]] भी शामिल हैं। ये सब वो क्षेत्र हैं जहाँ कभी फारसी सासकों ने राज किया था और जिसके कारण उनपर फारसी संस्कृति का प्रभाव पड़ा था।
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== आर्यों का आगमन और फारस ==
माना जाता है कि ईरान में पहले पुरापाषाणयुग कालीन लोग रहते थे। यहाँ पर मानव निवास एक लाख साल पुराना हो सकता है। लगभग ५००० ईसापूर्व से खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया की सभ्यता के स्थल के पूर्व में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिले हैं।
 
ईरानी लोग ([[आर्य]]) लगभग २००० ईसापूर्व के आसपास उत्तर तथा पूरब की दिशा से आए। इन्होंने यहाँ के लोगों के साथ एक मिश्रित संस्कृति की आधारशिला रखी जिससे ईरान को उसकी पहचान मिली। आधिनुक ईरान इसी संस्कृति पर विकसित हुआ। ये यायावर लोग ईरानी भाषा बोलते थे और धीरे धीरे इन्होंने कृषि करना आरंभ किया।
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{{main|हखामनी वंश}}
[[चित्र:Map achaemenid empire en.png|thumb|right|540px|प्राचीन ईरान का [[हख़ामनी साम्राज्य]] ५०० ईसापूर्व के आसपास]]
इस समय तक फारस मीदि साम्राज्य का अंग और सहायक रहा था। लेकिन ईसापूर्व ५४९ के आसपास एक फारसी राजकुमार सायरस (आधुनिक फ़ारसी में कुरोश) ने मीदि के राजा के खिलाफ़ विद्रोह कर दिया। उसने मीदि राजा एस्टिएज़ को पदच्युत कर राजधानी एक्बताना (आधुनिक [[हमादान]]) पर नियंत्रण कर लिया। उसने [[हखामनी वंश]] (एकेमेनिड) की स्थापना की और मीदिया और फ़ारस के रिश्तों को पलट दिया। अब फ़ारस सत्ता का केन्द्र और मीदिया उसका सहायक बन गया। पर कुरोश यहाँ नहीं रुका। उसने लीडिया, एशिया माइनर ([[तुर्की]]) के प्रदेशों पर भी अधिकार कर लिया। उसका साम्राज्य तुर्की के पश्चिमी तट (जहाँ पर उसके दुश्मन ग्रीक थे) से लेकर [[अफ़गानिस्तान]] तक फैल गया था। उसके पुत्र कम्बोजिया (केम्बैसेस) ने साम्राज्य को [[मिस्र]] तक फैला दिया। इसके बाद कई विद्रोह हुए और फिर दारा प्रथम ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। उसने धार्मिक सहिष्णुता का मार्ग अपनाया। हाँलांकि दारुश (दारा या डेरियस) ने, यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार, युवाओं का समर्थन प्राप्त करने की पूरी कोशिश की। उसने सायरस या केम्बैसेस की तरह कोई खास सैनिक सफलता तो अर्जित नहीं की पर उसने ५१२ इसापूर्व के आसपास य़ूरोप में अपना सैन्य अभियान चलाया था।
 
