"सौन्दर्य प्रसाधन": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Cosmetics.JPG|right|thumb|250px|कुछ सौन्दर्य प्रसाधन और लगाने के औजार]]
[[चित्र:Eye makeup.jpg|right|thumb|300px|स्त्री की रागालंकृत आँख का पास से लिया गया फोटो]]
'''अंगराग''' या '''सौन्दर्य प्रसाधन''' या कॉस्मेटिक्स (Cosmetics) ऐसे पदार्थों को कहते हैं जो मानव शरीर के सौन्दर्य को बढ़ाने या सुगन्धित करने के काम आते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों का सौंदर्य अथवा मोहकता बढ़ाने के लिए या उनको स्वच्छ रखने के लिए शरीर पर लगाई जाने वाली वस्तुओं को अंगराग (कॉस्मेटिक) कहते हैं, परंतु साबुन की गणना अंगरागों में नहीं की जाती।
 
अंगराग प्राकृतिक या कृत्रिम दोनो प्रकार के होते हैं। वे विशेषतः त्वचा, केश, नाखून को सुन्दर और स्वस्थ बनाने के काम आते हैं। ये व्यक्ति के शरीर के गंध और सौन्दर्य की वृद्धि करने के लिये लगाये जाते है।
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[[सभ्यता]] के प्रादुर्भाव से ही मनुष्य स्वभावत: अपने शरीर के अंगों को शुद्ध, स्वस्थ, सुडौल और सुंदर तथा त्वचा को सुकोमल, मृदु, दीप्तिमान और कांतियुक्त रखने के लिए सतत प्रयत्नशील रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शारीरिक स्वास्थ्य और सौंदर्य प्राय: मनुष्य के आंतरिक स्वास्थ्य और मानसिक शुद्धि पर निर्भर है। तथापि, यह सत्य है कि किसी के व्यक्तित्व को आकर्षक और सर्वप्रिय बनाने में अंगराग और सुगंध विशेष रूप से सहायक होते हैं। संसार के विभिन्न देशों के साहित्य और सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि भिन्न-भिन्न अवसरों पर प्रगतिशील नागरिकों द्वारा अंगराग और गंध शास्त्र संबंधी कलाओं का उपयोग शारीरिक स्वास्थ्य और त्वचा की सौंदर्य वृद्धि के लिए किया जाता रहा है।
 
[[भारत]] के परिप्रेक्ष्य में अंगराग, सुगंध आदि की रचना व उपयोग को मनुष्य की तामसिक वासनाओं का उत्तेजक न मानकर समाज कल्याण और धर्म प्रेरणा का साधन समझा जाता रहा है। आर्य संस्कृति में अंगराग और गंध शास्त्र का महत्व प्रत्येक सद्गृहस्थ के दैनिक जीवन में उतना ही आवश्यक रहा है जितना पंच महायज्ञ और वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा का पालन। वैदिक साहित्य, [[महाभारत]], [[बृहत्संहिता]], [[निघंटु]], [[सुश्रुत]], [[अग्निपुराण]], [[मार्कण्डेयपुराण]], [[शुक्रनीति]], [[कौटिल्य]] [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]], [[शार्ङ्गधर|शारंगधर पद्धति]], [[वात्स्यायन]] [[कामसूत्र]], [[ललित विस्तर]], भरत [[नाट्यशास्त्र]], [[अमरकोश]] इत्यादि में नानाविध अंगरागों और गंध-द्रव्यों का रचनात्मक और प्रयोगात्मक वर्णन पाया जाता है। सद्गोपाल और पी.के. गोडे के अनुसंघानों के अनुसार इन ग्रंथों में शरीर के विविध प्रसाधनों में से विशेषतया दर्पण की निर्माण कला, अनेक प्रकार के उद्वर्तन, विलेप, धूलन, चूर्ण, पराग, तैल, दीपवर्ति, धूपवर्ति, गंधोदक, स्नानीय चूर्णवास, मुखवास इत्यादि का विस्तृत विधान किया गया है।
 
