"शून्य": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
ऑटोमेटिक वर्तनी सु, replaced: → |
||
पंक्ति 1:
'''शून्य''' (0) एक [[अंक]] है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी [[स्थानीय मान पद्धति]]यों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक [[संख्या]] भी है। दोनों रूपों में [[गणित]] में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। [[पूर्णांक|पूर्णांकों]] तथा [[वास्तविक संख्या]]ओं के लिये यह [[योग का तत्समक अवयव]] (additive identity) है।
== गुण ==
पंक्ति 13:
: ''कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥ २ ॥
अर्थात् "एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, नियुत, प्रयुत, कोटि, अर्बुद तथा बृन्द में प्रत्येक पिछले स्थान वाले से अगले स्थान वाला दस गुना है।"<ref>[https://books.google.co.in/books?id=blpvBQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false महान् खगोलविद्-गणितज्ञ आर्यभट] (गूगल पुस्तक ; दीनानाथ साहनी)</ref>
शून्य तथा संख्या के दशमलव के सिद्धान्त का सर्वप्रथम अस्पष्ट प्रयोग [[ब्रह्मगुप्त]] रचित ग्रंथ [[ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त]] में पाया गया है। इस ग्रंथ में ऋणात्मक संख्याओं (negative numbers) और बीजगणितीय सिद्धान्तों का भी प्रयोग हुआ है। सातवीं शताब्दी, जो कि [[ब्रह्मगुप्त]] का काल था, शून्य से सम्बंधित विचार [[कम्बोडिया]] तक पहुँच चुके थे और दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि बाद में ये [[कम्बोडिया]] से [[चीन]] तथा अन्य [[मुस्लिम]] संसार में फैल गये।
पंक्ति 33:
* [[शून्य से भाजन]]
* [[अनन्त]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
|