उसके बाद पुत्र खशायर्श (क्ज़ेरेक्सेस) शासक बना जिसे उसके मिस्र तथा बेबीलोन के विद्रोहों पर पुनर्विजय तथा ग्रीक अभियानों के लिए जाना जाता है। उसने [[एथेन्स]] तथा [[स्पार्टा]] के राजा को हराया। [[थर्मोपलै की लड़ाई]] में स्पार्टा के राजा [[लियोनैडस]] को उसने मार तो दिया पर फ़ारसी सेना को भी बहुत नुकसान पहुँचा। यूनानी कथाओं के अनुसार ३०० लोगों की एक सैन्य टुकड़ी ने फ़ारसी सेना को कई दिनों तक आगे बढ़ने से रोके रखा और बहुत नुकसान भी पहुँचाया। आगे चलकर उसने एक्रोपोलिस में एथेन्स पर कब्जा कियया तथा इसको जला दिया। बाद में उसे सलामिस के पास हार का मुँह देखना पड़ा जिसके बाद उसकी सेना को और भी प्रदेश हारने पड़े। ज़ेरेक्सेस के पुत्र अर्तेक्ज़ेरेक्सेस ने ४६५ ईसा पूर्व में गद्दी सम्हाली। उसने विस्थापरत यहूदियों को अपना मंदिर फिर से बनाने की इजाज़त दी। उसके बाद अर्तेक्ज़ेरेक्सेस द्वितीय, फिर अर्तेक्ज़ेरेक्सेस तृतीय और उसके बाद दारा तृतीय। दारा तृतीय के समय तक (३३६ ईसा पूर्व) फ़ारसी सेना काफ़ी संगठित हो गई थी। सेना में घुड़सवार अधिक मात्रा में हो गए थे और सैन्य कौशल भी बढ़ गया था।
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[[चित्र:Scythia-Parthia 100 BC.png|thumb|left|360 px|ईसा के सौ साल पहले सीथियों (जिसके भारतीय परवर्ती [[शक]] नाम से जाने गए) और पार्थियनों का साम्राज्य]]
 
सिकन्दर के सबसे काबिल सेनापतियों में से एक था [[सेल्युकस]]। उसका नियंत्रण मेसोपोटामिया तथा इरानी पठारी क्षेत्रों पर था। लेकिन इसी समय से उत्तर पूर्व में पार्थियों का विद्रोह आरंभ हो गया था। पार्थियनों ने हखामनी शासकों की भी नाक में दम कर रखा था। पार्थियनों ने पश्चिम में रोमनों का समना किया और पूर्व में शकों (सीथियों) को। इमें उनका शासन प्रायः अशांत रहा। मित्राडेट्स ने ईसापूर्व १२३ से ईसापूर्व ८७ तक अपेक्षाकृत स्थायित्व से शासन किया। मित्रा़डेट्स ने रोमन सीरिया के गवर्नर (राज्यपाल) क्रेसस को कार्हे के युद्ध में हरा दिया। इस युद्ध में क्रेसस ने पार्थियनों के सेनापति ''सुरेन'' के साथ समझौता करने की भी कोशिश की, पर उसका अंत सिर कटने के बाद हुई। सुरेन के चरित्र को ही शायद बाद में दसवीं सदी में फ़ारसी कवि [[फिरदौसी]] ने अपने ग्रंथ [[शाहनामे]] (राजाओं का गुणगान) में ''रुस्तम'' नाम से अमर कर दिया है। रुस्तम न सिर्फ़ एक बहादुर सेनापति था बल्कि एक भावुक प्रेमी भी।
 
