"सिंचाई": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:LevelBasinFloodIrrigation.JPG|200px|thumbnail|right|गेहूं की सिंचाई]]
[[चित्र:Plain of punjab.jpg|200px|thumbnail|[[पंजाब (भारत)|पंजाब]] में सिंचाई]]'''सिंचाई''' [[मिट्टी]] को कृत्रिम रूप से [[पानी]] देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग [[फसल]] उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र
* फसल को [[पाला|पाले]] से बचाने,<ref>{{Cite web
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|format=PDF| id = ISSN: 1684-8241. }}</ref>
* मिट्टी को सूखकर कठोर (समेकन) बनने से रोकने,<ref>[http://ngm.nationalgeographic.com/2008/09/soil/mann-text.html Arid environments becoming consolidated]</ref>
* धान के खेतों
| last = Williams
| first = J. F.
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| publisher = [[UC Davis, Department of Plant Sciences]]
| url = http://www.plantsciences.ucdavis.edu/uccerice/WATER/water.htm
| accessdate = 2007-03-14 }}</ref>
जो कृषि अपनी जल आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है उसे '''वर्षा-आधारित कृषि''' कहते हैं। सिंचाई का अध्ययन अक्सर [[जल निकासी]], जो पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से किसी क्षेत्र की
== इतिहास ==
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==सिंचाई की विधियाँ==
[[भारत]] में
=== कटवाँ या तोड़ विधि ===
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=== थाला विधि ===
यह नकबार या क्यारी विधि के समान होता है पर क्यारी विधि में पूरी क्यारी जल से भरी जाती जबकि इस विधि
जब [[पेड़]] छोटे होते है थाले छोटे होते है और इनका आकार पेड़ों की उम्र के साथ बढ़ता है। ये थाले सिंचाई की नाली से जुड़े रहते हैं।
=== नकबार या [[क्यारी]] विधि ===
यह सतह की सिंचाई विधियों की सबसे आम विधि है। इस विधि में [[खेत]] छोटी-छोटी [[क्यारी|क्यारियों]] में बांट दिया जाता हैं जिनके चारो तरफ छोटी मेड़ें बना दी जाती है पानी मुख्य नाली से खेत की एक के बाद एक नाली में डाला जाता है खेत की हर नाली क्यारियों की दो पंक्तियों को पानी की पूर्ति करती है। यह विधि उन खेतों में प्रयोग की जाती है जो आकार में बड़े होते है और पूरे खेत का समतलीकरण एक समस्या होता है।
इस स्थिति में खेत को कई पट्टियों में बांट दिया जाता है और इनपट्टियों को मेंड़ द्वारा छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लिया जाता है इस विधि का सबसे बड़ालाभ यह है कि इस में पानी पूरे खेत में एक समान तरीके से प्रभावित रूप में डाला जा सकता है। यह पास-पास उगाई जाने वाली फसलों के लिये जैसे मूँगफली, गेहूँ, छोटे खाद्दान्न पारा घास आदि के लिये उपयुक्त विधि है। इसके अवगुण है इसमें मजदूर अधिक लगते हैं,
{{मुख्य|द्रप्स सिंचाई}}
इस विधि में यंत्र जिन्हें ए.मीटर या [[एप्लीकेटर]] कहते हैं के द्वारा जल धीरे-धीरे लगातार बूंद-बूंद करके या छोटे फुहार के रूप में पोधो तक [[प्लास्टिक]] की पतली नलियों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। यह विधि सिंचाई जल की अत्यंत कमी वाले स्थानो पर प्रयोग की जाती है। मुख्यतः यह [[नारियल]], [[अंगूर]], [[केला]], [[बेर]], [[नीबू]] प्रजाति, [[गन्ना]], [[कपास]], [[मक्का]], [[टमाटर]], [[बैंगन]] और [[प्लान्टेशन]] फसलों में इसका प्रयोग किया जाता है।
=== बौछारी सिंचाई ===
इस विधि में सोत्र
== जल के स्रोत ==
=== नदी ===
यह जल स्रोत का धरातलीय विधि
जिसके अंतर्गत सिचाई किया जाता है।
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