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=== विश्व धरोहर रणथंभोर दुर्ग ===
कंबोडिया के नामपेन्ह शहर में [[यूनेस्को]] की विरासत संबंधी वैश्विक समिति की 36वीं बैठक में दिनांक 21जून 2013 शुक्रवार को भारत का पहाड़ी दुर्ग [[रणथंभोर]] का चयन किया गया, इस दुर्ग के घटनाक्रम को विश्व में लाइव देखा गया और सराहा गया ! [[रणथंभोर दुर्ग]] के अलावा [[राजस्थान]] में जंतर-मंतर वेधशाला, घना पक्षी विहार , आमेर का दुर्ग, गागरोन का किला, कुंभलगढ़ का किला, जैसलमेर का दुर्ग एवं चितौड़गढ़ का किला भी विश्व धरोहर में शामिल है !
 
=== निर्माण काल ===
इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ज्यादातर इतिहासकार इस दुर्ग का निर्माण चौहान राजा रणथंबन देव द्वारा ९४४ में निर्मित मानते हैहैं, इस किले का अधिकांश निर्माण कार्य चौहान राजाओं के शासन काल में ही हुआ है। दिल्ली के सम्राट [[पृथ्वीराज चौहान]] के समय भी यह किला मौजूद था और चौहानों के ही नियंत्रण में था।
 
=== शासक ===
११९२ में [[तराइन का युद्ध|तहराइन के युद्ध]] में [[मुहम्मद गौरी]] से हारने के बाद [[दिल्ली]] की सत्ता पर [[पृथ्वीराज चौहान]] का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर को अपनी राजधानी बनाया। गोविन्द राज के अलावा वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, [[हम्मीर चौहान|हम्मीरदेव]], [[महाराणा कुम्भा]], [[राणा सांगा]], [[शेर शाह सूरी|शेरशाह सुरी]], [[अलाउद्दीन खिलजी|अल्लाऊदीन खिलजी]], राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा [[आमेर]] के राजाओं आदि का समय-समय पर नियंत्रण रहा लेकिन इस दुर्ग की सबसे ज्यादा ख्याति हम्मीर देव (1282-1301) के शासन काल मेमें रही। हम्मीरदेव का 19 वर्षो का शासन इस दुर्ग का स्वर्णिम युग था। [[हम्मीर देव चौहान]] ने 17 युद्ध किए जिनमे13 युद्धो मेमें उसे विजय श्री मिली। करीब एक शताब्दी तक ये दुर्ग [[चित्तौड़गढ़|चितौड़]] के महराणाओ के अधिकार मेमें भी रहा। खानवा युद्ध मेमें घायल [[राणा सांगा]] को इलाज के लिए इसी दुर्ग मेमें लाया गया था।
 
=== आक्रमण ===
[[चित्र:1569-Akbar directing the attack against Rai Surjan Hada at Ranthambhor Fort.jpg|thumb|अकबर राय सुरजन हाडा के खिलाफ रणथम्भौर किले पर हमले का निर्देशन]]
रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमणों की भी लम्बी दास्तान रही है जिसकी शुरुआत दिल्ली के [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] से हुई और [[मुगल]] बादशाह [[अकबर]] तक चलती रही। [[मोहम्मद ग़ोरी|मुहम्मद गौरी]] व चौहानो के मध्य इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिये 1209 मेमें युद्ध हुआ। इसके बाद 1226 मेमें [[इल्तुतमिश|इल्तुतमीश]] ने, 1236 मेमें [[रजिया सुल्तान]] ने, 1248-58 मेमें बलबन ने, 1290-1292 मेमें जलालुद्दीन खिल्जी ने, 1301 मेमें अलाऊद्दीन खिलजी ने, 1325 मेमें [[फ़िरोज़ शाह तुग़लक़|फ़िरोजशाह तुगलक]] ने, 1489 मेमें मालवा के मुहम्म्द खिलजी ने, 1529 मेमें [[महाराणा कुम्भा]] ने, 1530 मेमें [[गुजरात]] के बहादुर शाह ने, 1543 मेमें शेरशाह सुरी ने आक्रमण किये। 1569 मेमें इस दुर्ग पर दिल्ली के बादशाह [[अकबर]] ने आक्रमण कर [[आमेर]] के राजाओराजाओं के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली।
 
=== वर्तमान ===
कई ऐतिहासिक घटनाओं व [[हम्मीर चौहान|हम्मीरदेव चौहान]] के हठ और शौर्य के प्रतीक इस दुर्ग का जीर्णोद्धार [[जयपुर]] के राजा पृथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया। [[राजा मान सिंह|महाराजा मान सिंह]] ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रूप मेमें परिवर्तित कराया। आजादी के बाद यह दुर्ग सरकार के अधीन हो गया जो 1964 के बाद [[भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण]] के नियंत्रण में है।
 
==चित्रावली==