"ओ. हेनरी": अवतरणों में अंतर

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'''ओ. हेनरी''' या '''विलियम सिडनी पोर्टर''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]: William Sydney Porter) ([[11 सितंबर]], [[1862]]–[[5 जून]], [[1910]]) प्रसिद्ध [[अमेरिका|अमेरिकन]] लेखक थे। उनका जन्म [[11 सितंबर]], [[1862]] के दिन [[ग्रीन्सबरो]], [[उत्तर केरोलाइना]] में हुआ और म्रत्यु [[5 जून]], [[1910]] को [[न्यू यार्क]] में। पिछले वर्षों में वह अपना बीच का नाम 'सिडनी' ही लिखा करते थे।
 
== जीवन ==
सोलह वर्ष की उम्र में उन्होने स्कूल छोड़ दिया, पर उनकी पढ़ने-लिखने की आतुरता नहीं छूटी। बचपन में उन्होने ग्रीन्सबरो की एक दवाइयों की दुकान में काम किया था, जहां अब तक उसकी जयन्ती मनायी जाती है। उन्नीस वर्ष की अवस्था में वह अपना स्वास्थ्य सुधारने के लिए [[टेक्सास]] प्रदेश के गोचरों में रहने चला गया। वहां उसने घुड़सवारी सीख ली और जंगली, अड़ियल घोड़ो को भी वश में करने लगा। फ़िर [[ऑस्टिन]] में उसे एक खेती-बाड़ी के दफ़्तर में नौकरी मिल गयी।
 
आपने आस-पास के चित्रमय जीवन की जिन वस्तुओं का भी उसे परिचय हुआ, वे सब की सब उसकी कहानियों में छन आयीं। यही कारण है कि उसकी कहानियां अधिकतर चरागाहों के प्रदेश, मध्य अमरीका या न्यूयार्क में घटित होती है। शहरी जीवन की कहानियों में जिनके लिए वह प्रसिद्ध है, जीवन की विडम्बनाओं कीस्वीक्रति हैं। वे उनके अपने कटु अनुभवों के प्रतिबिम्ब हैं।
 
अपने पन्द्रह वर्ष के जिस टेक्सास प्रवास में उन्होने विवाह किया और एक पुत्री के पिता बने, उसी में खेदजनक घटानाओं ने उनकी उमंगो को ढंक लिया। उन्हे किसी बैंक में नोट गिनने का काम मिल गया, लेकिन कुछ ही दिनों में उसके हिसाब में कुछ हजारेक डालर की गड़बड़ का पता चलने पर, वह नौकरी भी छूट गई। ऎसा लगता है कि उसके मालिक उसे सजा दिलाना नहीं चाहते थे, इसलिए वह बिना रोक-टोक, लगभग एक वर्ष तक [[ह्युस्टन]] शहर के एक अखबार में काम करता रहा। तब, शायद गिरफ़्तारी से बचने के लिए वह [[न्यू ओर्लियन्स]] चले गए, जहां से उन्होने [[टूजिलो]] और [[होण्डूरास]] का टिकट कटा लिया। 'केबेजस एण्ड किंग्स' नामक उसकी सर्वप्रथम पुस्तक में वर्णित, साहस और जीवट की सारी कहानियों का घटनास्थल यहीं से मिला है। अपनी पत्नी की बीमारी ने उन्हे वापिस [[ऑस्टिन]] बुला लिया। उनके लौटते ही वह मर गयी। तब खयानत के अपराध में उनपर मुकदमा चला और सजा हो गयी।
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जीते नहीं बल्कि उससे खिलवाड़ करते प्रतीत होते है। पाठको का मनोरंजन करना उसका ध्येय था और उनकी कौतूहलव्रत्ति को जगाते रखने के लिए, उनहोने अपनेपात्रों से तरह-तरह के तमाशे करवाये हैं। वे रोमांस के भूखे, बुरे वक्त का हिम्मत से मुकाबला करने वाले, कुलीनता का ढोंग करने वाले और आधुनिक '[[अलिफ़-लैला]]' की रंगीन दुनिया में विचरने वाले चित्रित किए गये हैं।
 
मनुष्य का सर्वस्पर्शी और सागोपांग विश्लेषण उन्होने शायद ही कहीं किया हो। उन्होने तो मनुष्य का, आधुनिक शहरी जीवन के भंवर मेमें फ़से हुए, असहाय व्यक्ति के रूप मेमें ही, दर्शन कराया। 'स्नेह दीप' कहानी की नान्सी को सिर्फ़ एक दुकान में काम करने के कारण, एक दुकानदार लड़की मानने से वह इन्कार कर देता है और कहता है," ऎसी कोई किस्म नहीं होती। आज के भ्रष्ट समाज को किस्म खोजने की आदत पड़ गयी है।" उसने मनुष्य को इतना गिरा हुआ शायद हीचित्रित किया हो कि वह अपनी कमजोरियों के लिए शर्मिंदा भी न हो। उसकी सब कहानियों के नीचे सह्रदयता और सहानुभुति की अन्तर्धारा बह रही है। जीवनमें भूले-भटके या पिछड़े हुए हर बदनसीब को वह मनुष्यता के व्यापक कुटुम्ब में स्थान देने को सदा तत्पर रहा। कभी-कभी वे उसका मनोरंजन करते हैं, कभीअपने जीवन की विडम्बनाओं से उसे दुखी कर देते है और कभी वह भावुक भी हो उठता अहि परन्तु हर हालत में, वह भाग्य की हर छेड़छाड़ को स्वीकार कर लेतेहै और उसके खलनायक भी हास्यास्पद ही हो पाते हैं- दुष्ट नहीं।
 
ओ० हेनरी की कला, उसकी दूसरी किताब '[[द फ़ोर मिलियन]]' में निखर उठी, जिससे उसे काफ़ी लोकप्रियता भी मिली। प्रथम बार प्रकाशित होने के चालीस वर्ष बाद, उसकी 'उपहार' नामक कहानी का चलचित्र बना। उसकी अन्य कहानियों के कई संकलन प्रकाशित हुए जैसे 'स्नेह दीप' (१९०७), 'पश्चिम की आत्मा' (१९०७), 'शहर की आवाज' (१९०८),'भाग्यचक्र' (१९०९),'विकल्प' (१९०९),'धन्धे की बात' (१९१०),' जीवन चक्र' (१९१०)। उसकी म्रत्यु के बाद तीन किताबें और छपीं- 'सफ़ेदपोश ठग', 'आवारा' और 'भूले-भटके'।