[[जूलियस सीज़र]] की हत्या के समय पार्थियनों ने कुछ रोमन क्षेत्रों पर अधिकार किया जिसमें मध्यपूर्व का इलाका भी शामिल है। अगले कुछ सालों तक शासन की बागडोर तो पार्थियनों के हाथ ही रही पर उनका नेतृत्व और समस्त ईरानी क्षेत्रों पर उनकी पकड़ ढीली ही रही। अगले कुछ वर्षों में रोमनों के साथ पार्य़ियनों के कई युद्ध हुए जिसमें कई बार पार्थियनों को हार का मुँह देखना पड़ा पर इसी समय उन्होंने पूर्व में [[पंजाब]] में एक भारतीय-पार्थियन संस्कृति को जन्म दिया जिन्हें पहलवियों के नाम से जाना गया।
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[[चित्र:Relief of Shapur I capturing Valerian.jpg|thumb|left|400px|शापुर प्रथम के सामने हारा रोमन शासक [[वेलेरियन]] और साथ में [[फ़िलिप अरबी]] ]]
पर तीसरी सदी के बाद से सासानी शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। इस वंश की स्थापना अर्दाशिर प्रथम ने सन् २२४ में पार्थियन शासक अर्दवन को हराकर की। उन्होंने [[रोमन साम्राज्य]] को चुनौती दी और कई सालों तक उनपर आक्रमण करते रहे। सन् २४१ में [[शापुर]] ने रोमनों को मिसिको के युद्ध में हराया। २४४ इस्वी तक अर्मेनिया फारसी नियंत्रण में आ गया। इसके अलावा भी पार्थियनों ने रोमनों को कई जगहों पर परेशान किया सन् २७३ में शापुर की मृत्यु हो गई। सन् २८३ में रोमनों ने फारसी क्षेत्रों पर फिर से आक्रमण कर दिया। इसके फलस्वरूप अर्मेनिया के दो भाग हो गए - रोमन नियंत्रण वाले और फारसी नियंत्रण वाले। शापुर के पुत्रों को और भी समझौते करने पड़े और कुछ और क्षेत्र रोमनों के नियंत्रण में चले गए। सन् ३१० में शापुर द्वितीय गद्दी पर युवावस्था में बैठा। उसने ३७९ इस्वी तक शासन किया। उसका शासन अपेक्षाकृत शांत रहा। उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसके उत्तराधिकारियों ने वही शांति पूर्ण विदेश नीति अपनाई पर उनमें सैन्य सबलता की कमी रही। आर्दशिर द्वितीय, शापुर तृतीय तथा बहराम चतुर्थ सभी संदिग्ध अवस्था में मारे गए। उनके वारिस यज़्देगर्द ने रोमनों के साथ शांति बनाए रखा। उसके शासनकाल में रोमनों के साथ सम्बंध इतने शांतिपूर्ण हो गए कि पूर्वी रोमन साम्राज्य के शासक अर्केडियस ने यज़्देगर्द को अपने बेटे का अभिभावक बना दिया। उसके बाद बहरम पंचम शासक बना जो जंगली जानवरों के शिकार का शौकीन था। वो ४३८ इस्वी के आसपास एक जंगली खेल देखते वक्त लापता हो गया जिसके बाद उसके बारे में कुछ पता नहीं चल सका।
 
