"गरुड़": अवतरणों में अंतर

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[[हिंदू]] मान्यताओं के अनुसार '''गरुड़''' पक्षियों के राजा और भगवान [[विष्णु]] के वाहन हैं। गरुड़ [[कश्यप]] ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की सन्तान हैं।
 
===गरुड़ की माता को शाप===
 
[[दक्ष प्रजापति]] की कद्रू और विनता नामक दो कन्याएँ थीं। उन दोनों का विवाह [[कश्यप]] ऋषि के साथ हुआ। [[कश्यप]] ऋषि से कद्रू ने एक हजार नाग पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में माँगे। वरदान के परिणामस्वरूप कद्रू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे प्रसव किये। कद्रू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नाग पुत्र मिल गये। किन्तु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे। उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला। उसमें से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण हो चुका था किन्तु नीचे के अंग नहीं बन पाये थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को शाप दे दिया कि माता! तुमने कच्चे अंडे को तोड़ दिया है इसलिये तुझे पाँच सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बनकर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने से फूटने देना। उस अंडे से एक अत्यन्त तेजस्वी बालक होगा और वही तुझे इस शाप से मुक्ति दिलायेगा। इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया और [[सूर्य]] के रथ का सारथी बन गया
 
===विनता का दासी बनना===
 
एक दिन कद्रू और विनता की दृष्टि [[समुद्र मन्थन]] से निकले हुये [[उच्चैःश्रवा]] घोड़े पर पड़ी। कद्रू ने कहा कि उस घोड़े की पूँछ काली है जबकि विनता ने उसे सफेद रंग का बताया। इस पर दोनों में शर्त हुई कि जिसका कथन गलत होगा उसे दूसरे की दासी बनना होगा। दोनों शर्त मानकर पूँछ देखने चलीं। कद्रू ने चुपचाप अपने पुत्रों को उस पूँछ से लिपट जाने की आज्ञा दी इससे पूँछ काली दिखाई पड़ने लगी। विनता हार मानकर कद्रू की दासी बन गयी।
 
===गरुड़ का जन्म===
 
समय आने पर विनता के दूसरे अंडे से महातेजस्वी '''गरुड़''' की उत्पत्ति हुई। उनकी शक्ति और गति अद्वितीय थी।
 
===विनता को दासता से मुक्ति===
 
एक दिन कद्रू ने गरुड़ से कहा कि तुम मेरी दासी के पुत्र हो इसलिये तुम मेरे पुत्रों को घमाने ले जाओ। गरुड़ को इस पर बहुत क्रोध आया किन्तु उन्होंने सौतेली माता की आज्ञा मान ली। सर्पों को घुमाते हुये गरुड़ ने उनसे अपनी माता को दासता से मुक्त कर देने के लिये कहा। इस पर सर्पों ने कहा कि यदि तुम हम लोगों के लिये [[अमृत]] ला दोगे तो हम तुम्हारी माता को दासता से मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने [[इन्द्र]] सहित सभी देवताओं को परास्त कर अमृत घट उनसे छीन लिया। गरुड़ के पराक्रम से प्रभावित होकर [[इन्द्र]] ने गरुड़ से मित्रता कर ली। मित्रता हो जाने पर इन्द्र बोले, "मित्र! आप इस अमृत घट को मुझे वापस दे दीजिये क्योंक आप जिनके लिये इसे ले जा रहे हैं वे स्वभावतः बहुत दुष्ट हैं।" इस पर गरुड़ ने कहा, "मुझे पता है किन्तु मैं अपनी माता को दासता से मुक्ति दिलाने हेतु इसे उनके पास ले जा रहा हूँ। आप वहाँ से इसे वापस ला सकते हैं। हठात् उनकी भेंट नारायण ([[विष्णु]]) से हो गई। नारायण ने गरुड़ से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा। इस पर गरुड़ ने सदा उनकी ध्वजा में बने रहने का वर ले लिया। साथ ही वे नारायण के वाहन भी बन गये। इसके पश्चात् गरुड़ अमृत घट को सर्पों को देकर अपनी माता विनता को दासता से मुक्ति दिलाई।
 
अमृत घट को कुशासन पर रख कर सारे सर्प पवित्र होने के लिये स्नान करने चले गये। इसी बीच इन्द्र चोरी से उस अमृत घट को उठा कर ले गये।
 
===गरुड़ का रामचन्द्र के प्रति भ्रम===
 
[[रावण]] के पुत्र [[मेघनाथ]] ने राम से युद्ध करते हुये [[राम]] को नागपाश से बाँध दिया था। देवर्षि [[नारद]] के कहने पर गरूड़, जो कि सर्पभक्षी थे, ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर राम को नागपाश के बंधन से छुड़ाया। राम के इस तरह नागपाश में बँध जाने पर राम के परमब्रह्म होने पर गरुड़ को सन्देह हो गया। गरुड़ का सन्देह दूर करने के लिये देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्मा के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम्हारा सन्देह भगवान शंकर दूर कर सकते हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका सन्देह मिटाने के लिये [[काकभुशुण्डि]] जी के पास भेज दिया। अन्त में [[काकभुशुण्डि]] जी राम के चरित्र की पवित्र कथा सुना कर गरुड़ के सन्देह को दूर किया।
 
==यह भी देखे==
* [[रामायण]]
* [[काकभुशुण्डि]]
 
==बाहरी कडियाँ==
 
[[Category:रामायण]]
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