"चार्वाक दर्शन": अवतरणों में अंतर

ऑटोमेटिक वर्तनी सु, replaced: नहीं. → नहीं। , मे → में (2), नही → नहीं (5), →
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अन्य प्रसंग में महाभारत में ही एक और बृहस्पति का वर्णन मिलता है जो शुक्राचार्य के साथ मिल कर प्रवंचनाशास्त्र की रचना करते हैं। विभिन्न शास्त्रों के आचार्यों की माने तो चार्वाक मत दर्शन की श्रेणी में नहीं माना जा सकता क्योंकि इस दर्शन में मात्र मधुर वचनों की आड़ में वंचना का ही कार्य किया गया है। यह बात और है कि यदि चार्वाक की सुनें तो वह भी विभिन्न शास्त्रज्ञों को वंचक ही घोषित करता है।
 
एक ऐसे बृहस्पति का तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रन्थ में वर्णन मिलता है जो गायत्री देवी के मस्तक पर आघात करता है गायत्री देवी को पद्म पुराण के अनुसार समस्त वेदों का मूल माना गया है। इस दृष्टि से यह बृहस्पति वेद का विरोधी माना जा सकता है। सम्भवत: वेद का विरोध प्रति पद करने के कारण इस बृहस्पति को चार्वाक दर्शन का प्रणेता भी माना जाना युक्तियुक्त होगा।
 
विष्णु पुराण में भी बृहस्पति का प्रसंग प्राप्त होता है। बृहस्पति की इस मान्यता के अनुसार वैदिक कर्मकाण्ड बहुवित्त के व्यय एवं प्रयास से साध्य हे। विविध सुख के साधक ये वैदिक उपाय कुछ अर्थ लोलुप स्वार्थ केन्द्रित धूर्तों का ही विधान है।