[[गंगाधर]]कृत [[गंधसार]] नामक ग्रंथ के अनुसार तत्कालीन भारत में अंगरागों के निर्माण में मुख्यतया निम्नलिखित छह प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता था।
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== वैनिशिंग क्रीम ==
अर्वाचीन अंगरागों में से वैनिशिंग क्रीम नामक मुखराग का व्यवहार बहुत लोकप्रिय हो गया है। मुँह की त्वचा पर थोड़ा-सा ही मलने से इस विलेपन (क्रीम) का अंतर्धान होकर लोप हो जाना ही इसके नामकरण का मूल कारण जान पड़ता है (वैनिशिंग-लुप्त होने वाला)। यह वास्तव में स्टीयरिक ऐसिड अथवा किसी उपयुक्त स्टीयरेट और जल द्वारा प्रस्तुत पायस (इमलशन) है। सोडियम हाइड्रॉक्साइड, सोडियम कार्बोनेट और सुहागे के योग से जो विलेपन बनता है, वह कड़ा और फीका सा होता है। इसके विपरीत पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड और पोटैशियम कार्बोनेट के योग से बने विलेपन नरम और दीप्तिमान होते हैं। अमोनिया के योग के कारण विलेपन को विशिष्ट गंध और रंग के बिगड़ने की आशंका रहती है। मोनोग्लिगराइडों और ग्लाइकोल स्टीयरेटों के योग से अच्छे विलेपन बनाए जा सकते हैं। एक भाग सोडियम और नौ भाग पोटैशियम हाइड्रोक्साइड मिश्रित साबुनों की अपेक्षा सोडियम और पोटैशियम हाइड्रॅाक्साइड के सम्मिश्रण में ट्राई-इबेनोलेमाइन के यौगिक भी उपयोगी सिद्ध हुए हैं। कार्बोनेटों के उपयोग के समय अधिक ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि कार्बनडॅाइआक्साइड नामक गैस निकलने से योग रचना के लिए दुगुना बड़ा बर्तन रखना और गैस को पूरी तरह निकाल देना परमावश्यक है। वैनिशिंग क्रीम की आधारभूत रचना के विशुद्ध स्टीयरिक ऐसिड, क्षार, जल और ग्लिसरीन का ही मुख्यतया प्रयोग किया जाता है।
 
== कोल्ड क्रीम ==
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== फेस पाउडर का नुस्खा ==
मुख प्रसाधनों में फेश पाउडर, सर्वाधिक लोकप्रिय और सुविधाजनक होने के कारण, अत्यंत महत्वपूर्ण अंगराग हो गया है। अच्छे फेस पाउडर मेमें मनमोहक रगं, अच्छी संरचना, मुख प्रसाधन के लिए क्षमता, संसागिता (चिपकने की क्षमता), सर्पण (स्लिप), विस्तार (बल्क), अवशोषण, मृदुलक (ब्लूम), त्वग्दोष-पूरक-क्षमता और सुगंध इत्यादि गुणों का होना आवश्यक है। इन गुणों के पूरक मुख्य पदार्थ निम्नलिखित हैं:1
 
1. '''अवशोपक तथा त्वग्ढोषपूरक पदार्थ''' - ज़िंक आक्साइड, टाइटेनियम डाइआक्साइड, मैगनीशियम आक्साइड, मैगनीशियम कार्बोनेट, कोलायडल केओलिन, अवक्षिप्त चॉक और स्टॉर्च इत्यादि।
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== लिपिस्टिक ==
किसी सांद्रित और स्निग्ध आधार (पदार्थ) में थोड़े से घुले हुए और मुख्यतया आलंबित (सस्पेंडेड) रंजक द्रव्य की ओष्ठरंजक-शलाका का नाम लिपिस्टिक है। एक बार प्रयोग में लाने से इसके रंग और स्निग्धता का प्रभाव 6 से 8 घंटे तक बना रहता है। रंग का असमान मिश्रण, शलाका का टूटना या पसीजना इत्यादि दोषों से इसका रहित होना अत्यंत आवश्यक है। लगभग 2 ग्राम की एक शलाका 250 से 400 बार प्रयोग में लाई जा सकती है। साधारणत: लिपिस्टिकों की त्वचा में ब्रोमो ऐसिड 2 प्रतिशत और रंगीन लेक 10 प्रतिशत की किसी उपयुक्त आधारक द्रव्य में मिलाया जाता है। घोलकों में से [[एरंड का तेल]] और ब्यूटिल स्टीयरेट, संलागियों में से [[मधुमक्खी का मोम]], दीप्ति के लिए 200 [[श्यानता]] का [[खनिज तेल]], कड़ा करने के लिए ओजोकेराइट 76 डिग्री/ 80 फुट सेंटी, सिरेसीन मोम और कारनौबा मोम, सांद्रित आधारक द्रव्य के तौर पर ककाओं बटर और उत्तम आकृति के लिए अंडिसाइलिक ऐसिड इत्यादि द्रव्यों का उपयोग किया जाता है।
 
दो योग (नुसखे) निम्नलिखित हैं:
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'''अवयव''' -- '''भाग'''
 
ट्रफ़ पेट्रोलेटम -- 25 पेट्रोलेटम—25
 
सिरेसीन 64 डिग्री -- 25
 
मिनरल ऑयल 210/220 -- 15220–15
 
मघुमक्खी का मोम -- 15
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सिरेसीन 64 डिग्री -- 25
 
मिनरल ऑयल 210/220 -- 15220–15
 
कारनौबा मोम -- 5