"संस्कृत भाषा का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार सँस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना ,विभिन्न प्रयासों तथा उपसर्गो के द्वारा नवीन-नवीन शब्दों के निर्माण की क्षमता आदि के द्वारा अमर है। आधुनिक विद्वानों के अनुसार [[संस्कृत]] भाषा का अखंड प्रवाह '''पाँच सहस्र वर्षों''' से बहता चला आ रहा है। [[भारत]] में यह आर्यभाषा का सर्वाधिक महत्वशाली, व्यापक और संपन्न स्वरूप है। इसके माध्यम से भारत की उत्कृष्टतम मनीषा, प्रतिभा, अमूल्य चिंतन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जना और वैचारिक प्रज्ञा का अभिव्यंजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रंथनिर्माण की क्षीण धारा अविच्छिन्न रूप से वह रही है। आज भी यह भाषा, अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सही, बोली जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषाभाषी पंडितजन इसका परस्पर वार्तालाप में प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़) से संस्कृत की स्थिति भिन्न है। यह मृतभाषा नहीं, अमरभाषा है।
भारत में संस्कृत भाषा का प्रयोग बंद होना एक अचंभे की बात है, कुछ लोग कहते हैं कि संस्कृत के कठिन होने के कारण इसे हटा दिया गया। परन्तु दुनिया की सबसे कठिन भाषा तो चीनी है, फिर उन्होंने चीनी भाषा का प्रयोग बंद क्यों नहीं क्र दिया। संस्कृत का हमारे समाज से लुप्त हो कर हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में बदलना बड़ा ही अज़ीब है। ऐसा लगता है कि हिंदी एवं अन्य भाषाऐं संस्कृत को तोड़ मरोड़ कर बनी है, किसी ने संस्कृत भाषा को ख़तम करने का प्रयास किया था तो विभिन्न जगह उससे विभिन्न भाषाओं का निर्माण हुआ। और एसा करने की एक ही वजह हो सकती है, क्योंकि हमारे सारे वेद एवं प्राचीन ग्रन्थ जो कि ज्ञान से भरपूर्ण हैं वो सब संस्कृत में हैं। जिन्होंने भी संस्कृत भाषा को नष्ट करने का प्रयास किया वो ये नहीं चाहते थे कि हर कोई संस्कृत में लिखे वेदों एबं पुराणों का ज्ञान अर्जित कर सके।
== नामकरण एवं विकासयात्रा ==
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