 
इसके बाद की अराजकता में कावद प्रथम ४८८ इस्वी में शासक बना। इसके बाद खुसरो (५३१-५७९), होरमुज़्द चतुर्थ (५७९-५८९), खुसरो द्वितीय (५९० - ६२७) तथा यज्देगर्द तृतीय का शासन आया। जब यज़्देगर्द ने सत्ता सम्हाली तब वो केवल ८ साल का था।
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==== शिया इस्लाम ====
{{main| शिया }}
मुहम्मद साहब की मृत्यु के उपरांत उनके वारिस को [[ख़लीफा]] कहा जाता था जो इस्लाम का प्रमुख माना जाता था। चौथे खलीफा अली, मुहम्मद साहब के फरीक थे और उनकी पुत्री फ़ातिमा के पति। पर उनके खिलाफत को चुनौती दी गई और विद्रोह भी हुए। सन् ६६१ में अली की हत्या कर दी गई। इसके बाद उम्मयदों का प्रभुत्व इस्लाम पर हो गया। सन् ६८० में [[करबला]] में अली के दूसरे पुत्र हुसैन ने उम्मयदों के खिलाफ़ बगावत की पर उनको एक युद्ध में मार दिया गया। इसी दिन की याद में शिया मुसलमान महुर्रम मनाते हैं। इस समय तक इस्लाम दो खेमे में बट गया था - उम्मयदों का खेमा |और अली का खेमा। जो उम्मयदों को इस्लाम के वास्तविक उत्तराधिकारी समझते थे वे शिया कहलाए और जो अली को वास्तविक खलीफा (वारिस) मानते थे वे सुन्नी| सन् ७४० में उम्मयदों को तुर्कों से मुँह की खानी पड़ी। उसी साल एक फारसी परिवर्तित - अबू मुस्लिम - ने उम्मयदों के खिलाफ़ मुहम्मद साहब के वंश के नाम पर उम्मयदों के खिलाफ एक बड़ा जनमानस तैयार किया। उन्होंने सन् ७४९-५० के बीच उम्मयदों को हरा दिया और एक नया खलीफ़ा घोषित किया - अबुल अब्बास। अबुल अब्बास अली और हुसैन का वंशज तो नहीनहीं पर मुहम्मद साहब के एक और फरीक का वंशज था। उससे अबु मुस्लिम की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं गई और उसको ७५५ इस्वी में फाँसी पर लटका दिया। इस घटना को शिया इस्लाम में एक महत्त्वपूर्ण दिन माना जाता है क्योंकि एक बार फिर अली के समर्थकों को हाशिये पर ला खड़ा किया गया था। अबुल अब्बास के वंशजों ने कई सदियों तक राज किया। उसका वंश [[अब्बासी वंश]] (अब्बासिद) कहलाया और उन्होंने अपनी राजधानी [[बगदाद]] में स्थापित की। उनका शासन अरब और पश्चिम एशियाई सेना तथा फ़ारसी साहित्य के प्रभाव के सम्मिलमन से बना। अरबी भाषा में विज्ञान, चिकित्सा तथा ज्योतिष के कई अविस्मरणीय योगदान ईरानियों ने मुख्यतः अरबी भाषा में किया। दसवीं सदी में पश्चिम एशिया के ईरानी मूल के बुवाई शासकों ने बग़दाद पर आक्रमण कर उसे हरा दिया और इस तरह अब्बसी ख़िलाफ़त की श्रेष्ठता पर विराम लगा दिया।
 
==== छोटे साम्राज्यों और विदेशी आक्रमण का काल ====
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रजा शाह ने १९३० के दशक में ईरान का आधुनिकीकरण प्रारंभ किया। पर वो अपने प्रेरणस्रोत तुर्की के [[कमाल पाशा]] की तरह सफल नहीं रह सका। उसने शिक्षा के लिए अभूतपूर्व बंदोबस्त किए तथा सेना को सुगठित किया। उसने तुर्की के कमाल पाशा की तरह देश के कार्यों में धर्म का प्रभाव कम किया। कट्टर इस्लामियों को जेल या देश निकाला की सज़ा दी गई। [[अयातोल्लाह खुमैनी]] इसी के तहत पहले [[इराक़]], फिर [[इस्ताम्बुल]] और उसके बाद [[पेरिस]] में रहे। उसके बाद १९७९ में एक और आन्दोलन हुआ जिसका कारण धार्मिक था। इसके फलस्वरूप [[पहलवी वंश]] का पतन हो गया और अयातोल्ला खोमैनी को सत्ता मिली। उनका देहांत १९८९ में हुआ। उनके शासन काल में ही इस्लामी प्रभाव के तहत उन्हें लेखक [[सलमान रश्दी]] के ख़िलाफ़ [[फ़तवा]] जारी करना पड़ा। इसके बाद से ईरान में विदेशी प्रभुत्व लगभग समाप्त हो गया।
 
अभी ईरान में सख़्त इस्लामी नियम लागू हैं और महिलाओं को [[हिज़ाब]] पहनने की विवशता है। हंलाँकि तेल से पैसे आ जाने की वजह से शहरों में जनजीवन विलासिता पूर्ण है पर इस्लामिक कानून (शरियत) के सख़्त दायरे के भीतर रहकर। राष्ट्रपति [[अहमदी निज़ाद]] (अहमनदेनिजाद) पर अपने परमाणु कार्यक्रम रोकने की भरपूर अंतर्राष्ट्रीय दबाब बनाया जा रहा है। अमेरिका सहित कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिये हैहैं और इसरायल सैनिक कार्यवाही की धमकी दे रहा है।
 
== सन्दर्भ ==