"हसन इब्न अली": अवतरणों में अंतर
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इमाम हसन ने उसको सन्धि करने के लिये मजबूर कर दिया। जिसके अनुसार वो सिर्फ़ इस्लामी देशो पर शासन कर सकता है, पर इस्लाम के कानूनो मे हस्तक्षेप नही कर सकता। उसका शासन केवल उसकी मौत तक ही होगा उस्को किसी को खलिफा बनाने का अधिकार नहीं होगा। उस्को इसलाम के सभी नियमो का पालन करना होगा। उसके मरने के बाद खलिफा फिर हसन अ० होगे। यदि हसन अ० कि मर्त्यु हो जाय तो इमाम हुसेन को खलिफा माना जायगा। इस्के अलावा भी और शर्त थी पर मविया अपने पुत्र को भी खलीफा बनाना चाहता था जो कि अपने बाप कि तरह हि बहुत बडा अधर्मी था। तब माविया ने धोके से इमाम हसन को जहर दिलवा कर शहिद करवा दीया। और अपने मरने से पहले अपने बेटे यजीद को खलिफा बना दिया। इस पर भी [[हुसेन]] अ.स. ने युद्ध नही किया बल्कि अल्लाह कि रज़ा के लिये खूँरेजी से दूर रहे।
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