"मनमोहन सिंह": अवतरणों में अंतर
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{{अनेक समस्याएँ|जीवनी स्रोतहीन=जून 2012|दृष्टिकोण=जून 2012|लहजा=जून 2012|विकिफ़ाइ=जून 2012|कम दृष्टिकोण=जून 2012}}
{{ज्ञानसंदूक प्रधानमंत्री
| order=[[भारत के प्रधानमंत्री|भारत के १३वें प्रधानमन्त्री]]
| name=मनमोहन सिंह
| image=IBSA-leaders Manmohan Singh.jpg
| birth_date ={{Birth date and age|1932|9|26|df=yes}}
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| party=[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
| term_start =२२ मई २००४
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'''मनमोहन सिंह''' ({{lang-pa|ਮਨਮੋਹਨ ਸਿੰਘ}}; जन्म : २६ सितंबर १९३२) [[भारत|भारत गणराज्य]] के १३वें [[भारत के प्रधानमंत्री|प्रधानमन्त्री]] थे। साथ ही साथ वे एक अर्थशास्त्री भी हैं। [[लोकसभा चुनाव २००९]] में मिली जीत के बाद वे [[जवाहरलाल नेहरू]] के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बन गये हैं, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है। इन्हें [[२१ जून]] [[१९९१]] से [[१६ मई]] [[१९९६]] तक [[पी० वी० नरसिंहराव|पी वी नरसिंह राव]] के प्रधानमंत्रित्व काल में [[भारत के वित्त मंत्री|वित्त मन्त्री]] के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों के लिए भी श्रेय दिया जाता है।{{cn|date=जून २०१२}}
== संक्षिप्त जीवनी ==
मनमोहन सिंह का जन्म [[ब्रिटिश भारत]] (वर्तमान पाकिस्तान) के [[पंजाब (पाकिस्तान)|पंजाब]] प्रान्त में २६ सितम्बर,१९३२ को हुआ था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। यहाँ [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे [[कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय]] गये। जहाँ से उन्होंने पीएच. डी. की। तत्पश्चात् उन्होंने [[आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय]] से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक ''इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ'' भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ॰ सिंह ने [[अर्थशास्त्र]] के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे [[पंजाब विश्वविद्यालय]] और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे [[संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन]] सचिवालय में सलाहकार भी रहे और [[१९८७]] तथा [[१९९०]] में [[जेनेवा]] में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। [[१९७१]] में डॉ॰ सिंह [[वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार|भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय]] में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद [[१९७२]] में उन्हें [[वित्त मंत्रालय]] में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे [[भारत का योजना आयोग|योजना आयोग]] के उपाध्यक्ष, [[भारतीय रिजर्व बैंक|रिजर्व बैंक]] के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और [[विश्वविद्यालय अनुदान आयोग]] के अध्यक्ष भी रहे हैं। [[भारत का आर्थिक इतिहास|भारत के आर्थिक इतिहास]] में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह [[१९९१]] से [[१९९६]] तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। उन्हें भारत के [[आर्थिक सुधार|आर्थिक सुधारों]] का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ॰ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती [[गुरशरण कौर]] और तीन बेटियाँ हैं।
== राजनीतिक जीवन ==
1985 में [[राजीव गांधी]] के शासन काल में मनमोहन सिंह को [[भारत का योजना आयोग|भारतीय योजना आयोग]] का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि १९९० में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब [[पी० वी० नरसिंहराव|पी वी नरसिंहराव]] प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को १९९१ में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो [[लोकसभा]] और न ही [[राज्यसभा]] के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें १९९१ में [[असम]] से राज्यसभा के लिए चुना गया।
मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।{{cn|date=जून २०१२}} विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।{{cn|date=जून २०१२}} मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
== पद ==
सिंह पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स में प्रोफेसर के पद पर थे। १९७१ में मनमोहन सिंह भारत सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए थे। १९७२ में मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और [[विश्वविद्यालय अनुदान आयोग]] के अध्यक्ष। मनमोहन सिंह 1991 से राज्यसभा के सदस्य हैं। १९९८ से २००४ में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। मनमोहन सिंह ने प्रथम बार ७२ वर्ष की उम्र में २२ मई २००४ से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल २००९ में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके पश्चात् लोकसभा के चुनाव हुए और [[भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस]] की अगुवाई वाला [[संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन]] पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हुई है। दूसरी बार फ़रवरी २००९ में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने [[अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान]] में इनकी शल्य-चिकित्सा की। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। लेकिन २००९ की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। परन्तु भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उसे उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा है। 26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी [[मुम्बई|मुंबई]] पर [[पाकिस्तान]] द्वारा प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया।{{cn|date=जून 2012}} दिल दहला देने वाले उस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था।{{cn|date=जून 2012}} तब सिंह ने [[शिवराज पाटिल]] को हटाकर [[पी. चिदम्बरम]] को [[गृह मंत्रालय, भारत सरकार|गृह मंत्रालय]] की ज़िम्मेदारी सौंपी और [[प्रणव मुखर्जी]] को नया वित्त मंत्री बनाया।
=== जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव ===
* १९५७ से १९६५ - [[चंडीगढ़]] स्थित [[पंजाब विश्वविद्यालय]] में अध्यापक
* १९६९-१९७१ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
* १९७६ - दिल्ली के [[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]] में मानद प्रोफ़ेसर
* १९८२ से १९८५ - [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के गवर्नर
* १९८५ से १९८७ - [[भारत का योजना आयोग|योजना आयोग]] के उपाध्यक्ष
* १९९० से १९९१ - भारतीय प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
* १९९१ - नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्त मन्त्री
* १९९१ - [[असम]] से राज्यसभा के सदस्य
* १९९५ - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
* १९९६ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
* १९९९ - दक्षिण दिल्ली से [[लोकसभा]] का चुनाव लड़ा लेकिन हार गये।
* २००१ - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
* २००४ - [[भारत]] के [[प्रधानमन्त्री]]
इसके अतिरिक्त उन्होंने [[अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष|अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष]] और [[एशियाई विकास बैंक]] के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।
== पुरस्कार एवं सम्मान ==
सन १९८७ में उपरोक्त [[पद्म विभूषण]] के अतिरिक्त भारत के सार्वजनिक जीवन में डॉ॰ सिंह को अनेकों पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं: -
* २००२ - सर्वश्रेष्ठ सांसद
* [[१९९५]] में [[इण्डियन साइंस कांग्रेस]] का [[जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार]],
* [[१९९३]] और [[१९९४]] का [[एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेन्स मिनिस्टर ऑफ द ईयर]],
* १९९४ का [[यूरो मनी अवार्ड फॉर द फाइनेन्स मिनिस्टर आफ़ द ईयर]],
* [[१९५६]] में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का [[एडम स्मिथ पुरस्कार]]
डॉ॰ सिंह ने कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। अपने राजनैतिक जीवन में वे १९९१ से [[राज्य सभा]] के सांसद तो रहे ही, [[१९९८]] तथा [[२००४]] की संसद में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
== विवाद और घोटाले ==
=== २-जी स्पेक्ट्रम घोटाला ===
[[टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला]], जो स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला है उस घोटाले में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये का घपला हुआ है। इस घोटाले में विपक्ष के भारी दवाव के चलते मनमोहन सरकार में संचार मन्त्री [[ए० राजा]] को न केवल अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, अपितु उन्हें जेल भी जाना पडा। केवल इतना ही नहीं, [[भारत का उच्चतम न्यायालय|भारतीय उच्चतम न्यायालय]] ने इस मामले में प्रधानमन्त्री सिंह की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। इसके अतिरिक्त टूजी स्पेक्ट्रम आवण्टन को लेकर संचार मन्त्री ए० राजा की नियुक्ति के लिये हुई पैरवी के सम्बन्ध में [[नीरा राडिया]], पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों से बातचीत के बाद डॉ॰ सिंह की सरकार भी कटघरे में आ गयी है।
=== कोयला आबंटन घोटाला ===
{{मुख्य|कोयला घोटाला}}
अभी हाल में यह तथ्य प्रकाश में आया है मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में कोयला आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट हुई और सारा कुछ प्रधानमंत्री की देखरेख में हुआ क्योंकि यह मंत्रालय उन्हीं के पास है।
इस महाघोटाले का राज है कोयले का कैप्टिव ब्लॉक, जिसमें निजी क्षेत्र को उनकी मर्जी के मुताबिक ब्लॉक आवंटित कर दिया गया। इस कैप्टिव ब्लॉक नीति का फायदा हिंडाल्को, जेपी पावर, जिंदल पावर, जीवीके पावर और एस्सार आदि जैसी कंपनियों ने जोरदार तरीके से उठाया। यह नीति खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिमाग की उपज थी।
== इन्हें भी देखें ==
* [[भारत के प्रधानमंत्री]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
{{commons|Manmohan Singh|मनमोहन सिंह}}
* [http://www.pmindia.nic.in/former.htm भारत के प्रधानमंत्रियों का आधिकारिक जालस्थल (अंग्रेजी में)]
<!--- CAN PERHAPS BE USED AS REFERENCES. NO NEED FOR EXTERNAL LINKS
* [http://www.hindustan.org/leader/hindipm.html उदारीकरण के जनक मनमोहन सिंह]
* [http://vichar.bhadas4media.com/politics-government/1082-2011-03-02-07-18-15.html भ्रष्टाचारियों के सरदार]
*[http://www.prabhatkhabar.com/news/76234.aspx प्रधानमंत्री से ऐसी भूल क्यों?]
*[http://www.bhaskar.com/article/NAT-15-ministers-are-corrupt-3327479.html मनमोहन सहित 15 मंत्री भ्रष्ट] : अन्ना हजारे
*[http://www.indiankhabar.com/index.php?option=com_content&view=article&id=333:-26-&catid=43:india&Itemid=118 मनमोहन की देखरेख में 26 लाख करोड़ का कोयला घोटाला]
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{{भारत के प्रधानमन्त्री}}
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[[श्रेणी:1932 में जन्मे लोग]]
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