"क्रान्ति": अवतरणों में अंतर
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'''क्रान्ति''' (Revolution) अधिकारों या संगठनात्मक संरचना में होने वाला एक मूलभूत परिवर्तन है जो अपेक्षाकृत कम समय में ही घटित होता है।
[[अरस्तु|अरस्तू]] ने दो प्रकार की राजनीतिक क्रान्तियों का वर्णन किया है:
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[[चित्र:Sunyatsen1.jpg|thumb|220px|right|सुन यट-सेन, 1911 के चीनी ज़िन्हाई क्रान्ति के नेता.]]
संभवतः प्रायः ही, 'क्रान्ति' शब्द का प्रयोग सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन की ओर संकेत करने के लिए किया जाता है।<ref name="Goldstonet3">जैक गोल्डस्टोन, "क्रान्तियों के सिद्धांत: तीसरी पीढ़ी'','' विश्व की राजनीति ''32, 1980:425-53''</ref><ref name="Forantorr">जॉन फ़ौरन, "क्रान्ति के सिद्धांतों पर दोबारा गौर: चौथी पीढ़ी की ओर", समाजशास्त्रीय सिद्धांत ''11, 1993:1-20''</ref><ref name="Kroeber">क्लिफ्टन बी. करोबर, क्रान्ति के सिद्धांत और इतिहास, ''विश्व इतिहास का जर्नल 7.1, 1996: 21-40''</ref> राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत क्राति वह है जो किसी देश में राजनीतिक सत्ता के आकस्मिक परिवर्तन से आरंभ होती है और फिर वहीं के रामाजिक जीवन को नए रूप में ढाल देती है। साधारपात: क्रान्ति एक विशेष सामाजिक-राजनीतिक स्थिति में जन्म लेती है।<ref>{{cite book|url=https://books.google.co.in/books?isbn=0070264201|title='समाजशास्त्र मुख्य:'|author=एस. एस. पांडे|page=6-38|publisher=टाटा मैक्ग्राहिल}}</ref> जेफ गुडविन क्रान्ति की दो परिभाषाएं देते हैं। एक व्यापक है, जिसके अनुसार क्रान्ति है
{{cquote|"any and all instances in which a state or a political [[:en:regime]] is overthrown and thereby transformed by a popular [[:en:Social movement|movement]] in an irregular, extraconstitutional and/or violent fashion"}}
और एक संकीर्ण है, जिसमें
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दूसरी पीढ़ी के सिद्धान्तवादियों ने देखा कि क्रान्तियों का विकास एक दोहरी प्रक्रिया है; पहले, वर्तमान अवस्था में कुछ परिवर्तन ऐसा परिणाम देते हैं जो भूतकाल के परिणामों से भिन्न हैं; दूसरा, नयी अवस्था क्रान्ति के घटित होने के लिए एक अवसर प्रदान करती है। ऐसी अवस्था में, एक घटना जोकि भूतकाल में क्रान्ति करवाने के लिए पर्याप्त नहीं थी (जैसे, [[संग्राम|युद्ध]], दंगे, ख़राब फसल), वही अब इसके लिए पर्याप्त होती है- हालांकि यदि अधिकारी ऐसे खतरों के प्रति सचेत रहेंगे, तो इस अवस्था में भी वह विरोध को रोक सकते हैं (सुधार या दमनीकरण द्वारा)। <ref name="Goldstonet4"/>
क्रान्तियों से सम्बंधित अनेकों प्रारंभिक अध्ययनों ने चार मौलिक मुद्दों पर केन्द्रित होने का प्रयास किया- प्रसिद्द एवम विवाद रहित उदाहरण जोकि वास्तव में क्रान्तियों की सभी परिभाषाओं के लिए सटीक है, जैसे कि [[गौरवपूर्ण क्रान्ति|ग्लोरियस रिवौल्युशन]] (1688), [[फ़्रांसीसी क्रान्ति|फ़्रांसिसी क्रान्ति]] (1789-1799), 1917 की रूसी क्रान्ति और चीनी क्रान्ति (1927-1949)। <ref name="Goldstonet4"/> हालांकि, प्रसिद्द हारवर्ड इतिहासकार, क्रेन ब्रिन्टन ने अपनी प्रसिद्द पुस्तक "द एनाटौमी ऑफ रिवौल्युशन" में [[अंग्रेज़ी गृहयुद्ध|अंग्रेजी गृहयुद्ध]], [[
