"राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट)": अवतरणों में अंतर

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[[भारत]] में चिकित्सा-स्नातक के पाठ्यक्रमों (एमबीबीएस , ब्बीडीएसबीडीएस आदि) में प्रवेश पाने के लिये एक अर्हक परीक्षा (qualifying entrance examination) उत्तिर्ण करनी पड़ती है जिसका नाम '''राष्ट्रीय योग्यता सह प्रवेश परीक्षा''' (नीट / National Eligibility cum Entrance Test या NEET-UG) है। [[भारतीय चिकित्सा परिषद]] (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) और [[डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया]] की मंजूरी से देश भर में चल रहे मेडिकल और डेंटल कॉलेजों के एमबीबीएस व बीडीएस पाठ्यक्रमों में दाखिला इसी परीक्षा के परिणाम के आधार पर होता है। इसके पहले इसके जगह पर 'एआईपीएमटी' तथा सभी राज्यों की पीएमटी नामक परीक्षाएं हुआ करती थीं। यह परीक्षा [[केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड]] (सीबीएसई) द्वारा संचालित होती है। पहली परीक्षा ५ मई २०१३ को हुई थी।
 
भारतीय नागरिकों के अलावा इस परीक्षा को एनआरआई, ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया, पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन और विदेशी नागरिक भी दे सकते हैं। ये सभी 15 फीसदी अखिल भारतीय कोटे के लिए योग्य होंगे। नीट के आधार पर ही राज्य के मेडिकल कॉलेजों में 15 फीसदी कोटे पर दाखिला होता है।
 
इस परीक्षा को देने वाले उम्मीदवारों की अधिकतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई है। आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को इसमें 5 वर्ष की छूट दी जाएगी। सभी उम्मीदवार को नीट देने के लिए अधिकतम तीन मौके दिए जाएंगे।
 
{| class="wikitable"
|कालेज
|सीटों की संख्या
|-
|All private colleges
|25,840
|-
|All government colleges
|27,590
|-
|NEET Counselling seats
|3,521
|-
|NEET Basis seats
|35,461
|}
 
==इतिहास==
मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रम (यानी, एमबीबीएस) में दखिले के समय बड़े पैमाने पर होने वाली धांधली रोकने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। इसके लिए केंद्रीकृत प्रवेश परीक्षा प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया जा रहा था। इंजीनियरिंग कॉलेजों में यह प्रक्रिया लागू थी मगर निजी कॉलेजों और राज्य सरकारों की अनिच्छा के चलते इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा पा रहा था। छिपी बात नहीं है कि चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के लिए होड़ लगी रहती है। चूंकि चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई के बाद रोजगार की उस तरह समस्या नहीं रहती जैसे दूसरे तकनीकी पाठ्यक्रमों के बाद रहती है। इसलिए पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए कुछ अधिक भीड़ रहती है। चूंकि निजी संस्थानों में मैनेजमेंट कोटे का प्रावधान है और दाखिले के लिए कॉलेज खुद शर्तें तय करते हैं, इसलिए वहां ज्यादातर सीटों पर पैसे वाले लोगों के बच्चे काबिज हो जाते हैं। इन पाठ्यक्रमों में मुंहमांगी रकम देने वालों की कतार लगी रहती है। जाहिर है, मैनेजमेंट के लिए कॉलेज चलाना कमाई का बड़ा धंधा बन चुका है। मगर दाखिले में पारदर्शिता और व्यावहारिक व्यवस्था न होने के चलते बहुत सारे मेधावी विद्यार्थियों को दाखिले से वंचित होना पड़ता है।
 
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार, [[भारतीय चिकित्सा परिषद]] और [[केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड]] की सहमति के आधार पर नीट लागू करने का आदेश दिया था। मगर कुछ राज्यों को इस पर आपत्ति थी कि इससे क्षेत्रीय भाषा में समान पाठ्यक्रम तैयार करने और प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराने आदि में मुश्किल आ सकती है। इसी आधार पर केंद्र ने अधिसूचना तैयार की थी। मगर कानूनी अड़चन थी कि क्या सर्वोच्च न्यायालय के किसी फैसले के खिलाफ सरकार अध्यादेश ला सकती है? राष्ट्रपति ने इस पर कानूनी सलाह ली और आखिरकार अध्यादेश को हरी झंडी दिखा दी।
 
इस तरह चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के समय कोटे को लेकर चलने वाली धांधली रुक जाएगी। अभी तक निजी और सरकारी कॉलेजों में मैनेजमेंट, एनआरआइ आदि के लिए जो कोटे निर्धारित हैं, उन सीटों पर कॉलेज खुद दाखिले की शर्तें तय करते हैं। मगर अब सभी तरह के कोटे केंद्रीय परीक्षा के जरिए ही भरे जा सकेंगे।
 
==बाहरी कड़ियाँ==