समय के साथ, विद्वान् अन्य सैकड़ों घटनाओं का विश्लेषण भी क्रान्ति के रूप में करने लगे (क्रान्तियों व विद्रोहियों की सूची देखें) और उनकी परिभाषाओं व पद्धतियों में अंतर ने नयी परिभाषा व स्पष्टीकरण को जन्म दिया। दूसरी पीढ़ी के सिद्धांतों की आलोचना उनके सीमित भौगोलिक प्रसार, आनुभविक सत्यापन की कठिनाइयों और साथ ही साथ इस आधार पर की गयी कि हालांकि वह कुछ विशेष क्रान्तियों का स्पष्टीकरण देती हैं लेकिन इस बात के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाती कि इन्ही परिस्थितियों में अन्य समाजों में विद्रोह क्यूं नहीं हुए.<ref name="Goldstonet4"/>
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[[चित्र:Thefalloftheberlinwall1989.JPG|thumb|left|बर्लिन वॉल के फौल और यूरोप में ऑटम ऑफ़ नेशन के सबसे अधिक इवेंट्स, 1989, अचानक और शांतिपूर्ण रहे थे।]]
1980 के दशक के अंतिम वर्षों से विद्वत्तापूर्ण कार्यों के एक नए निकाय ने तीसरी पीढ़ी के सिद्धांतों की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए। पुराने सिद्धांतों को भी नयी क्रन्तिकारी घटनाओं के द्वारा खासा आघात लगा जो उनके द्वारा सरलता से व्यक्त नहीं किया जा सका। 1979 में [[ईरान की इस्लामिक क्रान्ति|इरानी]] और र्निक्रगुआन क्रान्तियां, [[१९८६|1986]] में [[फ़िलीपीन्स|फिलिपिन्स]] में जनशक्ति क्रान्ति और 1989 में यूरोप में ऑटम ऑफ नेशंस इस बात के गवाह बने कि अहिंसक क्रान्तियों में प्रसिद्द प्रदर्शन एवं [[हड़ताल|जन हड़ताल]] में कई शक्तिशाली प्रतीत होने वाले शासनों को बहु वर्ग संयोग ने ध्वस्त कर दिया।
अब क्रान्ति या विद्रोह को यूरोपीय हिंसक अवस्था बनाम जनता या [[वर्ग संघर्ष]] के रूप में परिभाषित करना पर्याप्त नहीं था। इस प्रकार क्रान्तियों का अध्ययन तीन दिशाओं में विकसित हुआ, पहला, कुछ अनुसंधानकर्ता क्रान्ति के पिछले या अद्यतनीकृत संरचनात्मक सिद्धान्तों को उन घटनाओं के सम्बन्ध में लागू कर रहे थे जो पूर्व में विश्लेषित नहीं थीं, अधिकांशतः यूरोपीय संघर्ष. दूसरा, विद्वानों के अनुसार क्रन्तिकारी लामबंदी व लक्ष्यों को वैचारिक मत व [[संस्कृति]] के रूप में आकार प्रदान करने के लिए जागरूक संस्था के प्रति और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता थी। तीसरा, क्रान्तियों और सामाजिक आन्दोलनों, दोनों ही क्षेत्र के विश्लेषकों ने यह अनुभव किया कि दोनों तथ्यों के बीच काफी कुछ उभयनिष्ठ है और विवादपूर्ण राजनीति के एक नए 'चौथी पीढ़ी' के साहित्य का विकास हुआ जोकि दोनों तथ्यों को समझाने की आशा में सामाजिक आन्दोलनों और क्रान्तियों दोनों के ही परीज्ञानों को जोड़ने का प्रयास करता है।<ref name="Goldstonet4"/>
हालांकि क्रान्तियां, कम्युनिस्ट क्रान्ति जोकि अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण थी और जिसने कम्युनिस्ट शासन का तख्तापलट कर दिया था, से लेकर अफगानिस्तान की हिंसक क्रान्ति को भी, क्रान्ति के अंतर्गत समावेशित करती हैं, पर वह [[तख्ता पलट|कॉप्स डि'इटैट्स]], गृहयुद्ध, विद्रोहों और ऐसे राजद्रोह को क्रान्ति के अंतर्गत शामिल नहीं करती जो अधिकार के प्रमाणीकरण या समाज में रूपांतरण का कोई प्रयास नहीं करते (जैसे जोसेफ पिल्सुद्सकी का 1926 का
== प्रकार ==
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